सोनिया गॉंधी को कॉन्ग्रेस ने भले फिर से अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया हो, लेकिन इसने पार्टी के अंदरूनी कलह को बेनकाब कर दिया है। ताजा घमासान के बाद सब कुछ सामान्य होने और नुकसान का ठीक-ठीक पता लग पाने में ही महीनों लग सकते हैं।
सोनिया के दोबारा अंतरिम अध्यक्ष बनने से पहले उनके इस्तीफे की खबर आई। फिर जल्द ही दावा किया गया कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था। फिर, कॉन्ग्रेस के ही ‘बागी’ नेता, जो कि हर हाल में केवल गाँधी परिवार के निष्ठावान कहे जा सकते हैं, एक पत्र लिखते हैं जिसमें पार्टी के नेतृत्व में स्थायी फेरबदल की माँग की जाती है।
इस बीच, ख़बरें सामने आती हैं कि राहुल गाँधी के फिर से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनने की माँग को लेकर ‘विरोध-प्रदर्शन’ हो रहे हैं। इसी बीच, प्रियंका गाँधी वाड्रा ने कहा कि एक गैर-गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बनना चाहिए, लेकिन कुछ अन्य कॉन्ग्रेस सदस्यों ने विरोध किया और कहा कि अगर गाँधी परिवार का कोई सदस्य पार्टी का नेतृत्व नहीं करता है तो पार्टी बिखर जाएगी।
इस क्रोनोलोजी में CWC में चीजें और भी भ्रामक हो गईं। मीडिया में सोनिया गाँधी ‘त्याग की प्रतिमा’ के रूप में काम कर रही हैं, जो केवल वही चाहती हैं, जो उनके राज्य (कॉन्ग्रेस) और उनके उत्तराधिकारी (राहुल गाँधी) के लिए सबसे बेहतर हो। जबकि इस पूरे धारावाहिक में राहुल गाँधी एक ऐसे बेटे की भूमिका निभा रहे हैं, जो अपनी माँ के राजकीय सम्मान और विरासत के लिए सब कुछ न्योछावर करने को राजी हैं।
सोनिया गाँधी ने पहले कहा कि वह पार्टी को अपना विकल्प खोजने के लिए समय दे रही हैं और वे ऐसा करने के बाद, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपने पद से हट जाएँगी। राहुल गाँधी कथित तौर पर इस असहमति पत्र से नाखुश थे और उन्होंने इस पत्र की ‘टाइमिंग’ पर सवाल उठाए थे।
इस बीच NDTV ने खबर फैलाई कि राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर भाजपा से साँठ-गाँठ होने के आरोप लगाए। इस बात से कपिल सिब्बल जैसे नेताओं ने उन्हें तीस साल की अपनी स्वामिभक्ति के बारे में अवगत कराया और गुलाम नबी आजादी ने कॉन्ग्रेस से इस्तीफा देने तक की बात कह दी।
लेकिन कुछ ही देर बाद कहा कि राहुल गाँधी ने उन्हें व्यक्तिगत तौर पर बताया कि उन्होंने ऐसे आरोप नहीं लगाए। सिब्बल ने एक और ट्वीट कर के स्पष्ट किया कि राहुल ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही है।
इस पूरी राजनीतिक चकल्लस के बीच सिर्फ यही निष्कर्ष निकल पाया कि कॉन्ग्रेस में अब सिर्फ दो ही पक्ष हैं, पहला – जो सोनिया गाँधी को ही पार्टी अध्यक्ष बने रहने देना चाहता है, और दूसरा- जो राहुल गाँधी को ही पार्टी अध्यक्ष बने रहने देना चाहता है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस का एक बड़ा वर्ग ‘महारानी’ को ही नेतृत्व करते देखना चाहता है। यही कारण है कि बीच का रास्ता निकालते हुए सोनिया को 6 और महीने के लिए अंतरिम अध्यक्ष आखिर में चुन लिया गया।
गाँधी बनाम ‘बाहरी’
अध्यक्ष पद की इस पारिवारिक चकल्लस के बीच कॉन्ग्रेस में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को प्रभावित करने वाला एक सामूहिक विद्रोह कॉन्ग्रेस पार्टी में होने की संभावना नहीं है। अतीत में भी कॉन्ग्रेस में बगावत के स्वर सुनाई दिए गए, जिन्होंने तब भी पार्टी नेतृत्व में परिवर्तन को जरुरी बताने का साहस किया था। हालाँकि, उन्हें गंभीरता से लेने का दिखावा करने के बाद अंततः, उन्हें हटा दिया गया और गाँधी परिवार की हुकूमत को ही सर्वोपरि रखा गया।
