जरूरी नहीं कि छपाक के बारे में जानने के लिए कोई बड़ी-मोटी किताबें पढ़ी जाएँ। बिहार के लोग छपाक का मतलब अच्छी तरह जानते हैं। यहाँ एक ऐसा दौर था जिसे जंगलराज कहा जाता है। सिवान में एक अपराधी शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। बिहार से सभी लोग पलायन तो नहीं करते, या कर पाते, कुछ लोग यहीं रहते भी हैं। चंद्रशेखर प्रसाद उर्फ़ चंदा बाबू अपनी पत्नी और बच्चों के साथ इसी सिवान में गुज़र-बसर कर रहे थे। शहर के मुख्य बाजार में उनकी दो दुकानें थी। अगस्त 2004 में उनसे शहाबुद्दीन के गुंडों ने रंगदारी मांगी और उन्होंने मना कर दिया।
राजद के नेता को रंगदारी देने से इनकार! चन्दा बाबू की दुकानें लूट ली गई और उनके बेटों को उठा लिया गया। दो भाइयों सतीश और गिरीश रौशन को अगस्त 2004 में बेरहमी से तेज़ाब से नहला कर मौत के घाट उतार दिया गया था। जब राजद का सांसद, शहाबुद्दीन दो भाइयों को तेज़ाब से नहलाकर मार रहा था तो चंदा बाबू का एक बेटा राजेश वहीं बाँध कर रखा गया था। इन दोनों भाइयों की हत्या के चश्मदीद गवाह रहे तीसरे भाई राजेश रौशन को भी बाद में गोलियों से उड़ा दिया गया था। अगर आप सोच रहे हैं तेज़ाब से नहलाकर क़त्ल करने के लिए शहाबुद्दीन गिरफ़्तार हुआ होगा, तो ऐसा नहीं है।
बाद में जब सरकार बदली तब कहीं जाकर उसे गिरफ़्तार किया गया। सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से वो ‘ए टाइप‘ मुजरिम है, यानि जिसके सुधारने की कोई संभावना ना हो, वैसा अपराधी। उसके गिरफ़्तार होने के बाद भी जेल में ‘दरबार‘ लगाने की घटनाएँ आम रहीं। छापे मारकर जेल से यदा कदा मोबाइल ज़ब्त करवाए जाते रहे। जब तेज़ाब काण्ड के चश्मदीद गवाह, चंदा बाबू के तीसरे बेटे की हत्या हुई थी तब भी शहाबुद्दीन ने इसे जेल से ही अंजाम दिया था। फ़रवरी 2012 में सिवान से ही मुन्ना खान नाम का एक अपराधी गिरफ़्तार हो गया।
ये शहाबुद्दीन का पुराना गुर्गा था। इस पर चंद्रशेखर उर्फ़ कॉमरेड चंदू को सरे बाजार गोलियों से भून डालने का आरोप था। जेएनयू के छात्र नेता रहे कॉमरेड चंदू की हत्या शहाबुद्दीन के ही आदेश पर हुई थी। गुंडे शाहबुद्दीन ‘छपाक’ की हैसियत का अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि सितम्बर 2016 में जब शाहबुद्दीन ‘छपाक’ को ज़मानत मिली, तो जेल से निकले उसके काफ़िले में 4 मंत्री, 30 सरकारी गठबंधन के विधायक, कुल 1300 गाड़ियों का काफ़िला था। उस दौर में सुशासन बाबू ख़ुद को ’32 दाँतों के बीच जीभ’ बताते थे। क़रीब-क़रीब इसी दौर में राजदेव रंजन की हत्या हुई थी।
कहने को राजदेव रंजन को पत्रकार बताया जाता है, लेकिन पद के हिसाब से देखें तो वो काफी ऊँचे ओहदे पर थे। सरेआम हुई उनकी हत्या के बाद तथाकथित ‘निष्पक्ष और निर्भीक’ कहलाने वाले पत्रकार भी लम्बे समय तक शाहबुद्दीन ‘छपाक’ के विरोध में कुछ नहीं लिख पाए। हाँ, इस हत्या के विरोध में अख़बार का मुख्य पन्ना ज़रूर ब्लैक एंड व्हाइट कर दिया गया था (सिर्फ़ उस अख़बार का जहाँ राजदेव रंजन नौकरी करते थे)। जब आप ‘छपाक’ की बात करेंगे तो भला शहाबुद्दीन ‘छपाक’ का नाम बिहार के लोगों को कैसे याद नहीं आएगा?
इस मामले को याद करने का एक दूसरा कारण भी है। कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद वकील भी हैं। उन्होंने अपने मुवक्किल शहाबुद्दीन ‘छपाक’ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि उसे एकांतवास में क्यों रखा गया है और उसे क्या हमेशा एकांतवास में ही रखा जाएगा? ‘नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए शहाबुद्दीन ‘छपाक’ को जेल में नमाज़ पढ़ने की जगह देने की माँग भी की गई है! इससे पहले इस आशय की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में भी दायर की गई थी। बाकी फ़िल्म ‘छपाक’ और उससे जुड़े हंगामे का शोर ज़्यादा है। देखिएगा, कहीं नक्कारखाने में तूती की आवाज़ की तरह शहाबुद्दीन ‘छपाक’ के एसिड अटैक भुला ना दिए जाएँ।