किसी महान विचारक ने कहा था कि जो आदमी दूसरों के लिए गड्डा खोदता है, एक दिन वो खुद ही उस गड्डे में गिर जाता है। फिर एक दिन, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) के हस्तक्षेप के बाद भारत में लगभग 250 ट्वीट्स और ट्विटर अकाउंट पर रोक लगा दी गई। और इस तरह भारत के वाम-उदारवादियों ने उस दवा का स्वाद चखा, जिसे वो बस दूसरों के लिए ही इस्तेमाल करते आए थे।
यह एक्शन उन अकाउंट के खिलाफ की गई, जो गत शनिवार को ट्विटर पर #ModiPlanningFarmerGenocide हैशटैग ट्रेंड करते हुए फर्जी और भड़काऊ सामग्री ट्वीट कर रहे थे। जिन लोगों के ट्विटर अकाउंट पर फिलहाल रोक लगाई गई है, उनमें वामपंथी फेक न्यूज़ वेबसाइट ‘कारवाँ’ का ट्विटर अकाउंट, कॉन्ग्रेस समर्थक संजुक्ता बसु से लेकर सुशांत सिंह जैसे ‘नरसंहार परस्त’ दंगाई मानसिकता के लोग शामिल हैं।
ये अकाउंट ब्लॉक क्या किए गए कि हमेशा की तरह ही वामपंथी, और कथित उदारवादी गिरोह का दोहरा चरित्र फिर सामने आ गया। ट्विटर पर बैठा उदारवादी वामपंथी गिरोह फ़ौरन सक्रीय हो गया और ट्विटर को फासिस्ट बताने लगा। विरोध करने वाले ये वही ‘निष्पक्ष’ उदारवादी लोग हैं, जो कुछ ही दिन पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्विटर अकाउंट बंद किए जाने का जश्न मना रहे थे। यही वामपंथ का वास्तविक चरित्र भी है- दूसरी किसी भी आवाज या विचारधारा का दमन!
Yes😂 https://t.co/FEmtGlIcx3 pic.twitter.com/RzIpzSYufR
— Arya Stark (@paharganj2paris) February 1, 2021
हालाँकि, डोनाल्ड ट्रंप का ट्विटर अकाउंट प्रतिबंधित कर दिया जाना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों के नरसंहार की योजना बनाने वाला बताने वालों पर अस्थाई रोक, ये दोनों ही घटनाएँ एकदम अलग हैं।
ट्विटर ने डोनाल्ड ट्रंप पर प्रतिबंध सिर्फ इस नतीजे पर पहुँचकर लगाया कि उनके कहने या उकसाने पर ही उनके समर्थकों ने अमेरिकी संसद में हुई घटना को अंजाम दिया। इसके कुछ ही दिनों बाद भारत में गणतंत्र दिवस के अवसर पर कथित किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर दंगे-फसाद किए गए।
इन्हीं किसान आंदोलनों के बीच जिन अकाउंट पर रोक लगाई गई, वो किसानों के नरसंहार किए जाने जैसी किसी काल्पनिक स्थिति का भय बेच रहे थे और वह भी लोकतान्त्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री के हाथों! यह द्वेष की भावना से फैलाया जा रहा भय फर्जी ख़बरों के आधार जो विनाशकारी परिणाम और हिंसा को जन्म दे सकता है।
इसके बावजूद, वाम-उदारवादी यह दावा करते देखे जा सकते हैं कि इन ट्विटर अकाउंट पर रोक लगाया जाना फासीवादी फैसला था। ये वाम-उदारवादी आज इन्हीं दंगाई मानसिकता वाले लोगों का समर्थन करते सिर्फ इस वजह से नजर आ रहे हैं क्योंकि वो एक ही राजनीतिक विचारधारा, या यूँ कहें कि पूर्वग्रहों का समर्थन करते हैं।
निश्चित तौर पर, जो लोग उन दंगाई मानसिकता के लोगों के अकाउंट पर रोक लगने पर रुदन कर रहे हैं, अराजकता का भी समर्थन करते हैं, और नहीं चाहते कि किसानों का प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से किसी निष्कर्ष पर पहुँचे।
इसी बहाने, भारत के वाम उदारवादियों का चरित्र एक बार फिर खुलकर सामने आ ही गया है। वो जो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के ध्वजवाहक थे, डोनाल्ड ट्रंप की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने पर खुश थे मगर आज अब अपने ही गिरोह पर लगे प्रतिबंध (वह भी अस्थाई) पर बिलख रहे हैं।