द न्यूयॉर्क टाइम्स में एक पाकिस्तानी मुस्लिम लड़की मायरा फारुकी ने अपनी प्रेम कहानी साझा की। इस लड़की का प्रेमी एक भारतीय अमेरिकी हिन्दू था। दोनों कई दिनों तक साथ भी रहे लेकिन हमेशा के लिए साथ नहीं हो सके। कारण क्या था, यह जानने के पहले फारुकी की कहानी को समझ लेते हैं।
फारुकी उस हिन्दू लड़के से एक दक्षिण एशियाई डेटिंग ऐप्लीकेशन ‘दिल मिल’ पर मिली। सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले उस हिन्दू लड़के ने फारुकी के साथ महीनों तक उसी डेटिंग ऐप्लीकेशन पर बात की। अंततः ऐसा भी समय आया, जब वो दोनों मिले। फारुकी ने उसके साथ समय बिताया। दोनों ने प्रेम और भावनाओं के कई गीतों को सुनते हुए साथ समय व्यतीत किया। फारुकी को पता था कि उसका अपने मजहब से बाहर किसी गैर-इस्लामी और खासकर हिन्दू से शादी करना या उसके साथ समय बिताना लगभग असंभव ही है किन्तु फारुकी उस हिन्दू लड़के से प्यार करने लगी थी।
उस हिन्दू लड़के के साथ कई डेट्स पर जाने के बाद फारुकी ने पाँचवीं डेट पर उससे अपने मजहब के बारे में बात की और उससे पूछा कि क्या उसे इसका अंदाजा है कि एक मुस्लिम लड़की से शादी करने से कैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी। लड़के ने इस पर भी उसका साथ देने का आश्वासन दिया। इसके बाद अंततः फारुकी ने वही कहा जो उसे कहना था, कि शादी करने के लिए उस लड़के को अपना धर्म बदलना होगा और इस्लाम अपनाना होगा।
अभी तक दोनों ने एक साथ जो भी समय बिताया, अलग-अलग तरह के गानों पर एक साथ डांस किया, एक साथ शॉपिंग करने और घूमने-फिरने के जो भी खुशनुमा पल थे, सब उस हिन्दू लड़के के एक जवाब पर आकर टिक गए। सवाल था, धर्म परिवर्तन का और फारुकी के साथ प्यार में खुद को पूरी तरह समर्पित करने वाले उस हिन्दू ने जवाब दिया कि वह अपने धर्म का परिवर्तन करने के लिए तैयार है।
खैर कई दिनों तक डेट करने के बाद दोनों ही अपने परिवारों के पास पहुँचे। उस हिन्दू लड़के ने अपने परिवार में धर्म परिवर्तन की बात बताई, जिस पर उसके परिवार वालों ने उससे ऐसा न करने की प्रार्थना की।
फारुकी ने भी अपनी माँ से उस लड़के के बारे में बात की, तब फारुकी की माँ भी व्यथित हो गईं लेकिन जब उन्होंने यह जाना कि हिन्दू लड़का धर्म परिवर्तन के लिए तैयार है तब वह इस शादी के लिए राजी हो गईं लेकिन अब यह संभव नहीं था क्योंकि लड़का धर्म परिवर्तन के लिए मना कर चुका था और फारुकी के इस्लामिक परिवार में एक गैर-इस्लामी से शादी करना मंजूर नहीं था।
इस तरह एक मुस्लिम लड़की एक हिन्दू लड़के से, जिससे वह प्यार करती थी, शादी नहीं कर पाई और दोनों के एक साथ जीवन बिताने का ख्वाब पूरा नहीं हो सका।
अब बात करते हैं कि फारुकी ने द न्यूयॉर्क टाइम्स में क्या लिखा। फारुकी ने बड़े ही सरल शब्दों में ज्योतिष और राशि की गणनाओं को इस पूरे मामले के साथ जोड़ दिया। फारुकी ने यह भी कहा कि एक मुस्लिम से विवाह करने के मामले में अपनी धार्मिक सहिष्णुता और पहचान का त्याग करने की पहल एक गैर-मुस्लिम परिवार को ही करनी चाहिए क्योंकि उनके परिवार ज्यादा खुले विचारों के होते हैं।
ऐसे में फारुकी के पास एक रास्ता था कि वह उस हिन्दू लड़के से शादी करके उसी के साथ जीवन बितातीं क्योंकि यदि एक गैर-इस्लामी परिवार ज्यादा खुले विचारों के होते हैं तो वो फारुकी को शायद उसी रूप में स्वीकार कर लेते, जिस रूप में वो थीं।
लेकिन फारुकी ने अपने प्यार के स्थान पर मजहबी सीमाओं को चुना। फारुकी लिखती हैं कि उन्होंने अपनी माँ और अपने मजहब को दोष देना चाहा लेकिन अंततः उन्होंने अपने प्यार को ही कमजोर बताना उचित समझा। उन्होंने कहा कि कोविड बबल में शुरू हुआ प्यार, लॉकडाउन और क्वारंटीन में पनपने वाला प्यार शायद उतना मजबूत नहीं था।
पूरे लेख में फारुकी इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा और मजहबी दकियानूसी खयालों को दोष नहीं दे पाईं।
यह कहानी सिर्फ मायरा फारुकी का नहीं है। एक मुसलमान के तौर पर जन्म लेने का मतलब है मजहबी दायरों में अपने को बाँधकर रखना। फारुकी को भी ऐसा जीवनसाथी चाहिए था, जो उनके लिए मुसलमान हो सके। फारुकी जैसी कितनी ही लड़कियाँ होंगी, जो रिश्तों को भावनाओं और संगीत के रास्ते मजहबी पहचान तक ले जाती होंगी। आखिर क्यों जरूरी था उस हिन्दू लड़के का मुसलमान हो जाना?
यह सवाल तब भी उठता है जब कोई निकिता तोमर मारी जाती है और सिर्फ इसलिए कि वह इस्लाम स्वीकार करने से मना कर देती है। क्यों एक अफजल किसी हिन्दू लड़की से शादी करने के लिए अशोक बन जाता है और बाद में उस लड़की से नमाज पढ़वाता है। क्यों कई मोइनुद्दीन हिन्दू लड़कियों को प्यार के जाल में फँसाने के लिए मुन्नू यादव बन जाता है?
क्या फारुकी इस बात का जवाब देंगी कि प्यार में धर्म परिवर्तन की क्या आवश्यकता? जिस लड़के के साथ उन्होंने जिंदगी बिताने का सपना देखा, उसे सिर्फ इसलिए छोड़ दिया कि वह मुसलमान नहीं बना।
किसी भी लेख को शब्दों से सजाकर लिखने से और खुद को विक्टिम बताकर सच छुपाया नहीं जा सकता और सच यही है कि अधिकांशतः एक गैर-मुस्लिम किसी भी मुस्लिम परिवार को स्वीकार्य नहीं हो सकता। अंकित सक्सेना और राहुल ने भी एक मुस्लिम लड़की से प्यार किया था।