ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का विरोध किया है। मंगलवार (26 अप्रैल 2022) को संगठन की ओर से जारी बयान में इसे असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि मुस्लिम इसे कबूल नहीं करेंगे।
बयान में AIMPLB महासचिव खालिद शैफुल्लाह रहमानी के हवाले से बताया गया है कि संविधान मजहब के हिसाब से जीवन जीने की अनुमति देता है। इसे मौलिक अधिकारों में रखा गया है। रहमानी ने कहा है कि समान नागरिक संहिता मुस्लिमों को कबूल नहीं है और सरकार ऐसा करने से बचे। उनका दावा है कि समान नागरिक संहिता की बात बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, गिरती अर्थव्यवस्था से लोगों का ध्यान भटकाने और नफरत फैलाने का एजेंडा है।
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— Khalid Saifullah Rahmani (@hmksrahmani) April 26, 2022
The Uniform Civil Code is Unconstitutional and anti-Minority
Unacceptable to Muslims (General Secretary Board)#UniformCivilCode pic.twitter.com/U1if4yaMR9
AIMPLB की यह प्रतिक्रिया ऐसे वक्त में सामने आई है जब पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि भाजपा शासित राज्यों में समान नागिरक संहिता कानून लागू किया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि CAA, अनुच्छेद 370, राम मंदिर और तीन तलाक के बाद अब समान नागरिक संहिता पार्टी के एजेंडे में है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या ने भी संकेत दिए थे कि प्रदेश सरकार इसे लागू करने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा था, “यूपी और देश की जनता के लिए यह जरूरी है कि पूरे देश में एक कानून लागू किया जाए। पहले की सरकारों ने तुष्टिकरण की राजनीति के कारण इस पर ध्यान नहीं दिया।”
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के हालिया विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने सत्ता में वापसी पर समान नागरिक संहिता का वादा किया था। चुनावों में जीत के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे लागू करने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए एक कमिटी का गठन किया था। माना जा रहा है कि अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी इसी मॉडल पर UCC लागू किया जाएगा।
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता को सरल शब्दों में समझा जाए तो यह एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समुदाय लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या समुदाय का हो, उसके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सब पर लागू किया, लेकिन शादी, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति आदि से जुड़े मसलों को सभी धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।
इन्हीं सिविल कानूनों को में से हिंदुओं वाले पर्सनल कानूनों को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खत्म किया और मुस्लिमों को इससे अलग रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। वहीं, मुस्लिमों के लिए उनके पर्सनल लॉ को बना रखा, जिसको लेकर विवाद जारी है। इसकी वजह से न्यायालयों में मुस्लिम आरोपितों या अभियोजकों के मामले में कुरान और इस्लामिक रीति-रिवाजों का हवाला सुनवाई के दौरान देना पड़ता है।
इन्हीं कानूनों को सभी धर्मों के लिए एक समान बनाने की जब माँग होती है तो मुस्लिम इसका विरोध करते हैं। मुस्लिमों का कहना है कि उनका कानून कुरान और हदीसों पर आधारित है, इसलिए वे इसकी को मानेंगे और उसमें किसी तरह के बदलाव का विरोध करेंगे। इन कानूनों में मुस्लिमों द्वारा चार शादियाँ करने की छूट सबसे बड़ा विवाद की वजह है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी समान नागरिक संहिता का खुलकर विरोध करता रहा है।