असम की बीजेपी सरकार नवंबर में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर नोटिफिकेशन जारी करेगी। राज्य के शिक्षा मंत्री हिमांत विश्व शर्मा ने बृहस्पतिवार (8 अक्टूबर 2020) को यह साफ़ करते हुए कहा कि मजहबी शिक्षा का खर्च जनता के रुपए से नहीं उठाया जा सकता है।
शर्मा ने कहा, “राज्य में कोई भी धार्मिक शैक्षणिक संस्थान सरकारी खर्च पर नहीं चलाया जा सकता है। हम इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए आगामी नवंबर में ही एक अधिसूचना जारी करेंगे। इसके अलावा हमें निजी तौर पर चल रहे मदरसों को लेकर कुछ नहीं कहना है।” उन्होंने कहा कि संस्कृत टोल (संस्कृत विद्यालय) की बात अलग है। लोगों की आपत्ति इस बात पर है कि सरकारी खर्च पर चलने वाले संस्कृत टोल पारदर्शी नहीं हैं, हम इस मुद्दे पर भी जल्द ही निष्कर्ष निकाल लेंगे।
वहीं एआईयूडीएफ (AIUDF) के मुखिया और सांसद बदरुद्दीन ने इस फैसले का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सरकार मदरसों को बंद करने का निर्णय लेती है तो उनकी पार्टी अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव जीत कर इन्हें दोबारा शुरू करेगी। उन्होंने कहा, “आप मदरसे नहीं बंद कर सकते हैं। यदि मौजूदा सरकार मदरसों को बंद करती है तो सत्ता में आने पर हम इन्हें नए सिरे से शुरू करेंगे।”
इससे पहल हिमांत शर्मा ने ग्रीष्मकालीन विधानसभा सत्र के दौरान मदरसों से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि सरकारी मदरसे नवंबर से बंद हो रहे हैं। उनका कहना था कि अब से सरकार केवल धर्म निरपेक्ष और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा था कि अब और अरबी शिक्षकों की नियुक्ति की कोई योजना नहीं है। मदरसा बोर्ड को भंग कर संस्थानों के शिक्षाविद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को सौंप दिए जाएँगे।
संस्कृत के बारे में बात करते हुए शर्मा ने कहा कि संस्कृत सभी आधुनिक भाषाओं की जननी है। असम सरकार ने सभी संस्कृत टोल्स को कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत और प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय (नलबाड़ी में) के तहत लाने का फैसला किया है। वह एक नए रूप में कार्य करेंगे। फरवरी 2020 के दौरान एक अहम निर्णय में असल सरकार ने घोषणा की थी कि सरकार सभी राज्य संचालित मदरसों और संकृत टोल्स को बंद करने वाली है। उनके मुताबिक़ धार्मिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक शास्त्र, अरबी और अन्य भाषाओं को पढ़ाना सरकार का काम नहीं है।
असम में कुल 614 सरकारी और 900 निजी मदरसे हैं। इनमें अधिकांश जमीयत उलामा के तहत चलाए जाते हैं। दूसरी तरफ राज्य में लगभग 100 सरकारी संस्कृत टोल्स और 500 से अधिक निजी टोल्स हैं। सरकार प्रतिवर्ष मदरसों पर लगभग 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च करती है और लगभग 1 करोड़ रुपए संस्कृत टोल्स पर खर्च करती है।