Sunday, November 17, 2024
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कौन जात हो… बिहार ने शुरू की गिनती: ₹500 करोड़ करेगा खर्च, दो चरणों में होगा पूरा; जानें सब कुछ

बिहार में कभी चिर प्रतिद्वंद्वी रहे राजद के लालू प्रसाद यादव और जदयू के नीतीश कुमार की राजनीति ही अन्य पिछड़ा वर्ग पर टिकी हुई है। जहाँ राजद के लिए अहीर प्रमुख वोट बैंक हैं, वहीं जदयू के लिए कुर्मी। अगर OBC के सही आँकड़े सामने आते हैं तो इन दोनों दलों को अपनी राजनीतिक गोटियाँ सेट करने में मदद मिल जाएगी।

बिहार में राजद (RJD) और जदयू (JDU) का गठबंधन सरकार बनते ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) जातीय गणना कराने पर सहमति व्यक्ति कर दी थी। इसका काम बिहार में आज शनिवार (7 जनवरी 2023) से शुरू हो गया है। जातीय गणना की माँग RJD विपक्ष में रहते हुए लंबे समय से करती आ रही थी।

500 करोड़ रुपए खर्च कर दो चरणों में गिनती

नीतीश कुमार की विवादास्पद जाति आधारित जनगणना पर 500 करोड़ रुपए खर्च होंगे। सरकार दो चरणों में इस जनगणना को पूरा करेगी। पहले चरण में 7 जनवरी से 21 जनवरी तक किया जाएगा। इस दौरान राज्य के सभी घरों की संख्या की गणना की जाएगी।

इसका दूसरा चरण मार्च में शुरू किया जाएगा। इस दौरान सभी जातियों, उप-जातियों और धर्मों के लोगों से संबंधित आँकड़ें एकत्र किए जाएँगे। इस दौरान गणना करने वाले लोग उन सभी लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी दर्ज करेंगे।

पंचायत से जिला स्तर तक के इस आठ स्तरीय सर्वेक्षण में एक मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से डेटा डिजिटल रूप से एकत्र किया जाएगा। इस ऐप में स्थान, जाति, परिवार में लोगों की संख्या, उनके पेशे और वार्षिक आय के बारे में प्रश्न होंगे।

जनगणना करने वाले लोगों में शिक्षक, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, मनरेगा (MNREGA) या जीविका कार्यकर्ता शामिल हैं। इन लोगों को जनगणना से संबंधित कार्यों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने 15 दिसंबर 2022 से प्रशिक्षण देने के लिए व्यवस्था की थी।

OBC के आँकड़े जुटाने के लिए भारी-भरकम राशि खर्च

बिहार सरकार भाजपा की अगुवाई वाली NDA गठबंधन से अलग होने के बाद अलग राह पर है। इसके पहले केंद्र की भाजपा सरकार ने जातीय जनगणना कराने से इनकार कर दिया था। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने साल 2021 में संसद में कहा था कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को छोड़कर कोई भी जाति आधारित जनगणना नहीं होगी।

बता दें कि आजादी के बाद से भारत में अब तक सात बार जनगणना हो चुकी है। इन सबमें केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित आँकड़े प्रकाशित किए हैं। हालाँकि, हर दस साल पर होने वाली इस जनगणना में आँकड़े हर जाति और धर्म के इकट्ठे किए जाते रहे हैं।

सन 1931 की जनगणना में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी आँकी गई थी। केंद्र में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने साल 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना कराई थी, लेकिन जाति के आँकड़े जारी नहीं किए गए थे।

उधर, बिहार विधानसभा ने जातिगत जनगणना के पक्ष में साल 2018 और 2019 में सर्वसम्मति से दो प्रस्ताव पारित किए। जून 2022 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बिहार में एक सर्वदलीय बैठक हुई थी, जिसमें भाजपा सहित सभी दलों ने जातिगत जनगणना कराने पर सहमति दी।

अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं

हालाँकि, सर्वदलीय बैठक में भाजपा ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इस जातीय गणना में अवैध बांग्लादेशी मुस्लिमों और घुसपैठिए रोहिंग्या मुस्लिमों को बाहर रखना होगा। इसका लाभ उन्हें किसी भी तरह नहीं मिलना चाहिए। इसके अलावा, उच्च जाति वाले मुस्लिम खुद को निम्न जाति का बताकर इसका लाभ ना ले सकें, यह भी सरकार को सुनिश्चित करना होगा।

हालाँकि, बिहार की नीतीश सरकार के पास इन अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं है। यहाँ तक कि केंद्र सरकार ने जब राष्ट्रीय पंजीयन रजिस्टर (NRC) को देश भर में लागू करने की बात कही, तब वोट बैंक को देखते हुए नीतीश कुमार ने इसे लागू करने से साफ मना कर दिया था।

सीएम नीतीश कुमार ने कहा दरभंगा में हायाघाट ब्लॉक के चंदनपट्टी में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि बिहार में NRC लागू नहीं किया जाएगा। बता दें कि मिथिलांचल और सीमांचल, बिहार में सबसे अधिक अवैध घुसपैठियों के निवास वाला क्षेत्र है।

जातीय जनगणना के जरिए 2024 लोकसभा की तैयारी

दरअसल, जातिगत जनगणना की माँग करने वालों का तर्क है कि ST, SC को उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण दिया गया था, लेकिन OBC के मामले में ऐसा नहीं है। उनका कहना है कि कोटा को संशोधित करने की जरूरत है और इसके लिए जाति आधारित जनगणना की जरूरत है।

बिहार सरकार का तर्क है कि इन आँकड़ों का इस्तेमाल वह जनोपयोगी नीतियों को बनाने में करेगी। हालाँकि, बिहार सरकार का यह आँकड़ा पूरी तरह राजनीतिक साबित होता है। बिहार सरकार ने यह भी कहा था कि जातिगत आँकड़ों के अभाव में गैर-एसटी/एसटी से अलग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सही जनसंख्या का पता नहीं चल पा रहा है।

बता दें कि बिहार में कभी चिर प्रतिद्वंद्वी रहे राजद के लालू प्रसाद यादव और जदयू के नीतीश कुमार की राजनीति ही अन्य पिछड़ा वर्ग पर टिकी हुई है। जहाँ राजद के लिए अहीर प्रमुख वोट बैंक हैं, वहीं जदयू के लिए कुर्मी। अगर OBC के सही आँकड़े सामने आते हैं तो इन दोनों दलों को अपनी राजनीतिक गोटियाँ सेट करने में मदद मिल जाएगी।

दरअसल, नीतीश कुमार केंद्र में खुद को देखने के लिए लालायित हैं। ऐसे में बिहार में जातिगत जनगणना कराकर वे 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इसे राजनीतिक एजेेंडे के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं। इससे भाजपा को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो सकता है।

1990 के दशक में लागू हुआ था मंडल कमीशन

बता दें कि साल 1990 के दशक में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करते हुए OBC आरक्षण को लागू किया था। इस समय भाजपा जनता दल सरकार के साथ गठबंधन में थी। चुनाव से पहले ही उन्होंने इसे लागू करने का वादा किया था और सरकार बनते ही इस पर काम शुरू कर दिया था।

उस दौरान वीपी सिंह ने तर्क दिया था कि सरकारी नौकरियों में एक ही जाति के वर्चस्व को तोड़ने और सबको समान अवसर देने के लिए मंडल कमीशन लागू किया गया है। हालाँकि, कमीशन की सिफारिशें लागू होते ही भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और देश भर में राम मंदिर के लिए रथयात्रा की शुरुआत की थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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