अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) वर्ग से आने वाले पहाड़ी कोरबा (Pahadi Korba) भारत के राष्ट्रपति की ‘दत्तक संतान’ कहे जाते हैं। खेती और पशुपालन उनकी जीविका का मुख्य साधन है। सनातन के प्रति समर्पित यह जनजातीय समाज छत्तीसगढ़ में अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहा है।
जैसा कि मैनेजर राम भगत ने ऑपइंडिया को बताया, “कोरबा और नगेशिया ऐसी जनजाति हैं, जिनमें धर्मांतरण न के बराबर हुआ है। इनके ऊपर भी कई माध्यमों से चर्च दबाव बनाते हैं। पर इनका संकल्प है कि कंदमूल, फल-फूल खाकर रह जाएँगे, लेकिन धर्म नहीं बदलेंगे। पर आज षड्यंत्र कर उनकी जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है।” भगत जशपुर जिला बीजेपी जनजाति मोर्चा (BJP ST Morcha) के उपाध्यक्ष हैं। साथ ही वनवासी कल्याण आश्रम की सरहुल पूजा समिति के जिला उपाध्यक्ष का दायित्व भी उनके पास है।
भगत जिस खतरे के बारे में बात कर रहे हैं, उसे समझने के लिए हम हर्रापाठ नाम के गाँव चलते हैं। झारखंड की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के मनोरा ब्लॉक में यह गाँव है। सड़क से सटे इस गाँव में पहाड़ी कोरबा रहते हैं। यादवों के कुछ घरों को छोड़कर ज्यादातर आबादी जनजातीय समाज की है। खुद को बीजेपी से जुड़ा बताने वाले हर्रापाठ के नंदकुमार यादव ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा, “इस गाँव में जो जनजातीय वर्ग के लोग रहते हैं वे हिंदू सनातन परंपरा को मानने वाले हैं। लेकिन जब से कॉन्ग्रेस की सरकार आई है, ईसाई मिशनरी इधर भी धर्मांतरण का प्रयास कर रहे हैं। लोगों को बहला-फुसला रहे हैं। मेरे गाँव में भी गिरिजाघर बनाने के लिए पहाड़ी कोरबा की जमीन पर वे कब्जा कर रहे थे।”
हर्रापाठ में ही वे पहाड़ी कोरबा परिवार रहते हैं, जिनकी 24.88 एकड़ जमीन राज्य के खाद्य एवं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत (Amarjeet Bhagat) के बेटे आशीष भगत के नाम पर धोखे से लिखवाई गई थी। जब यह धोखाधड़ी हुई थी, तब भगत जशपुर के प्रभारी मंत्री भी हुआ करते थे।
इस फर्जीवाड़े में जिनलोगों की जमीन गई, उनमें से एक लाल साय राम भी हैं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया, “वो पूरी जमीन (करीब 25 एकड़) हमारे पुरखों की है। इसमें हम कई परिवार हिस्सेदार हैं। हमलोगों को सरकारी अनुदान दिलाने के नाम पर जशपुर ले जाया गया। वहाँ कुछ कागजों पर हमसे अँगूठा लगवाया/दस्तख्त करवाए। जमीन बिकने की बात हमें तब पता चली जब पटवारी नापने आया।”
साय के अनुसार पटवारी ने ही उन्हें बताया कि उनकी जमीन मंत्री ने खरीद ली है, जबकि वे न तो कभी मंत्री अमरजीत भगत और न उनके उस जज बेटे आशीष भगत से मिले थे, जिनके नाम पर जमीन लिखी गई थी। उन्हें जो लोग जशपुर लेकर गए थे, वे कॉन्ग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता बताए जाते हैं। उनसे ही इन परिवारों को साढ़े 10 लाख के छह चेक मिले थे।
