भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त किए हुए 77 वर्ष पूरे कर लिए हैं, लेकिन इस स्वतंत्रता के बावजूद घुमंतू विमुक्त जनजातियों की दुर्दशा जस की तस बनी हुई है। यह अत्यंत खेदजनक है कि जिस देश की सनातन संस्कृति पूरे विश्व को ‘सर्व भूत हिते रतः’ का संदेश देती है, उसी देश में इन जनजातियों का आज भी अपमानजनक और नारकीय जीवन जीना हमारी सामूहिक विफलता है।
ब्रिटिश शासन के दौरान 1871 में लागू किया गया ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ इन जनजातियों की दयनीय स्थिति के पीछे का मुख्य कारण है। इस कानून के तहत 193 जनजातियों को ‘जन्मजात अपराधी’ घोषित कर दिया गया। यह कानून 1857 के विद्रोह के बाद लाया गया, जिसमें इन जनजातियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने और इन जनजातियों को नियंत्रित करने के लिए एक कड़ा कानून बनाया, जो उनके लिए एक स्थायी कलंक बन गया। इस कानून के माध्यम से इन जनजातियों को न केवल अपराधी घोषित किया गया, बल्कि उन्हें समाज में अलग-थलग कर दिया गया।
इन जनजातियों को उनके घरों में कैद कर दिया गया और 50 बस्तियों का निर्माण किया गया, जहाँ इन्हें जेल जैसी परिस्थितियों में रखा गया। कानपुर में ऐसी एक बस्ती 159 एकड़ भूमि में स्थापित की गई थी। इन बस्तियों में 24 घंटे पुलिस का पहरा होता था, और इन जनजातियों को प्रतिदिन पुलिस चौकी पर हाजिरी देनी पड़ती थी। उनका जीवन हर तरीके से नियंत्रित किया जाता था, और वे स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित थे।
भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद भी इन जनजातियों के लिए वास्तविक आजादी नहीं आई। 31 अगस्त 1951 को ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ को समाप्त किया गया, और इसके साथ ही इन जनजातियों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। लेकिन यह स्वतंत्रता केवल कानूनी थी। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से इन जनजातियों की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। 1951 के बाद से 31 अगस्त को विमुक्त दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन यह दिन एक प्रतीकात्मक आयोजन से अधिक कुछ नहीं है।
आज भी समाज और प्रशासन में इन जनजातियों के प्रति गहरे पूर्वाग्रह हैं। पुलिस के रंगरूटों को यह सिखाया जाता है कि ये जनजातियाँ पारंपरिक रूप से अपराध करती हैं, और इस प्रकार उन्हें एक संदिग्ध दृष्टिकोण से देखा जाता है। इन जनजातियों के खिलाफ अत्याचार और भेदभाव आज भी जारी हैं।
स्वतंत्रता के 77 वर्षों बाद भी घुमंतू और विमुक्त जनजातियाँ सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से अत्यंत पिछड़ी हुई हैं। इन जनजातियों के अधिकांश लोग आज भी बिना स्थायी आवास के जीवन व्यतीत करते हैं। वे सड़कों के किनारे, जंगलों या दूरदराज के क्षेत्रों में अस्थायी झोपड़ियों में रहते हैं। इनकी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच बहुत सीमित है।
शिक्षा की कमी और सामाजिक भेदभाव के कारण इन जनजातियों के लिए रोजगार के अवसर भी अत्यंत सीमित हैं। इनके बच्चे अक्सर शिक्षा से वंचित रह जाते हैं क्योंकि परिवारों की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय होती है कि बच्चे भी काम करने पर मजबूर होते हैं। गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की समस्याओं से जूझती ये जनजातियाँ अपराध की ओर धकेली जाती हैं।
यह हमारे समाज और शासन दोनों के लिए गहन चिंतन का विषय है। स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी अगर एक बड़ा समुदाय अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित है, तो यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की असफलता है। भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार देता है, लेकिन घुमंतू और विमुक्त जनजातियाँ आज भी इन अधिकारों से वंचित हैं।
