इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों, कोरोना संक्रमण के कारण बदली परिस्थितियों और कृषि क्षेत्र के हालात पर बिहार के कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य संसाधन मंत्री डॉ. प्रेम कुमार से अजीत कुमार झा ने लंबी बात की।
नीतीश कुमार की सरकार में भाजपा के कोटे से मंत्री प्रेम कुमार के इंटरव्यू का संपादित अंश;
लॉकडाउन में जिस तरह घर लौटने के लिए प्रवासी श्रमिकों को मुसीबतें उठानी पड़ी है, उसने पलायन की मजबूरी को फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया। इसकी एक बड़ी वजह खेती-किसानी और उससे जुड़े स्थानीय उद्योगों का चौपट होना है। इस सूरतेहाल में बदलाव के लिए क्या प्रयास एनडीए सरकार ने किए हैं?
बिहार की जमीन उर्वरा है। जलवायु कृषि के अनुकूल है। इस क्षेत्र में असीम संभावनाएँ है। 2005 में राज्य में पहली बार एनडीए की सरकार बनी थी। 2008 में हमने कृषि क्षेत्र में विकास का रोडमैप तैयार किया था। उसके बाद से उत्पादकता लगातार बढ़ी है। आज खेती घाटे का सौदा नहीं रहा। बड़े पैमाने पर केला, मशरूम, मखाना, आम और लीची का उत्पादन हो रहा है। राज्य को पॉंच बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। एक तो इसी साल जनवरी में मिला।
पैदावार की लागत कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। साथ ही किसानों को बाजार उपलब्ध कराने पर फोकस है। राज्य में 52 बाजार प्रांगण हैं। इनका इस साल रेनोवेशन पूरा हो जाएगा। इससे बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा। मसलन, पटना में 50 एकड़ में बाजार प्रांगण है। वहॉं 5000 दुकानें बनेंगी। इसका मतलब है उससे 25,000 लोगों को सीधा फायदा होगा। किसान हमारी प्राथमिकता में हैं। हमारा लक्ष्य उत्पादन में लागत कम कर उन्हें पैदावार की सही कीमत दिलाना है।
बावजूद पलायन पर इन सालों में कोई असर नहीं दिखता?
जवाब: देखिए समय बड़ा बलवान होता है। देश के दूसरे हिस्से में काम करने गए करीब 40 लाख लोग अब अपनी माटी को चूम रहे हैं। कह रहे हैं यहीं काम करेंगे और बिहार को बढ़ाएँगे। अभी गाँवों में मनरेगा, जल जीवन हरियाली के तहत मजदूरों को काम दिया जा रहा है। सड़कों निर्माण में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। रबी की अभी कटाई हुई है। उपज का अच्छा पैसा मिल रहा है। आगे खरीफ की हमारी तैयारी है। करीब 31 लाख हेक्टेयर में धान, 4 लाख हेक्टेयर में मक्का, 1 लाख हेक्टेयर में दलहन और 50 हजार हेक्टेयर में तेलहन की खेती करने जा रहे हैं। इन सबका असर जल्द दिखने लगेगा। कृषि की बदौलत बिहार खुद को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बढ़ रहा है। कोरोना संकट के कारण जो लौटे हैं, उनको दोबारा पलायन करने से रोकने में हमारा कृषि सेक्टर सक्षम है।
प्रधानमंत्री ने बीते दिनों देश को संबोधित करते हुए ‘लोकल के लिए वोकल’ बनने की बात कही थी। इसके लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार भी पैदा करने होंगे। क्या बिहार का कृषि सेक्टर रोजगार पैदा करने में सक्षम है? अभी जो श्रमिक लौटकर आए हैं उन्हें यह सेक्टर दोबारा पलायन से रोक पाएगा?
लोकल के लिए वोकल होने का मतलब ही है स्थानीय को प्राथमिकता। प्रकृति ने बिहार को जो अकूत वरदान दिया है उसका फायदा उठाने का वक्त आ गया है। खेती के अलावा दूध के कारोबार से 12 लाख गोपालक जुड़े हुए हैं। राज्य में 22, 775 सहकारी समितियॉं काम कर रही है। दूध हम नेपाल, बंगाल, यूपी, झारखंड भेजते हैं। इसी तरह नॉर्थ-ईस्ट में मिठाई भेजते हैं। 30 हजार तलाब है और मछली उत्पादन पर जोर दे रहे हैं। मधुमक्खी पालन में बिहार का देश में पहला स्थान है। सब्जी के मामले में हम तीसरे पायदान पर हैं। इन सबकी बदौलत किसानों और कामगारों के सहयोग से हम कोरोना महामारी के चुनौती को अवसर में बदलने के लिए तैयार हैं।
बेमौसम बरसात से राज्य के किसानों को काफी नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए सरकार क्या कर रही है?
बेमौसम बारिश और ओला वृष्टि के कारण फरवरी में 11 जिले के 44 प्रखंड, मार्च में 23 जिले के 198 प्रखंड और अप्रैल में 19 जिले के 146 प्रखंडों में किसानों को नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए 7 अरब 16 करोड़ रुपया मँजूर किया गया है। अब तक करीब साढ़े सात लाख किसानों के खाते में पैसा ट्रांसफर किया जा चुका है। आगे भी जॉंच की जा रही है और पैसा भेजा जाएगा। किसानों को हुए नुकसान के पाई-पाई की भरपाई सरकार करेगी।
बाढ़, सुखाड़ बिहार के किसानों के लिए सालाना समस्या है। मुआवजे के इतर इनके स्थायी समाधान का सरकार प्रयास क्यों नहीं कर रही?
