अमेरिका से आज तीन बड़ी ख़बरें आई हैं, जिससे पता चलता है कि भारत-अमेरिका के बीच न सिर्फ़ सम्बन्ध सुधर रहे हैं बल्कि पाकिस्तान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान को लेकर अमेरिका को ब्लैकमेल करने का सिलसिला भी अब थमता नज़र आ रहा है। जैसा कि सर्वविदित है, अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण पाकिस्तान एक ऐसी स्थिति में है जिससे अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान में फ़ायदा मिलता है। इसी नाम पर उसे विश्व महाशक्ति से अरबों डॉलर मिलते रहे हैं। चीन भी पाकिस्तान और उत्तर कोरिया से अच्छे सम्बन्ध होने के कारण अमेरिका को ब्लैकमेल करता रहा है। हालाँकि, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में शांति और विकास के लिए कई ऑपरेशन चला रखे हैं जिसमें लाइब्रेरी, घर से लेकर अन्य क्षेत्रों में किए गए कार्य शामिल हैं। भारत के इन प्रयासों से अफ़ग़ानिस्तान में भी पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति अब लगभग ख़त्म हो गई है।
भारत द्वारा एंटी-सैटेलाइट मिशन के सफल परीक्षण के बाद कई लोगों को आशंका थी कि विश्व समुदाय से कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया आएँगी, जैसी चीन के समय आई थी। उस समय अमेरिका, जापान और रूस सहित कई देशों ने अंतरिक्ष सैन्यीकरण से लेकर चीन की इस तकनीक पर चिंता जताई थी। आज जब भारत ने मिशन शक्ति की घोषणा की, प्रधानमंत्री मोदी ने साफ़ कर दिया कि हमारा देश विश्व शांति का वाहक है और इन तकनीकों का प्रयोग कृषि, मेडिकल और शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में अच्छे कार्यों के लिए होना चाहिए। आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ सुन्दर पिचाई की बैठक हुई, जिसमे चीन को लेकर भी बातचीत हुई। इसी तरह अमेरिका अब मसूद अज़हर पर भी सख़्त हो चला है।
आगे हम उपर्युक्त तीनों ख़बरों का विश्लेषण कर यह समझने की कोशिश करेंगे कि अमेरिका के इस रुख़ से भारत को कितना फ़ायदा मिलने वाला है और इसके क्या मायने हैं? भारतीय कूटनीति की सफलता के पीछे विदेश मंत्रालय की पूरी मशीनरी की सफलता है, जिसके परिणाम अब फलीभूत हो रहे हैं।
1. मसूद अज़हर पर अमेरिका सख़्त, चीन को किया नज़रअंदाज़
जैसा कि हम आपको कई बार बता चुके हैं, चीन में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार किया जाता है और मुस्लिम इससे अछूते नहीं हैं। मुस्लिमों को चीन में अपने रीति-रिवाजों तक का अनुसरण करने का अधिकार नहीं है और ज़रा सी ग़लती या शक़ की गुंजाईश पर उन्हें कड़ी सज़ा दी जाती है। उधर चीन मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने के प्रस्तावों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अब तक 4 बार अड़ंगा लगा चुका है। अमेरिका ने चीन के इसी दोमुँहे रवैये को निशाने पर लिया है। अमेरिकी सेक्रटरी ऑफ स्टेट माइक पोम्पिओ ने चीन के इस रवैये को ‘बेशर्म कपट (Shameless Hypocrisy)’ नाम दिया है। चीन की इस बेशर्मी को उन्होंने आड़े हाथों लिया। अमेरिका अब इस प्रस्ताव पर सख़्त हो चला है।
China has detained more than one million #Uighurs, ethnic #Kazakhs, and other #Muslim minorities in internment camps in #Xinjiang since April 2017. The U.S. stands with them and their family members. China must release all those arbitrarily detained and end its repression.
— Secretary Pompeo (@SecPompeo) March 27, 2019
ब्रिटेन और फ्रांस के साथ मिलकर अमेरिका ने मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने के लिए UNSC में प्रस्ताव पेश किया था लेकिन चीन ने इसे ब्लॉक कर दिया। आपको बता दें कि चीन के अलावा बाकी सारे सुरक्षा परिषद राष्ट्रों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। अमेरिका ने इसे अपने अहम पर हमला के तौर पर देखा है। चीन और अमेरिका के बीच पहले से ही छिड़े ट्रेड वॉर के बीच आतंकवाद को लेकर भी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इसीलिए अमेरिका ने मानवाधिकार तले चीन के प्रति वही रवैया अपनाया है, जो चीन दूसरे देशों के प्रति आजमाता रहा है। अमेरिका ने सीधा चीन के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए उसे निर्दोष मुस्लिमों को सताना बंद करने और पकड़े गए को जेल से रिहा करने को कहा है।
Exactly! The world needs to wake up! Thank you Mr.Pompeo!