सरकार ने समय-समय पर घुमंतू और विमुक्त जनजातियों के उत्थान के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं, लेकिन ये योजनाएँ कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। इन योजनाओं का वास्तविक लाभ इन जनजातियों तक नहीं पहुँच पाता, क्योंकि योजनाओं का क्रियान्वयन ढंग से नहीं हो पाता है। इसके अलावा, इन जनजातियों को समाज में मुख्यधारा से जोड़ने के लिए भी पर्याप्त प्रयास नहीं किए जाते हैं।
हमारे समाज में अभी भी इन जनजातियों के प्रति गहरे भेदभाव और पूर्वाग्रह बने हुए हैं। इन्हें समाज में अपराधी या अज्ञानी के रूप में देखा जाता है, और इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है। यह स्थिति न केवल समाज की मानसिकता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि हमारे प्रशासन और कानून-व्यवस्था में इन जनजातियों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है।
घुमंतू और विमुक्त जनजातियों के उत्थान के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि समाज में इनके प्रति फैली भ्रांतियों और पूर्वाग्रहों को दूर किया जाए। इसके लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है, जिनके माध्यम से लोगों को इन जनजातियों की वास्तविक स्थिति, उनके संघर्षों और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा सके।
इसके साथ ही, इन जनजातियों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए ठोस और प्रभावी योजनाओं की जरूरत है। इन जनजातियों को स्थायी रोजगार, आवास और शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। पुलिस और प्रशासन को इन जनजातियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है, ताकि वे इनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार न करें।
इन जनजातियों के ऐतिहासिक योगदान को भी हमें याद करना चाहिए। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इन जनजातियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका साहस और बलिदान हमें यह सिखाता है कि वे देश के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, उनके इस योगदान को भुला दिया गया और उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया गया।
अब समय आ गया है कि हम इन जनजातियों को उनका उचित स्थान और सम्मान दिलाने के लिए ठोस कदम उठाएँ। यह केवल एक सामाजिक सुधार का कार्य नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की संस्कृति, इतिहास और मानवाधिकारों की रक्षा का भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
घुमंतू और विमुक्त जनजातियों की स्थिति को सुधारने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार, समाज और गैर-सरकारी संगठनों के बीच समन्वय हो। हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा ताकि इन जनजातियों को न्याय, सम्मान और समानता प्राप्त हो सके।
भारत ने स्वतंत्रता के 77 वर्ष पूरे कर लिए हैं, लेकिन आज भी कई ऐतिहासिक अन्याय और ब्रिटिश शासनकाल के कलंक हमारे समाज पर मौजूद हैं। घुमंतू और विमुक्त जनजातियों का नारकीय जीवन इसका एक जीवंत उदाहरण है। हालांकि, वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संवेदनशील नेतृत्व देश में कई ऐसे ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का कार्य कर रहा है, जिनसे लाखों लोगों के जीवन में नया सवेरा आया है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर से लेकर अन्य राज्यों तक ऐसे लाखों लोगों को नागरिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिन्हें विभाजन के बाद यह अधिकार नहीं मिले थे। इन लोगों को अब देश के नागरिक होने का गर्व प्राप्त हुआ है। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निष्प्रभावी बनाना, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लागू करना, और अयोध्या में भगवान श्री रामलला के भव्य मंदिर निर्माण जैसे निर्णय इस सरकार की संवेदनशीलता और दूरदर्शिता को दर्शाते हैं।
