मॉर्डन होने के नाम पर आज सबसे पहले हिंदू मान्यताओं को तार-तार करने का काम तेजी से हो रहा है। इसी क्रम में विवाह की अवधारणा को भी तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। ये बात सामान्य बनाई जा रही है कि विवाह खुद से भी हो सकता है। जरूरी नहीं कि मंगलसूत्र और सिंदूर लगाने के लिए किसी आदमी के साथ ही रहना पड़े।
आपने कुछ दिन पहले क्षमा बिंदु के बारे में सुना होगा। खुद से विवाह रचाने वाली पहली महिला। इसके बाद आप कनिष्का सोनी के बारे में भी सुन रहे होंगे जिन्हें आदमियों पर यकीन नहीं है इसलिए उन्होंने खुद से शादी कर ली है।
उनका कहना है कि सेक्स के लिए आदमी की जरूरत नहीं होती है। तकनीक इतनी बढ़ गई है कि लड़कियाँ खुद खुश रह सकती हैं। इसके अलावा अगर सिंदूर-मंगलसूत्र पहनना है तो खुद से शादी करके भी पहना जा सकता है, ये भी इन लोगों का तर्क है।
अब जाहिर सी बात है कि खुद को भारतीय संस्कृति से जुड़ा दिखाकर जो खुद से सिंदूर-मंगलसूत्र लगाने की बातें की जा रही है, इन लोगों को इनका अर्थ और मायने तक नहीं मालूम होंगे। इन्हें केवल एक शो-पीस की तरह इन आभूषणों का इस्तेमाल करना है और दुनिया को ये बताना है कि अब तक जो शादी विवाह हुए वो केवल सेक्स के लिए हुए। बच्चे पैदा करने के लिए हुए। इसके अलावा और किसी काम के लिए नहीं।
केवल सेक्स के लिए नहीं होती शादियाँ
इनके तर्कों पर यदि भारतीय संस्कृति को देखेंगें तो शायद हर परिवार, हर दंपत्ति से घृणा करने लगें और हर औरत के माथे में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र एक बंदिश या कोई आभूषण मात्र लगे। लेकिन इनके तर्कों से ऊपर भी लोग हैं जिनके लिए शादी-विवाह मजाक नहीं है। कोई ऐसी रस्म भर नहीं है जिसे अकेले में निभा लिया जाए और फोटो अपलोड कर दी जाए। इनके मायने हैं। इनके अर्थ हैं। शादी के वक्त लिए जाने वाले सात फेरों से लेकर माँग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र का अर्थ है।
आधुनिक समाज में कोई किसी को रोकने नहीं जाता कि उन्हें खुद से शादी करनी है तो वो ऐसा न करें। क्षमा ने भी ऐसा किया था और कनिष्का ने भी यही किया है। हो सकता है आने वाले समय में और ऐसे उदाहरण देखने को मिलें। लेकिन इस नए किस्म के आधुनिकीकरण में पौराणिक मान्यताओं का मखौल नहीं उड़ना चाहिए। ऐसे अनगिनत लोग हैं जो शादी को जीवन भर का साथ मानते हैं और बुढापे के अंतिम क्षण तक एक दूसरे का हर घड़ी साथ देते हैं। पवित्र रिश्ते को सेक्स में सीमित कर देना केवल तुच्छ और कुंद मानसिकता का उदाहरण है।
कोर्ट ने बताई सिंदूर-मंगलसूत्र की महत्ता
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक तलाक को खारिज करते हुए भारतीय महिलाओं के लिए सिंदूर और मंगलसूत्र की महत्ता को बताया था। कोर्ट ने कहा था, “हिंदू धर्म में शादीशुदा औरत के सुहाग और सिंदूर की अहमियत होती है। समाज उनको उसी नजरिए से देखता है। पत्नियाँ अपने पति से अलग भी रहें तो वो सिंदूर के सहारे अपना जीवन काट लेती हैं।”
कोर्ट ने यह टिप्पणी,उस महिला की अर्जी पर की थी जो अपनी शादी को बहाल करवाने की माँग लेकर आई थी। 18 साल से पति से अलग रहने के बावजूद महिला चाहती थी कि उससे उसके विवाहिता होने का दर्जा न छीना जाए।
उसने कोर्ट को बताया कि वह अपने पति के घर पर किसी क्रूरता का शिकार नहीं हुई और न ही अपनी मर्जी से घर छोड़कर आई है। वह नहीं चाहती कि उसके वैवाहिक होने का दर्जा बदला जाए। वहीं मध्य प्रदेश का भिंड निवासी पति ने कहा कि वो अब ‘साधु’ हो चुका है। वो वैवाहिक जीवन में प्रवेश नहीं कर सकता इसलिए उसने तलाक लिया है।
दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यू यू ललित की अगुआई वाली बेंच ने अपनी टिप्पणी दी। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से समाज अकेली महिलाओं के साथ व्यवहार करता है, उसे देखते हुए विवाह और विवाह की स्थिति की अवधारणा काफी महत्वपूर्ण है। महिलाओं के लिए शादी का बहुत महत्व है। इसलिए कोर्ट तलाक को रद्द करेगी और इससे पति की स्थिति पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।