दुनिया में जितने भी ब्रांड्स हैं, सबको अपना व्यापार चलना है। हाँ, व्यापार व कारोबार का रूप अलग हो जाता है। कारोबार चलाने के लिए मैनेजमेंट क्षेत्र से कई लोग हायर किए जाते हैं जो कम्पनी के प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए नई-नई रणनीतियाँ बनाते रहते हैं। ‘एक पर एक फ्री’ से लेकर ‘मुफ्त में कंघी, साबुन’ तक, कम्पनियाँ अपने प्रोडक्ट्स बेचने के लिए तरह-तरह की रणनीति बनाती रही हैं। लेकिन, अब माल बेचने का एक नया चलन चला है। पर्व-त्योहारों पर बुरा हिन्दू और अच्छा ‘शांतिप्रिय’ पेश करने का चलन। नैतिकता के भारी डोज़ के साथ माल बेचने का चलन।
कुछ उदाहरण देखते हैं। हाल में सोशल मीडिया पर रेड लेबल चाय के एक ऐड को लेकर आपत्ति जताई गई। इसमें एक हिन्दू श्रद्धालु गणेश जी की मूर्ति ख़रीदने के लिए मुस्लिम मूर्तिकार के पास जाता है। न तो दर्शकों और न ही उस व्यक्ति को पता होता है कि मूर्तिकार का मज़हब क्या है? लेकिन, हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड को यही तो हाइलाइट करना है। मज़हब। मूर्तिकार का मज़हब। जैसा कि दिखाया गया है, गणेश पूजा करने वाले व्यक्ति को अपने धर्म के बारे में, गणेश जी के बारे में, उनके मूषक के बारे में जानकारियाँ नहीं होतीं।
वहीं दूसरी तरफ, मुस्लिम मूर्तिकार को सब पता होता है। उसके ज्ञान पर हिन्दू व्यक्ति को आश्चर्य होता है। लेकिन, तभी वह समय आ जाता है जब वीडियो में जो दिखाना है, वह दिखता है। अजान का समय होता है और वह बूढा मुस्लिम मूर्तिकार इस्लाम वाली स्कल कैप लगा लेता है, जिसे देख कर ‘असहिष्णु’ हिन्दू ग्राहक चौंक जाता है। वह बिना मूर्ति ख़रीदे वापस जाने लगता है क्योंकि हिन्दू तो असहिष्णु होते हैं न? वे मुस्लिम मूर्तिकार से पूजा के लिए मूर्ति क्यों ख़रीदेंगे? बस, यहीं पर कम्पनी का प्रोपगेंडा सफल हो जाता है। इस ऐड का वीडियो यहाँ है:
फिर हिन्दू ग्राहक को अहसास होता है कि वह ग़लत था और वह अपनी ‘असहिष्णुता’ त्याग मूर्ति ख़रीद लेता है। क्या आप भी ऐसे हैं? क्या आप भी फूल-मालाएँ, पूजा के सामान से लेकर अगरबत्ती और दीपक ख़रीदने दुकानों पर निकलते हैं तो आपको भी दुकानदार का धर्म और मज़हब जानने की उत्सुकता रहती है? अगर आप बिहार से हैं तो क्या आप छठ से पहले बाजार में ऊँख और गागर निम्बू ख़रीदने जाते हैं तो क्या उस भीड़-भाड़ में आपको इससे मतलब होता है कि बेचने वाला/ वाली मुस्लिम है या ईसाई? नहीं न।
तो फिर आपको ऐसा क्यों दिखाया जा रहा है? ये कम्पनियाँ आपको आपकी किस ग़लती का एहसास करा रही हैं? आपको किस बात के लिए प्रायश्चित करने को कह रही है? रेड लेबल के ऐड में वो हिन्दू ग्राहक, जो कम्पनी के हिसाब से आपका प्रतिनिधि है, एक बूढ़े मुस्लिम को सामने देखते ही वहाँ से भागने क्यों लगता है? अगर हिन्दू कोई भी व्यवसाय कर रहा है तो वह पैसे के लिए करता है, लेकिन एक मुस्लिम कोई कारोबार कर रहा है तो वह इबादत क्यों है? इसका जवाब जानने से पहले कुछ और उदाहरण देखने पड़ेंगे।