यहाँ तक कि रामचंद्र गुहा जैसे इतिहासकार, जो कि लंबे समय से विशेष परिवार के वफादार रह चुके हैं, वो भी अब इस सिद्दांत में यकीन करने लगे हैं कि एक गैर-गाँधी को ही अब पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए।
युवा बनाम बुजुर्ग
गाँधी परिवार की इस पार्टी में यह जंग एक तरह से ‘युवा बनाम बुजुर्ग’ की हो चुकी है। हालाँकि, सम्भावना यही है कि 6 महीने बाद भी चुनाव परिवार के भीतर से ही होना है। राहुल गाँधी द्वारा कॉन्ग्रेसी नेताओं पर भाजपा से साँठ-गाँठ होने के आरोप की खबर सामने आते ही कॉन्ग्रेस की भक्ति में लीन मीडिया की नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी भी अपने-अपने प्रतिनिधि चुनती हुई देखी गई।
एक ओर जहाँ कुछ लोग वरिष्ठ नेताओं को निशाना बनाए जाने की निंदा करते देखे गए वहीं दूसरी और ऐसी भी जमात थी, जो फ़ौरन राहुल गाँधी के बचाव में उतर गई। हालाँकि, बाद में यह खबरें भी सामने आईं कि यह सब खेल NDTV के सूत्रों के आधार पर ही तय किया गया, लेकिन तब तक कॉन्ग्रेस के भीतर तैयार हो चुके कम से कम 2 गुट तो अपने अपने नए स्वामी चुन ही चुके थे।
यहाँ तक कि हार्दिक पटेल जैसे कॉन्ग्रेस के युवा और नए चहरे भी राहुल गाँधी को ही अपना नेता चुन चुके थे। इसलिए यह जंग राहुल और सोनिया गाँधी के बीच होने से ज्यादा उन समर्थकों और विचारों के बीच बनती नजर आ रही है, जो कॉन्ग्रेस के पारम्परिक और नवीन विचारों के पक्षधर और विरोधी हैं।
भारत के नवनिर्माण और कांग्रेस पार्टी की मज़बूती के लिए श्री राहुल गांधी का नेतृत्व बेहद ज़रूरी हैं। श्री राहुल गांधी पर देश भरोसा करता है, राहुल गांधी नफ़रत को नहीं भाईचारे को बढ़ावा देते है, बदले की भावना से नहीं बदलाव की भावना से काम करते हैं।
— Hardik Patel (@HardikPatel_) August 23, 2020
जी हाँ #MyLeaderRahulGandhi
MEME या मीडिया?
जब राहुल गाँधी ने कपिल सिब्बल और अन्य पर भाजपा के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया, तब कॉन्ग्रेस की वफादार पल्लवी घोष ने वरिष्ठ नेताओं का बचाव करने के लिए तुरंत मुहिम छेड़ दी। उसने कहा कि पत्र लिखने के लिए नेताओं की आलोचना की जा सकती है, लेकिन उन पर भाजपा की मदद करने का आरोप लगाना ठीक नहीं है।
Azad .. sibal .. u can criticise them for writing the letter .. but to accuse them of helping the bjp isnt done … as reports come in of azad saying he will resign if party can prove charges against him
— pallavi ghosh (@_pallavighosh) August 24, 2020
इस पर दिव्या स्पंदना की प्रतिक्रिया एकदम विपरीत नजर आई। कपिल सिब्बल द्वारा डिलीट किए गए ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कॉन्ग्रेस समर्थक दिव्या स्पंदना ने कहा कि राहुल गाँधी को यह कहना चाहिए था कि असहमति पत्र लिखने वाले नेता न केवल बीजेपी के साथ, बल्कि मीडिया के साथ भी साँठ-गाँठ कर रहे थे।
I think Rahul ji made a mistake. He should have said colluding with the BJP & the media. https://t.co/ZmtLe5YzPu
— Divya Spandana/Ramya (@divyaspandana) August 24, 2020
मीडिया और MEME ऐसे संसाधन हैं, जिन पर कांग्रेस का भविष्य टिका है। कोई सोच सकता है कि सोनिया गाँधी ट्विटर ट्रोल्स के बजाए पारंपरिक मीडिया और पत्रकारों में निवेश करना चाहेंगी। जबकि, राहुल गाँधी ‘ट्विटर सेना’ और मीम (MEME) निर्माताओं में निवेश करने के ज्यादा इच्छुक होंगे, जैसा कि हम देखते ही रहे हैं।
पल्लवी घोष और दिव्या स्पंदना के विरोधाभासी ट्वीट इस तथ्य का प्रमाण हो सकते हैं। राहुल गाँधी ने दिव्या स्पंदना पर भारी विश्वास जताया था, जो भाजपा के खिलाफ राजनीतिक हथियार के रूप में फर्जी खबरें फैलाने, आपत्तिजनक मीम्स और बयान शेयर करने का काम करती थी। हालाँकि, कॉन्ग्रेस के प्रति वफादार रहते हुए पल्लवी घोष ने कॉन्ग्रेस के एजेंडे को आगे बढ़ाने में थोड़ी ज्यादा चालाकी बरती है।