NOTA को आम तौर पर शहरी उच्च-मध्यम वर्ग का चुनाव मानकर खारिज कर दिया जाता है। पर लोकसभा 2019 का निर्वाचन इसके उलट गवाही दे रहा है। NOTA जिन सीटों पर निर्णायक ताकत बनकर उभरा है, उनमें से कई ग्रामीण इलाकों और जनजाति-बहुल क्षेत्रों में स्थित हैं- यानि NOTA समाज के हर वर्ग में बढ़ रही है। सभी राजनीतिक दलों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
NOTA के मायने
सैद्धांतिक रूप से NOTA किसी एक दल या विचारधारा नहीं बल्कि सम्पूर्ण समकालीन राजनीतिक वर्ग को ख़ारिज करने का प्रतीक है। एक वोटर NOTA दबाकर यह सन्देश देता है कि वह अमुक पार्टी से तो इतना नाराज है कि उसे वोट न दे, लेकिन अन्य किसी को भी अपने वोट के लायक या अपनी समस्या विशेष का समाधान नहीं मानता। अभी तक इसे शहरी उच्च-मध्यम वर्ग का शिगूफा माना जाता था, लेकिन मतदान के बाद की तस्वीर कुछ अलग है:
जैसा कि ऊपर की टेबल में देखा जा सकता है, अंडमान जैसे जनजातीय इलाकों, मछलीशहर जैसे तुलनात्मक रूप से पिछड़े इलाकों आदि में भी बड़ी संख्या में NOTA वोट पड़े हैं। अंडमान में कॉन्ग्रेस के कुलदीप शर्मा ने भाजपा के विशाल जॉली को केवल 1407 वोटों से हराया, जबकि NOTA 1412 लोगों ने दबाया। यानि इन 1412 NOTA वालों के वोट मिल जाते तो भाजपा प्रत्याशी कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार को हरा देते।
उसी तरह मछलीशहर में भाजपा जहाँ महज 180 मतों से जीती वहीं NOTA को इसके लगभग 50 गुने यानि 10,830 वोट मिले। मतलब अगर 10 प्रतिशत NOTA वाले भी दूसरे नंबर पर रहे बसपा प्रत्याशी को मिल जाते तो मामला पलट सकता था। अब जबकि राजनीतिक मुकाबले इतने करीबी होने लगे हैं, जनता में मतदान प्रतिशत और जागरुकता भी बढ़ रहे हैं तो भाजपा समेत सभी दलों के हित में होगा कि वे NOTA पर भी एक राजनीतिक प्रतिस्पर्धी के तौर पर ध्यान दें।