रेड लेबल का एक और ऐड आया था। अगर आपको नहीं याद है तो याद कीजिए। उस दौरान प्रयागराज में कुम्भ चल रहा था और वह वीडियो भी कुम्भ के इर्द-गिर्द ही था। इसमें दिखाया गया था कि कुम्भ के मेले में लोग इसलिए जाते हैं ताकि वे अपने वृद्ध पिता को वहीं छोड़ आ सकें। ध्यान दीजिए, हज के दौरान ऐसा कभी नहीं होता। कुम्भ के दौरान ही होता है। इसी तरह ‘असहिष्णुता’ भी गणेश चतुर्थी के दौरान ही आती है, मुहर्रम के दौरान नहीं। कुम्भ वाले वीडियो में भी नालायक हिन्दू श्रद्धालु को अपनी ग़लती का एहसास होता है और वह अपने पिता को वापस ले आता है।
आपलोगों में से कइयों ने कुम्भ के दौरान पवित्र स्नान किया होगा। पूजा-पाठ किया होगा। कइयों ने अपने माता-पिता, सगे-सम्बन्धियों व मित्रों के साथ कुम्भ-स्नान किया होगा। बस एक सवाल है आप सभी से। आप में से कितनों ने अपने माता-पिता को कुम्भ में धक्का दे दिया? आप में से कितनों ने कुम्भ की योजना इसलिए बनाई ताकि घर के बुजुर्गों को वहाँ पर छोड़ कर आ सकें और फिर चैन की ज़िंदगी जी सकें? कुम्भ वाले वीडियो में, जो बेटा है, जो कम्पनी के हिसाब से आपका प्रतिनिधित्व करता है, उसे श्रद्धा या पूजा-पाठ से कुछ लेना-देना नहीं होता। उसे बस अपने बूढ़े बाप को धोखे से त्यागना है। वीडियो देखें:
पहला वाला वीडियो सितम्बर 2018 में आया। या तो हिन्दुओं ने विरोध-प्रदर्शन नहीं किया या फिर उनके विरोध का कोई असर ही नहीं हुआ और 6 महीने बाद ही मार्च 2019 में उसी प्रकार का वीडियो बना कर हिन्दुओं को नीचा दिखाया गया। इसके कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है हिंदुस्तान यूनिलिवर विरोध करने वाले हिन्दुओं को अशिक्षित मानती है। या फिर हो सकता है कि कम्पनी को लगता हो चंद लोग विरोध कर के भी क्या उखाड़ लेंगे। या यह भी हो सकता है कि कम्पनी ने हिन्दू ग्राहकों को ग्रांटेड लिया हो- उन्हें जूते से मारो फिर भी प्रोडक्ट तो हमारा ही ख़रीदेंगे।
कुम्भ जैसे सफल आयोजन, जो जनसँख्या, व्यवस्था और भागीदारी के हिसाब से संसार में सबसे अव्वल है- उसकी बदनामी कर अपना प्रोडक्ट बेचना कहाँ तक उचित है? हिन्दुओं की मानसरोवर यात्रा से जम्मू-कश्मीर के मुस्लिमों को रोज़गार मिलता है, जो पहाड़ी चढ़ने के लिए लाठियों से लेकर भोजन तक बेचते हैं। वे इंतज़ार करते हैं यात्रा का ताकि उनकी कमाई हो। वो इबादत के लिए नहीं, पेट के लिए ऐसा करते हैं। कितने हिन्दू हैं जो उनसे चीजें ख़रीदने से मना कर देते हैं?