पटवारी से जब जमीन बिकने की जानकारी मिली तो ये परिवार चेक लेकर बीजेपी के स्थानीय नेता कृष्ण कुमार राय के घर गए। राय को पूर्ववर्ती रमन सिंह सरकार में मंत्री का दर्जा प्राप्त था। राय के भतीजे और भाजयुमो के सरगुजा संभाग प्रभारी नितिन राय ने ऑपइंडिया को बताया, “इन गाँवों से हमारा पूर्वजों से लगाव रहा है। ये लोग चेक लेकर हमारे पास आए थे। हमने जाँच की तो पता चला कि अमरजीत भगत जो यहाँ के प्रभारी मंत्री थे, उन्होंने इन्हें ठग कर, षड्यंत्र कर अपने जज बेटे के नाम से जमीन खरीद ली थी। इस मामले में दलाली करने वाले लोगों ने इनसे कहा कि बहुत बड़े मंत्री ने तुम्हारी जमीन ली है। तुम्हारी जमीन कोई वापस नहीं करा सकता। हमने आंदोलन किया। धरना दिया। लेकिन जिला प्रशासन ने हमारी नहीं सुनी। इसके बाद हम इनलोगों को राज्यपाल अनुसूइया उइके के पास लेकर गए। उसके बाद विवाद बढ़ता देख अमरजीत भगत को जमीन वापस करनी पड़ी।”
नितिन राय के अनुसार, “पहाड़ी कोरबा की जमीन पर ईसाई मिशनरी भी कब्जा कर रहे हैं। इसी गाँव (हर्रापाठ) का भुनेश्वर कोरबा है, उसकी जमीन पर भी कब्जे की कोशिश हुई थी। वह केस भी चल रहा है।” भुनेश्वर राम ने सड़क से ही सटी अपनी वह जमीन भी ऑपइंडिया को दिखाई जिस पर अधूरा निर्माण हुआ पड़ा है। उन्होंने बताया कि घुड़ा एक्का और दया कुजूर उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे थे। उन्होंने रोका तो उन्हें भगा दिया। वे कहते हैं, “ये लोग ईसाई हो चुके हैं। यहाँ गिरिजाघर बनाना चाहते थे।” इस मामले में भी प्रशासन ने तब कार्रवाई की जब बीजेपी नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने दखल दिया।
लाल साय का मामला हो या भुनेश्वर राम का, ये पहाड़ी कोरबा से जुड़े वे मामले हैं जो संज्ञान में आ गए। जिनमें राजनीतिक दबाव के चलते जनजातीय वर्ग की जमीन बच गई। ऐसे सैकड़ों मामले बताए जाते हैं जिनमें फर्जी तरीके से अनुसूचित जनजाति वर्ग की जमीन रजिस्ट्री करवाई गई है। जैसा कि नितिन राय ने ऑपइंडिया को बताया, “दलालों की पैनी नजर यहाँ की जमीनों पर है। इसका कारण बॉक्साइट है। पांड्रा पाट, बागीचा क्षेत्र में हजारों एकड़ जमीन फर्जी तरीके से रजिस्ट्री हुई है। उसकी जाँच हो जाए तो सभी कोरबा पहाड़ी के जमीन वापस मिल जाएँगे।”
इसलिए सवाल अमरजीत भगत के जमीन लौटाने के साथ ही समाप्त नहीं हो जाते? उन्हें जशपुर के प्रभारी मंत्री पद से हटाए जाने के साथ ही उनके पाप धुल नहीं जाते? नियम है कि जज को संपत्ति खरीदने से पहले इसकी जानकारी देनी होती है। क्या उनके बेटे आशीष भगत ने ऐसा किया? इस मामले में जो लोग दलाल की भूमिका में थे, जिन्हे कॉन्ग्रेस का ही कार्यकर्ता बताया जा रहा है, उन पर कोई कार्रवाई हुई? अमरजीत भगत के साथ उनके संबंधों की जाँच हुई? जमीन लौटाने की बात कहते हुए अमरजीत भगत ने दावा किया था कि इस सौदे में नियमों का पालन हुआ था। लेकिन पहाड़ी कोरबा संरक्षित जनजाति हैं। उनकी जमीन दूसरी जनजाति भी नहीं खरीद सकते। फिर उरांव जनजाति से आने वाले अमरजीत भगत के बेटे ने ऐसा कैसे कर लिया? जाहिर है कि इस सौदे में प्रशासनिक मिलीभगत भी रही होगी। लेकिन साल भर बाद भी इस मामले में किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। आखिर वो कौन सी ‘योग्यता’ है जिसकी वजह से अमरजीत भगत आज भी भूपेश बघेल के मंत्रिमंडल में बने हुए हैं? इन सवालों का जवाब आज तक नहीं मिले हैं। आखिर क्यों?