Sunday, December 22, 2024
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15000 स्क्वायर किलोमीटर जंगल भी बढ़े और आदिवासी तरक्की के रास्ते में विकास के पार्टनर भी: प्रकाश जावड़ेकर

"UPA के विपरीत अगर विकास होता है तो आदिवासियों का भी विकास होता है। अब आदिवासियों को जमीन के पट्टे मिलने लगे हैं। बाँस के वन निर्माण का अधिकार आदिवासियों को दिया है। ये नया तरीका है। आदिवासी तरक्की के रास्ते में पार्टनर बन गए हैं, वो खिलाफ नहीं हैं।"

केंद्रीय मंत्री (पर्यावरण, सूचना एवं प्रसारण, भारी उद्योग) प्रकाश जावड़ेकर ने ऑपइंडिया को दिए इंटरव्यू में कई मुद्दों पर अपनी बात काफी मुखरता के साथ रखी। हमने उनसे तीनों मंत्रालय के साथ-साथ बिहार-महाराष्ट्र की राजनीति, ‘OTT प्लेटफॉर्म सेल्फ-रेग्युलेशन, फेक न्यूज और रिपब्लिक मीडिया समेत कई मुद्दों पर बातचीत की। 

यहाँ पर इंटरव्यू के अंश सवाल-जवाब के रूप में पेश हैं-

सवाल: कुछ जगहों पर सड़कों के लिए रास्ते कटे हुए हैं, लेकिन उन पर पीचिंग नहीं हो पा रही है यानी सामान्य सड़क नहीं बनाया जा रहा है, जो इस तरह की समस्याएँ ‘विकास बनाम जंगल’ की बातें करते हैं, उसे आप कैसे देखते हैं?

जवाब: विकास जब करना होता है, तो फिर चाहे वो पहाड़ों में हो या मैदान में भी हो, कुछ न कुछ तो जो आज जमीन की स्थिति है, उसमें बदलाव होता है। हमें यही देखना है कि वो जमीन का बदलाव जमीन को और बाकी पर्यावरण को ज्यादा नुकसान करने वाला तो नहीं है न। क्योंकि मुझे याद है कि जब मैं स्कूल में था तो उस समय देश की आबादी 30 करोड़ थी और आज 136 करोड़ है, तो उनको खाने के लिए ज्यादा खेती चाहिए। ज्यादा तकनीक चाहिए, ज्यादा बल चाहिए। उसके लिए ज्यादा नौकरियाँ चाहिए। नौकरी के लिए कल-कारखाने चाहिए। नहीं तो आदमी की तरक्की क्या होगी। इसलिए मोदी सरकार की नीति है कि पर्यावरण भी और विकास भी। दोनों एक दूसरे के विरोध में नहीं है। यह ‘जंगल बनाम विकास’ नहीं बल्कि ‘विकास विद जंगल’ है। और ये हमने पिछले 6 सालों में दिखाया कि विकास भी हुआ और जंगल भी 15000 स्क्वायर किलोमीटर बढ़े। इसीलिए हमारा मानना है कि विकास और पर्यावरण दोनों साथ-साथ है और यही हमारा नारा है।

सवाल: अल्ट्रा-लेफ्ट वाले हमेशा इस मुद्दे को हवा देते हैं कि जंगल आदिवासियों का है और सरकार उसमें अगर हस्तक्षेप करती है तो उसके बाद वो हिंसक हो जाते हैं, हथियार उठा लेते हैं, नक्सली बन जाते हैं।

जवाब: नहीं, ऐसा तो नहीं है। यूपीए शासनकाल में जहाँ पर नक्सलवाद का काफी प्रभाव था, वहाँ भी अब एक तिहाई हो गया है। इसलिए यह सच नहीं है, बल्कि इसके विपरीत अगर विकास होता है तो आदिवासियों का भी विकास होता है। अब आदिवासियों को जमीन के पट्टे मिलने लगे हैं। वहाँ हमने नए-नए औजार शुरू किए। जैसे बाँस के वन निर्माण का अधिकार आदिवासियों को दिया है। बाँस 2-3 साल में बढ़ते हैं, उसके पैसे उनको मिलते हैं। तो ये नया तरीका है। आदिवासी तरक्की के रास्ते में पार्टनर बन गए हैं, वो खिलाफ नहीं हैं।

