ऐसे समय में, जब पूरा विश्व चीन के वुहान प्रांत से शुरू हुए इस कोरोना (COVID-19) जैसी महामारी से लड़ रहा है, चीन की सरकार द्वारा ऐसे मीडिया कैम्पेन चलाए जा रहे हैं, जो न केवल विक्टिम कार्ड के उद्देश्य से तैयार किए गए हैं, बल्कि ‘नस्लीय’ और ‘पूर्वग्रह’ का प्रलाप करते हुए सबका ध्यान चाइनीज वायरस के उदय से हटाने का भी प्रयास कर रहे हैं। और ऐसा करने में उसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया और राजनीति के लिबरल वर्ग का भी पूरा समर्थन मिल रहा है।
यह सर्वविदित है कि कोरोना वायरस के संक्रमण ने नवम्बर 2019 से ही अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी थी। जनवरी 14, 2020 तक भी चीन की सरकार ने यह दावा किया कि यह वायरस एक से दूसरे इंसान के संपर्क से नहीं फैलता है। WHO के एक ट्वीट से यह पुष्टि होती है कि किस तरह से चीन ने दुनिया को बेवकूफ बनाने की कोशिश की है।
WHO के ट्वीट में चीनी अधिकारियों के इस दावे का हवाला दिया गया है कि नावेल कोरोनो वायरस मानव द्वारा संक्रमित नहीं होता है। यह एक ऐसा दावा था जिसकी पोल चीन में हुई हजारों मौतों के बाद अब इटली के अलावा दुनिया के अन्य देशों में बड़े पैमाने पर हुई मौतों ने खोल दिया है। बड़े पैमाने पर फैलने के मुख्य कारणों में से एक मानव द्वारा होने वाला संक्रमण ही है।
कोरोनो वायरस, एक ऐसे वायरस से सम्बंधित है, जो जूनोटिक यानी, पशुजन्य है। यह जानवरों से मनुष्यों और लोगों के बीच फैलता है। कोरोना वायरस एक अत्यधिक संक्रामक, घातक श्वसन रोग है, जिसका प्रकोप सबसे पहले वुहान, चीन में बताया गया था। वायरस का संचरण तब होता है जब कोई संक्रमित व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के संपर्क में आता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ खाँसना, छींकना या यहाँ तक कि हाथ मिलाने से भी इसे फैलने का मौका मिल सकता है।
वहीं, दक्षिण कोरिया के एक खास धार्मिक समूह के लोगों में कोरोना वायरस तेजी से फैल रहा है। दक्षिण कोरिया में अब तक मिले कोरोना के मरीजों में से आधे लोग यानी, 1600 संक्रमित शिन्चोओनजी चर्च ऑफ जीसस से जुड़े बताए जा रहे हैं। व्यापार और पर्यटन के माध्यम से बड़ी संख्या में चीनी यात्री इटली जाते हैं जो कि अभी तक इस वायरस के संक्रमण से दूसरा सबसे अधिक प्रभावित देश है।
ऐसी रिपोर्ट भी अब सामने आ रही हैं जिनमें देखा जा रहा है कि किस तरह से चीनी अधिकारियों ने उन डॉक्टरों और शोधकर्ताओं को चुप कराने की कोशिश की जिन्होंने इस बीमारी और इसके संभावित खतरों के बारे में सतर्क करने की कोशिश की थी।
वुहान केंद्रीय अस्पताल के आपातकालीन विभाग के एक डॉक्टर ने 30 दिसंबर को अपने सहकर्मियों के साथ डायाग्नोस्टिक रिपोर्ट साझा की थी, जिसमें एसएआरएस (SARS) जैसी महामारी के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी, लेकिन अस्पताल के अधिकारियों द्वारा इसकी यह कहकर निंदा की गई थी कि यह अफवाहें फैलाने वाली बात है। डॉक्टर को उसके परिवार के साथ भी इस बारे में बोलने से मना किया गया था।
डॉक्टर ली वेनलियांग ने अपने साथियों को कहा था कि वह अपने परिजनों को इस बारे में गोपनीय तरीके से बता दें। मगर उनका स्क्रीनशॉट कुछ ही समय में वायरल हो गया। वुहान के स्वास्थ्य प्रशासन ने ली को नोटिस भेजकर पूछा कि आखिर आपको इस बारे में कैसे पता चला। डॉक्टर ली को लिखित में ऐसा दोबारा नहीं करने की बात कहते हुए माफी माँगनी पड़ी। बाद में खुद डॉक्टर ली खुद कोरोना वायरस का शिकार हो गए। और बाद में उनका निधन हो गया।