इसी कड़ी में “वन नेशन, वन इलेक्शन” की दिशा में भी तेजी से कार्य किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बनटांगिया लोगों को नागरिक अधिकार प्रदान कर उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन लाया है। ऐसे संवेदनशील नेतृत्व के कार्यकाल में यह निश्चित है कि ब्रिटिश शासन के दौरान उत्पीड़ित घुमंतू और विमुक्त जनजातियों को भी सामाजिक सुरक्षा, राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड, आधार कार्ड, प्रधानमंत्री आवास योजना और अन्य सामाजिक योजनाओं का लाभ देकर सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिल सकता है।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत विमुक्त जनजातियों के लिए आवासीय विद्यालयों में बच्चों की शिक्षा, और स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से भाषा संबंधित समस्याओं को हल करने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। अनुसूचित जाति/जनजाति और ओबीसी में इन जनजातियों का निर्धारण कर उनका प्रमाणपत्र प्रदान करने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया जा सकता है। यह सरकार के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है कि वह इन विमुक्त जनजातियों को सम्मान और सुरक्षा प्रदान कर समाज में उनका सही स्थान दिला सके।
विमुक्त जातियों में जो जातियाँ अब तक संवैधानिक अधिकारों से वंचित हैं, उन्हें जितनी जल्दी संवैधानिक अधिकार प्रदान किए जाएँगे, उतना ही शीघ्र इस वंचित समूह के साथ सदियों से हुए अन्याय का प्रतिकार कर सरकार एक क्रांतिकारी और ऐतिहासिक निर्णय करेगी।
इतिहास गवाह है कि ये जनजातियाँ ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे पहले खड़ी हुईं थीं, लेकिन बाद में उनके खिलाफ ‘जन्मजात अपराधी’ होने का कलंक मढ़ दिया गया। अब, इस अन्याय को समाप्त करने और इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का एक बड़ा अवसर है। इस दिशा में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और शैक्षणिक स्तर पर व्यापक कार्य करने की आवश्यकता होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की लगभग दो दर्जन से अधिक संस्थाएँ घुमंतू विमुक्त समाज के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य कर रही हैं। अवध और गोरखपुर प्रांत में राजेश और उनके सहयोगी, जो इस दिशा में कार्य कर रहे हैं, उनके प्रयास अत्यंत सराहनीय हैं। राजेश ने अपने नाम के साथ ‘घुमंतू’ शब्द जोड़कर एक संदेश दिया है कि जिस समाज का गौरवशाली और शौर्यपूर्ण इतिहास रहा है, वह समाज अब अपमान सहने के लिए नहीं बना है।
हालांकि, इन प्रयासों के साथ-साथ सरकार को भी बड़े निर्णय लेने होंगे, ताकि इन घुमंतू और विमुक्त जनजातियों को सामाजिक सम्मान और आर्थिक सुरक्षा मिल सके। ऐसा करके सरकार ब्रिटिश शासन के समय लगाए गए इस बड़े कलंक को मिटा सकती है और इन करोड़ों लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल कर सकती है।
इस दिशा में व्यापक जागरूकता फैलाने और विमुक्त जनजातियों के उत्थान के लिए किए जा रहे प्रयासों को मजबूत करना जरूरी है। समाज और सरकार के बीच तालमेल स्थापित कर इन जनजातियों को उनका सही स्थान दिलाने का यह सही समय है। केवल तभी हमारी स्वतंत्रता और लोकतंत्र पूर्ण हो सकते हैं, जब हर नागरिक को समान अवसर और अधिकार प्राप्त हो।
विमुक्त घुमंतू जनजातियों की नारकीय स्थिति: अंग्रेजों का बोया बीज जो बन गया स्थायी कलंक, स्वतंत्रता के 77 वर्षों बाद भी उपेक्षित
1871 में लागू किया गया ‘क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ इन जनजातियों की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण। लेकिन अंग्रेज तो चले गए, फिर आज भी क्यों? क्योंकि आज भी समाज और प्रशासन में इन जनजातियों के प्रति गहरे पूर्वाग्रह हैं। पुलिस के रंगरूटों को यह सिखाया जाता है कि ये जनजातियाँ पारंपरिक रूप से अपराध करती हैं।
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