सवाल: अभी EIA 2020 को लेकर जो नोटिफिकेशन आ रहे हैं, उसको लेकर मीडिया में चलाया जा रहा है कि इस पर काफी विरोध हुआ है। सवाल के साथ-साथ सुझाव भी आए हैं। 

जवाब: 15-20 लाख जो भी सुझाव आए हैं, उसमें 90% एक ही भाषा के हैं, तो इसलिए वह एक मुहिम थी। लेकिन हमने हर सुझाव का संज्ञान लिया है। जब फाइनल आएगा तो सबके सामने आ जाएगा। मैं मूल बताना चाहता हूँ कि हमने क्या किया। 2006 के नोटिफिकेशन के बाद 55 बार संशोधन हुआ है और 236 ऑफिस मेमोरेंडम निकले, जिससे बदलाव किए गए। इतना सारा बदलाव अलग-अलग पढ़ने की बजाए एक ही जगह पढ़ें, इसलिए  EIA 2020 का नोटिफिकेशन लाया गया है। लोगों को गलतफहमी हुई है कि हमने कुछ लोगों को सार्वजनिक सुनवाई से माफ किया है। जबकि हमने 21 उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई में लाया है, जो पहले नहीं थे।

सवाल: पर्यावरण पर जब बात होती है तो लोग पराली जलाने और कुछ लोग इसमें दिवाली का भी योगदान बता देते हैं।

जवाब: इसमें बहुत सारी चीजों का योगदान है। वाहन-यातायात प्रदूषण का एक कारक है। दूसरा है- कंस्ट्रक्शन डस्ट। ये बहुत बड़ा कारक है। दिल्ली और उत्तरी भारत में जिस तरह से धूल का संकट है, धूल उड़ती है, हिमालय की ठंड होती है, गंगा और बाकी नदियों का मॉइश्चर होता है, वो सब पकड़ लेता है और यहाँ एक विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण हवा नहीं बहती है, तो ये जम जाता है। ये प्रदूषण की समस्या का कारण है। इसमें पराली और उद्योग का भी योगदान होता है। 35 दिन तक पराली जलाने का सिलसिला होता है। वो कम हो, इसके लिए सरकार ने बहुत प्रयास किया है। मुझे और वैज्ञानिकों को भी उम्मीद है कि इस साल थोड़ा कम होगा। जिस दिन किसान के खेत काटने का खर्चा निकलने वाला कोई भी इलाज निकलेगा, उस दिन खेती नहीं जलेगी। उस दिशा में हम जा रहे हैं और मुझे लगता है कि हम 3-4 साल में इससे निजात पा लेंगे।

सवाल: पर्यावरण और भारी उद्योग कई बार एक-दूसरे के सामने खड़े दिखते हैं, क्योंकि सबसे ज्यादा भारी उद्योग वालों को ही पर्यावरण से अनुमति लेनी पड़ती है, तो क्या इसके लिए आपके सामने कभी ऊहा-पोह की स्थिति आई?

जवाब: भारी उद्योगों का मुख्य काम इलेक्ट्रिक वाहनों को पुश करना है और इलेक्ट्रिकल वाहनों के लिए 10 हजार बसें देश भर में हो, इसके लिए हमने 10,000 करोड़ का कार्यक्रम बनाया है। ये बहुत महत्वपूर्ण है। बाकी इलेक्ट्रिकल वाहन को भी सब्सिडी देते हैं। वो भी बढ़ें, हम इस दिशा में भी काम करते हैं।

सवाल: डिजिटल मीडियम में फिलहाल आपको किस तरह की चुनौतियाँ दिखती हैं? 