चीन ने यात्रा प्रतिबंध और लॉकडाउन को भी बहुत देर से लागू किया था। चीनी अधिकारियों ने कथित तौर पर मरीजों के सेम्पल्स को भी नष्ट कर दिया, आवाज उठाने वालों को धमकी दी और यहाँ तक कि तेजी से फैलने वाली संभावित महामारी की रिपोर्ट्स पर भी सक्रिय रूप से निगरानी रखी। अब कुछ ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं जिनमें परीक्षण किए जा रहे जीनोमिक्स के नमूने वुहान अधिकारियों के आदेश पर नष्ट कर दिए गए थे।
3 जनवरी को, चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयुक्त ने कथित तौर पर सभी प्रयोगशालाओं को किसी भी जानकारी को प्रकाशित नहीं करने का आदेश दिया था और वायरस के सभी परीक्षण नमूने छीन लिए थे। WION की एक रिपोर्ट ने घटनाक्रम को संक्षेप में प्रस्तुत किया है।
#Gravitas | China is now trying to shift blame for the coronavirus outbreak.
— WION (@WIONews) March 18, 2020
But, fresh reports have emerged that expose how China destroyed the evidence to cover-up the outbreak. @palkisu tells you more. pic.twitter.com/AfOYQ35pox
इसके बाद अचानक से दुनिया भर के देशों के इस महामारी ले शिकार होने और यात्रा प्रतिबंध लगाने के बाद, चीन ने ‘नस्लवाद’ जैसे प्रपंच उठाने की भी कोशिश की और यहाँ तक कि अमेरिकी सेना को इस भीषण महामारी के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने स्पष्ट रूप से इसे जैसे ही ‘चीनी वायरस’ की संज्ञा दी, चीनी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय उदारवादियों ने ‘विक्टिम कार्ड’ खेलकर खुद को पीड़ित साबित करने की भी कोशिश की। उनका दावा है कि महामारी को चीनी बीमारी और चीनी वायरस और वुहान वायरस जैसे शब्द कहना नश्लीय और जातिवादी है।
चीन का ‘अतिसक्रिय’ प्रोपेगेंडा-तंत्र अपनी धरती से शुरू हुए इस वैश्विक महामारी को छुपाने के लिए अपनी क्षमता से ज्यादा काम करती हुई स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यही नहीं, भारत द्वारा चीन को की जा रही मदद के बावजूद भी चीन भारत पर ‘चीन-विरोधी’, नस्लीय और जातिवादी होने का आरोप लगा रहा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथहैम्पटन के एक अध्ययन में कहा गया है कि यदि चीनी अधिकारियों ने कम से कम 1 सप्ताह, 2 सप्ताह या 3 सप्ताह पहले बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए सक्रिय उपाय करना शुरू कर दिया होता तो वे कोरोना वायरस के संक्रमण को विश्वभर में फैलने से क्रमश 66%, 86% और 95% तक रोक सकते थे।
वुहान कोरोना वायरस चीन के वन्यजीव और समुद्री खाद्य बाजारों में शुरू हुआ। वन्यजीवों की खपत और माँग ने दुनिया की कई प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर ला दिया है। इस पर चीनी अधिकारियों की लापरवाही और इसे छुपाने की कोशिश ने दुनिया को एक महामारी से लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। लेकिन इस सबके इतर, चीन सिर्फ इस बात से नाराज है क्योंकि उसने जिस महामारी को जन्म दिया है, उसे ‘चीनी वायरस’ कहा जा रहा है।
नोट: यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में संघमित्रा द्वारा लिखा गया है, जिसका हिंदी अनुवाद आशीष नौटियाल द्वारा किया गया है। अंग्रेजी में इस लेख की मूल प्रति आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।