— 麦弟 (@Dinggwg2017) March 28, 2019
अमेरिकी स्टेट सेक्रटरी ने चीन द्वारा शिनजियांग में चलाए जा रहे दमनकारी अभियान के पीड़ितों व उनके परिवारों से भी मुलाक़ात की। ज़ाहिर है, भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल सहित कई देशों के आंतरिक मुद्दों में टांग अड़ाने वाला चीन इसे अपनी सम्प्रभुता पर चोट के तौर पर देखेगा। अमेरिका ने इस बार बिलकुल सही जगह वार किया है। मानवाधिकार हनन अंतरराष्ट्रीय पटल पर चीन की सबसे बड़ी कमज़ोरी है और अमेरिका ने इसी कमज़ोरी को निशाना बनाया है। चीन का बार-बार कहना है कि वो मसूद अज़हर वाले प्रस्ताव पर और अधिक अध्ययन करना चाहता है। पुलवामा हमले के बाद भारत के आतंकवाद के प्रति कड़े रुख़ को भाँप चुके विश्व समुदाय को पता चल चुका है कि भारत अब किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने को सक्षम है।
2. अमेरिका ने ‘मिशन शक्ति’ को लेकर भारत का किया समर्थन
आज सुबह अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट में मिशन शक्ति पर आधिकारिक रूप से भारत के साथ खड़े होने की बात की और कहा, “हमने एंटी सेटेलाइट सिस्टम के परीक्षण पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान को देखा। भारत के साथ अपने मज़बूत सामरिक साझेदारी के मद्देनज़र, हम अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्रों में सहयोग सहित, अतंरिक्ष सुरक्षा में सहभागिता के साझा हितों पर लगातार साथ मिलकर काम करते रहेंगे। इससे उन लोगों को ख़ासा धक्का लगा है, जो इस उम्मीद में बैठे थे कि अमेरिका इस क़दम की आलोचना करेगा और भारत को आगाह करेगा।
US State Dept on #MissionShakti: Saw PM Modi’s statement announcing India’s anti-satellite test. As part of our strong strategic partnership with India,we’ll continue to pursue shared interests in space&scientific&technical cooperation including collaboration on security in space
— ANI (@ANI) March 28, 2019
आज सुबह अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट में मिशन शक्ति पर आधिकारिक रूप से भारत के साथ खड़े होने की बात की और कहा, “हमने एंटी सेटेलाइट सिस्टम के परीक्षण पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान को देखा। भारत के साथ अपने मज़बूत सामरिक साझेदारी के मद्देनज़र, हम अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्रों में सहयोग सहित, अतंरिक्ष सुरक्षा में सहभागिता के साझा हितों पर लगातार साथ मिलकर काम करते रहेंगे।” अमेरिका ने बस अंतरिक्ष कचरे को लेकर छोटी-सी चिंता ज़ाहिर की गई है जबकि चीन के एंटी-सैटेलाइट मिशन के समय व्हाइट हाउस ने चीन के इस कार्य के लिए चिंता जताई थी और कहा था कि न सिर्फ़ अमेरिका बल्कि अन्य देश भी इससे चिंतित हैं।
आज स्थिति उलट गई है। अमेरिका ने भारत के साथ सहयोग करने की बात की है, वो भी हर एक क्षेत्र में। जब अमेरिका इन मुद्दों पर अपनी राय किसी देश के साथ रखता है, इसका मतलब यह होता है कि बाकी देशों को भी इससे समस्या नहीं होती। यूँ तो चीन ने भी इस पर समझदारी भरी बात कही है और बयान देने के लिए ही बयान दिया है जो कि एक टैम्पलेट टाइप का बयान है जहाँ हर राष्ट्र इस तकनीक और शांति की बात करता दिखता है। कुल मिलकर अमेरिका के इस बयान के बाद विश्व समुदाय के सभी देशों के बयान इसी अनुरूप होंगे। वैसे भी, आतंकवाद के मुद्दे पर गंभीर भारत के साथ यूरोप के भी अधिकतर देश खड़े नज़र आ रहे हैं।
3. ट्रम्प-पिचाई ने चीन की उम्मीदों पर फेरा पानी
एक ख़बर ऐसी भी है जो ऊपर की बाकी दो ख़बरों के नीचे दब गई और जिन पर आपका ध्यान नहीं गया होगा। वाशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और विश्व की प्रमुख सर्च इंजन गूगल के सीईओ सुन्दर पिचाई के बीच एक बैठक हुई है। विश्व की शीर्ष पाँच आईटी कंपनियों में शामिल अल्फाबेट इंक के मालिकाना हक़ वाली गूगल ने भी साफ़ कर दिया है कि वो ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेगा, जिससे चीनी सेना को फ़ायदा पहुँचे। ट्रम्प ने एक क़दम आगे बढ़कर कहा कि सूंदर पिचाई और उनकी कम्पनी पूरी तरह अमेरिकी सेना के प्रति प्रतिबद्ध है, चीनी सेना के प्रति नहीं। ट्रम्प के इन दो ट्वीट्स को देखिए:
….Also discussed political fairness and various things that @Google can do for our Country. Meeting ended very well!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) March 27, 2019
चीन को लेकर पैरेंट कम्पनी अल्फाबेट और उनकी इकाई कम्पनी गूगल की राय थोड़ी अलग है। अल्फाबेट का मानना है कि किसी भी कम्पनी को चीन में व्यापार होने के लिए कुछ समझौते करने पड़ते हैं। यही कारण है कि किसी भी कम्पनी की चीन इकाई और वैश्विक इकाई के बीच अंतर होता है। 2010 में चीनी सरकार ने गूगल को कुछ लिंक्स और सामग्रियाँ हटाने को कहा था, जिससे इनकार करते हुए गूगल वहाँ से निकल गया था। अब ट्रम्प की इस बैठक और बयान के बाद चीन और अमेरिका के बीच का ट्रेड वॉर और व्यापक रूप ले लेगा, ऐसी संभावना है।
ऊपर के इन तीनो घटनाक्रम को देखें तो पता चलता है कि मानवाधिकार और आतंकवाद से लेकर रक्षा और उद्योग तक, चीन जहाँ अलग-थलग पड़ता नज़र आ रहा है, वहीं अमेरिका एकदम भारत के साथ खड़ा नज़र आ रहा है। 24 घंटे के अंदर में अमेरिका जैसे महाशक्ति से तीन सुखद ख़बरों का आना भारतीय कूटनीति के लिए एक अच्छा संकेत है।