राजस्थान में मायावती की बहुजन समाज पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पार्टी के सभी 6 विधायकों ने कॉन्ग्रेस का दामन थाम लिया है। सोमवार (सितम्बर 16, 2019) देर रात राजस्थान के राजनीतिक पटल पर काफ़ी उठापटक हुई और विधानसभा में बसपा 6 से सीधा शून्य पर आ गई। इससे पहले राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार को बसपा बाहर से समर्थन दे रही थी। इससे पहले मार्च में भी 12 निर्दलीय विधायक कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए थे। इस घटनाक्रम से राज्य में कॉन्ग्रेस नंबर गेम में मजबूत हुई है।
बसपा विधयकों ने सोमवार की रात 9.30 बजे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाक़ात की। इसके बाद उन्होंने विधानसभाध्यक्ष सीपी जोशी को विलय से सम्बंधित पत्र सौंपा। जोशी की मंजूरी मिलते ही सभी बसपा विधायक राजस्थान यूनिवर्सिटी स्थित गेस्ट हाउस पहुँचे और उन्होंने विलय का औपचारिक ऐलान किया। हालाँकि, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट नहीं देखे गए। पायलट राजस्थान कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष भी हैं।
बसपा विधायकों ने कहा कि उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए ऐसा किया है। उन्होंने पार्टी सुप्रीमो मायावती के फ़ैसले ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि एक तरफ़ तो बसपा ने कॉन्ग्रेस सरकार को समर्थन दिया हुआ है और लोकसभा में हमने उनके ख़िलाफ़ ही लड़ा। उन्होंने मायावती के दोहरे रवैये पर सवाल उठाते हुए कॉन्ग्रेस में शामिल होने की घोषणा की।
Rajasthan BSP MLA Joginder Singh Awana on joining Congress: All 6 of us have formally submitted our papers. There were a lot of challenges. On one hand we are supporting their govt & on the other we are contesting against them in the parliament election. pic.twitter.com/SYtUQnoq5L
— ANI (@ANI) September 16, 2019
सीएम गहलोत ने कहा: “स्थायी सरकार के लिए राज्यहित में बसपा विधायकों का यह फ़ैसला स्वागत योग्य है। उनकी भावनाएँ अच्छी हैं। हम सब मिलकर राजस्थान को विकास के नए पथ पर ले जाएँगे।” एक तरह से राजस्थान में इतिहास ने एक दशक बाद अपनेआप को दोहराया क्योंकि 2009 में भी अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री थे और तब भी उन्होंने बसपा के 6 विधायकों को कॉन्ग्रेस के पाले में लाया था। तब भी बसपा के खाते में 6 सीटें ही थीं।
विधायक राजेसंदर सिंह गुढ़ा ने कहा कि 10 साल पहले भी वे बसपा विधायक दल के नेता थे और तब भी उन्होंने राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द बनाने के लिए क़दम उठाया था। उन्होंने कहा कि आज फिर हालात ऐसे ही हैं और इसीलिए फिर से वैसा क़दम उठाना पड़ा। एक अन्य बसपा विधायक जोगेंद्र सिंह अवाना ने कहा कि लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़ कर कॉन्ग्रेस और बसपा, दोनों दलों को हार मिली। उन्होंने आगामी पंचायत चुनाव का हवाला देते हुए वे बिना शर्त कॉन्ग्रेस में शामिल हुए हैं।
वहीं बसपा के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य प्रभारी को इस सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं थी। दोनों ने कहा कि अगर उन्हें पता होता तो वे इसे रोकने की कोशिश करते। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि बसपा के बाद कॉन्ग्रेस की नज़र एकलौते रालोद विधायक पर है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि बसपा विधायकों को कॉन्ग्रेस में लाने में रालोद विधायक डॉक्टर सुभाष गर्ग की भी भूमिका रही है।