जवाब: मेरा मानना है कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है और डिजिटल मीडिया खुद ही इसे सेल्फ रेग्युलेट करे, लेकिन अगर उन्हें मदद चाहिए, तो हम मदद करने के लिए भी तैयार हैं। इसके अच्छे और बुरे दोनों तरह के नतीजे आ रहे हैं। इसलिए हमने OTT प्लेटफॉर्म को कहा है कि वो सेल्फ-रेग्युलेशन की अच्छी व्यवस्था करें। डिजिटल मीडिया से भी कह सकते हैं, क्योंकि कंटेंट ऑर्गेनाइज्ड होता है। लेकिन डिसऑर्गेनाइज्ड कंटेंट पर लगाम कसना थोड़ा मुश्किल है। एक मैकेनिज्म बनाइए, जिसकी विश्वसनीयता हो और किसी को भी इससे शिकायत न हो और उसके कारण सुधार होता रहे और अगर कोई नहीं करता है तो क्या करना है, इसका विकल्प हमेशा सरकार के पास खुले होते हैं।

सवाल: कुछ लोग खुद को ही फैक्ट चेकर कह रहे हैं और फेक न्यूज फैलाते दिख रहे हैं। इस फेक न्यूज की पहचान कैसे की जाए?

जवाब:  इसके लिए पीआईबी है। वो बहुत अच्छे से फैक्ट चेक करती है। उसकी प्रतिष्ठा भी हो गई है। आगे इसके लिए और सख्त कदम उठाए जाएँगे। इसकी वजह से अनेक चैनल ने फेक न्यूज दिखाना बंद किया, कई चैनलों को माफी माँगनी पड़ी, अनेक अखबारों को माफी माँगनी पड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि अब लोग भी चेक करके ही न्यूज लगाते हैं, बिना सोर्स का न्यूज नहीं लगाते हैं।

सवाल: महाराष्ट्र में जो मीडिया से जुड़ा चाहे टीआरपी स्कैम हो या एक चैनल को परेशान करना, हजार लोगों पर एफआईआर करना अतार्किक है। आप इसे कैसे देखते हैं? 

जवाब: टीआरपी स्कैम गलत ही है, अगर हुआ है तो जाँच करके पता चलना चाहिए। कंप्लेन में एक का नाम आता है, चार्ज दूसरे पर लगता है। ये मुंबई पुलिस जो कर रही है, इसे कोई भी पसंद नहीं करेगा। एडिटर्स गिल्ड से लेकर सभी लोगों ने उसका विरोध किया है। एनडीए ने भी विरोध किया है। मुझे लगता है कि इस तरह से पत्रकारों का दमन अपने राजनीतिक हितों के लिए करना गलत है।

सवाल: आपने कम से कम तीन बार विदेशी संस्थाओं को ट्विटर पर तथ्यात्मक रूप से गलत साबित किया है, लेकिन वही चीज मीडिया में नहीं दिखती है कि आपने ऐसा किया है। ऐसा क्यो?

जवाब: मैं देश-विदेश की हर खबरें देखता हूँ। ऐसे में अगर कोई गलत जानकारी या खबर होती है तो हम उन तक पहुँचाते हैं। ये काम पीआईबी करता है। पीआईबी के ऐसे कुछ प्रयासों को मैं ट्विट्स में बदलता हूँ, लेकिन हर ट्विट्स के द्वारा मैं मंत्रालय नहीं चलाता हूँ।

सवाल: बिहार चुनाव और महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच पोस्ट-पोल अलायंस को आप एक निजी वोटर के तौर पर कैसे देखते हैं?