यह आजकल का नया चलन है। हमने सर्फ एक्सेल का ऐड भी देखा था। उसमें एक हिन्दू लड़की एक मुस्लिम लड़के को नमाज पढ़ने के लिए ले जाती है। अपने मुस्लिम मित्र को ‘होली के दाग’ और रंगों से बचाते हुए वह ऐसा करती है। हिन्दुओं के बाद अब मुस्लिमों से भी सवाल पूछा जा सकता है। कितने मुस्लिम ऐसे हैं जो होली के दिन डर के मारे नमाज पढ़ने नहीं जा सकते? एक हिन्दू लड़की को हस्तक्षेप करना होता है तब वो ‘बेचारा’ मुस्लिम लड़का नमाज़ पढ़ने जा पाता है। होली ‘दागों’ वाला त्योहार है और नमाज पवित्र इबादत है। ये वीडियो भी देखें:
उपर्युक्त वीडियो फ़रवरी 2019 में आया था। सितम्बर 2018, फ़रवरी 2019 और फिर मार्च 2019- दिखाता है कि हिंदुस्तान यूनिलिवर को हिन्दुओं की भावनाओं, विरोध और विचारों से घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ता। रत्ती भर भी नहीं। अगर ऐसा होता तो हिन्दुओं की भावनाओं का अपमान करने, उन्हें ‘असहिष्णु’ दिखाने और होली को ‘दागदार’ बताने की हिमाकत वह 6 महीने में 3 बार नहीं करते। यही वो सारे वीडियोज हैं, जिससे मैक्डोनाल्ड्स को मुस्लिम हितों को ध्यान में रखते हुए केवल ‘हलाल मीट’ उपलब्ध कराने को विवश कर देते हैं।
ऐसा नहीं है कि मुस्लिम त्योहारों को लेकर ऐड नहीं बनाए जाते। वीडियो बनते हैं। ख़ूब बनाते हैं। रमजान के समय भी सर्फ एक्सेल का वीडियो बना था। उस दौरान उनके मज़हबी भावनाओं का पूरा ख्याल रखा जाता है। रमजान के दाग बुरे नहीं होते। रमजान के कारण किसी हिन्दू को अपने घर से निकलने में परेशानी नहीं होती। रमजान के दौरान कोई बेटा अपने बाप को भीड़ में नहीं छोड़ देता। रमजान के दौरान ताजिया बनाने वाले को हिन्दू देख कर कोई मुस्लिम भागता नहीं। क्यों? क्योंकि वह सहिष्णु है। यह सब तो होली और कुम्भ में होता है न। कितना सम्मान करते हैं न ये हमारा, हमारे धर्म का और हमारे त्योहारों का?
इन सबका जवाब यह है कि हिन्दू समाज आज अपनी ही संस्कृति, दर्शन और इतिहास का मज़ाक बनाने वालों का पोषक बना हुआ है। जरा सोचिए कि वेटिकन में यीशु को लेकर ऐसा कोई वीडियो बनता है तो क्या होगा? सऊदी में पैगम्बर मुहम्मद को लेकर कुछ इस प्रकार का वीडियो बना तो क्या होगा? सऊदी और वेटिकन छोड़िए, दुनिया के किसी भी प्रान्त में ऐसा हुआ तो क्या होगा? भारत में मुहम्मद पर टिप्पणी करने पर कमलेश तिवारी को जेल होती है। चार्ली हैब्दो में पैगम्बर को लेकर कार्टून भर छप जाने से 12 लोगों को मार डाला जाता है। केरल में पादरी के यौन-शोषण पर इनामी कार्टून बनाने वाले को मिले पुरस्कार पर पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़ता है।
यह क्या दिखाता है? सहिष्णु कौन। अपने मज़हब, पैगम्बर और समाज पर एक टिप्पणी भर से जानें ले लेने वाले सहिष्णु। अपने पैगम्बर पर टिप्पणी भर से किसी व्यक्ति को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भी जेल भिजवा देने वाले सहिष्णु। अपने बलात्कार आरोपित पादरी के ख़िलाफ़ कार्टून भर बन जाने से सरकार को हिला डालने वाले सहिष्णु। और हाँ, असहिष्णु कौन? अपने त्योहार को ‘दागदार’ बताने वालों का प्रोडक्ट ख़रीदने वाला असहिष्णु। ख़ुद की इमेज ‘असहिष्णु’ दिखाए जाने के बावजूद ट्विटर पर चूँ भर कर चुप हो जाने वाला असहिष्णु। ख़ुद को बुजुर्गों को भगा देने वाला नालायक वंश बताने पर भी सिर्फ़ देखते रहने वाला असहिष्णु।