ये आज की समस्या नहीं है। सदियों से चली आ रही है। यदि नेपाल में हाई डैम बन जाए तो उत्तर बिहार के किसानों को बाढ़ के संकट से मुक्ति मिल जाएगी। दक्षिण बिहार में ‘जल जीवन हरियाली योजना’ के तहत वर्ष जल का हम संचय करेंगे। गॉंव-गॉंव में तालाब पर अतिक्रमण कर लिया गया था। उसे जिंदा करने का प्रोजेक्ट जल जीवन हरियाली योजना के तहत शुरू किया गया है। 2400 करोड़ रुपए से तीन साल में राज्य के सभी गॉंवों, खेतों, घरों और सरकारी भवनों में वर्षा जल संचय की योजना पर काम हो रहा है। आने वाले कुछ समय में इसकी मदद से बाढ़ और सुखाड़ के संकट का निश्चित तौर पर रास्ता निकलेगा।
बिहार में ज्यादातर छोटे जोतदार हैं। वे विज्ञान, तकनीक से जुड़े और उनको फायदा हो इसके लिए क्या किए जा रहे हैं?
राज्य में 95 फीसदी छोटे जोतदार हैं, इसलिए सामूहिक खेती पर हम जोर दे रहे हैं। इसके लिए हम समूह बना रहे हैं। करीब 19 हजार कृषक समूह बन गए हैं। सहायक तकनीकी प्रबंधक, प्रखंड तकनीकी प्रबंधक की बहाली की गई है, जो गॉंवों में खेतों में जाकर किसानों को विकसित तकनीक मुहैया कराएँगे। उनको ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जा रही है।
मछली, मखाना, पान जैसे सेक्टर में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने की क्षमता है। लेकिन लगता नहीं कि सरकार का इस ओर ध्यान है?
इसी को ध्यान में रखकर 23 जिले के लिए 14 फसलों का चयन कर विशेष योजना शुरू की गई है। इससे 10 लाख किसानों को जोड़ने की योजना है। इनकी खेती के लिए उन्हें प्रेरित किया जा रहा है। बिहार में जो मछली का उत्पादन हो रहा वह बिल्कुल जैविक है। इस समय 6 लाख 42 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हम कर रहे हैं। देश में मछली उत्पादन में छठे स्थान पर आ गए हैं। समय बदल रहा। मछली की सप्लाई बाहर शुरू हो गई है। जल्द ही बिहार की मछली वर्ल्ड फेमस होगी।
आप गया टाउन से सातवीं बार विधायक चुने गए है। गया कई देशों के लिए आस्था का केंद्र है। एनडीए की पहली सरकार से ही बोधगया को लेकर जो गंभीरता घोषणाओं में दिखती है, वह जमीन पर नजर नहीं आता?
ऐसा नहीं है। वाजपेयी सरकार के समय गया को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया गया। कॉन्ग्रेस के जमाने में बंद हो गए एयरपोर्ट को दुबारा चालू किया गया। राज्य सरकार करीब 150 करोड़ रुपए की लागत से कन्वेंशन सेंटर बना रही है। 24 घंटे बिजली मिलती है। फोर लेन सड़क का निर्माण हो रहा। पर्यटकों को हर तरह की सुविधा सरकार मुहैया करा रही है। नए रिसॉर्ट, होटल सब लगातार खुल रहे हैं। एनडीए की सरकार बनने के बाद से काफी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट हुआ है।
बीते एक साल पर नजर डालें तो बिहार आपदाओं से ही जूझ रहा है। चमकी बुखार, बाढ़, पटना में जलजमावऔर अब कोरोना। इन सबसे नीतीश कुमार ने सुशासन बाबू की जो छवि गढ़ी थी वो दरकती दिख रही है। आपको लगता है कि उनका चेहरा अब बीजेपी के लिए बोझ बन गया है।
हम मिलकर अच्छा काम कर रहे हैं। हो सकता है कुछ लोग नाराज हों। लंबे समय तक पद पर बने रहने से यह स्वभाविक भी है। मैं भी 35 साल से विधायक हूँ। लगातार चुने जाने का कारण अच्छा काम रहा है। लेकिन फिर भी कुछ लोगों को लगता होगा कि बहुत हो गया। 40 साल कॉन्ग्रेस, 15 साल लालू और एनडीए कार्यकाल की तुलना कर देख लीजिए सच्चाई सामने आ जाएगी। पता चल जाएगा बिहार कहाँ था और आज कहाँ खड़ा है।
यही आपके आलोचक भी पूछते हैं कि जंगलराज का भय दिखाकर कब तक वोट माँगते रहेंगे?
हमारा एजेंडा विकास है। हम उस पर ही वोट माँगते हैं। आगे भी उस पर ही माँगेंगे।
मौजूदा परिस्थिति में बीजेपी के लिए बिहार में अकेले चुनाव लड़ना ही ज्यादा फायदेमंद रहेगा?
यह फैसला लेना राष्ट्रीय नेतृत्व का काम है। वह देखता है कि चुनाव कैसे लड़ा जाए। अकेले लड़ा जाए या मिलकर। यह सब उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वैसे बिहार में हम साथ मिलकर अच्छा काम कर रहे हैं। आगे जो फैसला लेना होगा केंद्रीय नेतृत्व करेगा। वे जो भी फैसला करेंगे देशहित, राज्य हित में ही करेंगे।