जवाब: ये शिवसेना-भाजपा का प्री-पोल अलायंस था। लोगों ने पीएम मोदी के नेतृत्व में शिवसेना के कैंडिडेट को वोट दिए। हम दोनों का प्री-पोल अलायंस था। वो सत्ता में आया। हमें पूर्ण बहुमत मिला। 160 मेंबर बने। लेकिन उसके बाद अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण मुख्यमंत्री की लालसा से शिवसेना बागी हुए।

उन्होंने जनता से द्रोह करके जनता के जनादेश का अपमान करके उनके साथ गए, जिन्हें हमने चुनाव में पराजित किया था। इसमें शिवसेना भी शामिल थे। तो शिवसेना ने जिनको बीजेपी की मदद से हराया, उन्हीं कॉन्ग्रेस-एनसीपी के साथ जाकर वो बैठे। शिवसेना ने राजनीतिक रूप से ये बहुत गलत बात की है और जब भी मौका मिलेगा, इसकी सजा महाराष्ट्र की जनता देगी। वो भ्रम मे हैं कि वो जीत गए हैं, वो जीते नहीं हैं, बल्कि हारे हैं।

सवाल: महाराष्ट्र सरकार के विचित्र गठबंधन का भविष्य आपको कैसा नजर आता है? 

जवाब: इसका कोई लॉजिकल फ्यूचर नहीं है। भ्रष्टाचार ही एकमात्र मुद्दा है, जिन पर उनकी एकजुटता निर्भर है। इसलिए महाराष्ट्र पीछे जा रहा है और वहाँ पर सरकार नाम की कोई चीज दिखती ही नहीं है।

सवाल: बिहार में भाजपा समर्थक ये सवाल उठा रहे हैं कि वहाँ पर भाजपा अकेले चुनाव क्यों नहीं लड़ती है? क्या इस मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व में कुछ बातचीत होती है? 

जवाब: बातचीत हम हर मुद्दे की करते हैं, लेकिन वहाँ पर हम पहले से गठबंधन में हैं, तो हम ऐसे ही इसे छोड़ नहीं सकते। हमने शिवसेना के साथ भी 30 साल चलाया। बाद में जब पिछली बार असंभव हुआ तो हम अलग लड़े लेकिन फिर सत्ता में गठबंधन करके ही आए। अभी भी हमारा गठबंधन था, जिसे उन्होंने छोड़ दिया। उनकी गलती वो भुगतेंगे, लेकिन बिहार में हमारा पहले से ही गठबंधन है, बीच में जदयू निकल गए थे, लेकिन फिर वापस आए, तो आज हम काफी मजबूती से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के वादे पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। और हमें जनता का आशीर्वाद मिलेगा। पहले चरण के चुनाव के बाद पता चलेगा कि बीजेपी और जदयू कॉम्बिनेशन बहुत आगे निकलेगा। HAM और VIP चार पार्टियों का ये गठबंधन मजबूती से लड़ रहा है और निश्चित रूप से जीतेगा।

सवाल: आप लोजपा पर क्या प्रतिक्रिया देना चाहेंगे?

जवाब: हमारे केंद्र में वो एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन जिस तरह की भूमिका लोजपा ने बिहार में की है, वो वहाँ पर वोटकटुआ पार्टी की तरह काम करेंगे, इसके अलावा वो कुछ नहीं कर सकते। इससे परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

सवाल: आपका एक बयान गलत तरीके से पेश किया गया है कि हमने इतिहास के किताब में कोई बदलाव नहीं किया।

जवाब: इंडियन एक्सप्रेस ने 29-30-31 मई को तीन दिन लगातार बैनर लगाकर इस तरह से स्टोरी किया था कि देखने लायक है। बदलाव करने के अनेक तरीके होते हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने ये तीन लेख छापे कि लोग इस पर काफी प्रतिक्रिया देंगे। लेकिन बदलाव हम हर साल एफलिएशन में करते हैं। वो 1100 शिक्षक के सुझाव पर आधारित हैं। वो इतने सार्थक हैं कि 900 पेज का बदलाव हुआ, लेकिन जरा भी चर्चा नहीं हुई। इसके लिए तो शाबाशी मिलनी चाहिए।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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