पूर्वी लद्दाख क्षेत्र स्थित गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों और चीन की सेना के बीच जारी गतिरोध के बीच चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) द्वारा कॉन्ग्रेस के साथ गुपचुप तरीके से साइन किए गए MOU और फिर राजीव गाँधी फाउंडेशन की चर्चा में खुलासा हुआ है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने समय-समय पर राजीव गाँधी फाउंडेशन में बहुत बड़ी मात्र में ‘वित्तीय सहायता’ दी थी।
टाइम्स नाउ न्यूज़ चैनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड के नाम पर किए गए चीन की सरकार और गाँधी परिवार के बीच अन्य गोपनीय समझौतों के साथ ही यह वित्तीय मदद करीब 300000 अमेरिकी डॉलर (उस समय के एक्सचेंज रेट के हिसाब से करीब 1.5 करोड़ रुपए) के आस-पास है।
#CongChinaFile | China donated to Rajiv Gandhi Foundation.
— TIMES NOW (@TimesNow) June 25, 2020
Not just @RahulGandhi-China MoU in 2008, but details of donations to Rajiv Gandhi Foundation are out.
Meanwhile, @BJP4India calls it proof of ‘quid pro quo’.
Rahul Shivshankar & Navika Kumar with details. pic.twitter.com/JZNfdmuj5J
यह सब समझौते चीन के साथ खराब सम्बन्ध होने के बावजूद कॉन्ग्रेस ने गठबंधन सरकार में रहने के दौरान साइन किए थे और देश से समझौते का ब्योरा छुपाया गया। समझौते के ब्यौरे को सार्वजनिक नहीं किया गया।
चीन की सत्ताधारी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CCP) के साथ कॉन्ग्रेस पार्टी के साल 2008 में हुए समझौते का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई, जिसमें सीपीसी के साथ कॉन्ग्रेस पार्टी के हुए समझौते को सार्वजनिक नहीं करने का विषय उठाते हुए उस समझौते की एनआइए या सीबीआई जाँच की माँग की गई है।
टाइम्स नाउ न्यूज़ चैनल द्वारा वर्ष 2010 के पीएचडी रिसर्च ब्यूरो के एक अध्ययन पर आधारित भारत-चीन ट्रेड रिलेशनशिप के बीच यूएस बिलियन डॉलर में हुए ट्रेड रिलेशनशिप को लेकर असंतुलन का खुलासा करते हुए इस समझौते की क्रोनोलोजी को समझाया गया है।
इस शो में बताया गया है कि किस प्रकार CCP यानी चीन की सरकार वर्ष 2005, 2006, 2007 और 2008 में राजीव गाँधी फाउंडेशन में डोनेशन करती है और इसके बाद वर्ष 2010 में एक अध्ययन जारी कर बताया जाता है कि भारत और चीन के बीच व्यापार समझौतों को बढ़ावे की जरूरत है।
टाइम्स नाउ के अनुसार, यह अध्ययन मोहम्मद साकीब और पूरण चंद राव द्वारा किया गया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य भारत और चीन के बीच विभिन्न व्यापार समझौतों का विश्लेषण करना था और दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड अग्रीमेंट में कुल लाभ को समझना था। इस अध्ययन का निष्कर्ष था कि भारत और चीन के बीच व्यापार सम्बन्ध बहुत मजबूत थे लेकिन भारत को अपने प्रोडक्ट्स में विविधता लानी होगी।
इसी विविधता को लाने के लिए कॉन्ग्रेस और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच MOU (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) भी साइन किया गया था। इसके अध्ययन में पता चलता है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन में चीनी दूतावास और चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा राजीव गाँधी इंस्टीट्यूट ऑफ कन्टेम्पररी स्टडीज में डोनेशन किए गए।
2005 से 2008 के बाद राजीव गाँधी इंस्टीट्यूट ऑफ कन्टेम्पररी स्टडीज इस ट्रेड अग्रीमेंट पर अध्ययन जारी करती है और इसमें सुझाव किया गया कि भारत और चीन के बीच फ्री ट्रेड अग्रीमेंट भारत के लिए लाभदायक रहा।
2008 में बीजिंग में हुए समझौते के तहत एमओयू में तय हुआ है कि दोनों पार्टी एमओयू के तहत क्षेत्रीय, द्वीपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मसले पर एक दूसरे से बात करेंगे। टाइम्स नाउ द्वारा दिखाई गई रिपोर्ट में इस अध्ययन का एक हिस्सा दिखाया गया है, जिसमें चाइनीज अम्बेसडर राजीव गाँधी फाउंडेशन के वार्षिक समारोह में मौजूद रहे।
2006 में चीन की सरकार द्वारा राजीव गाँधी फाउंडेशन में 10 लाख रूपए की वित्तीय मदद
एक और खुलासे में गाँधी परिवार के चीन के साथ अपने गोपनीय संबंधों के दावों को और मजबूती मिलती है। नए खुलासे से पता चलता है कि चीनी सरकार ने वर्ष 2006 में ‘राजीव गाँधी फाउंडेशन’ को ‘वित्तीय सहायता’ के लिए 10 लाख रुपए दान दिए थे।
चीनी दूतावास पर उपलब्ध एक दस्तावेज़ के अनुसार, भारत में तत्कालीन चीनी राजदूत सुन युक्सी (Sun Yuxi) ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को 10 लाख रुपए दान दिए थे, जो कॉन्ग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ है और कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा चलाया जाता है।
मनमोहन मल्होत्रा, जो उस समय राजीव गाँधी फाउंडेशन के महासचिव थे, ने सोनिया गाँधी द्वारा नियंत्रित राजीव गाँधी फाउंडेशन की ओर से यह वित्तीय मदद प्राप्त की थी।
राजीव गाँधी फाउंडेशन
ध्यान देने की बात यह है कि यह कोई और नहीं बल्कि कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष स्वयं सोनिया गाँधी ही इस राजीव गाँधी फाउंडेशन की प्रमुख हैं। सोनिया गाँधी के साथ-साथ राहुल गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और प्रियंका गाँधी भी फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं।
राजीव गाँधी फाउंडेशन, जो 1991 में स्थापित किया गया था, साक्षरता, स्वास्थ्य, विकलांगता, वंचितों के सशक्तीकरण, आजीविका और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन सहित कई मुद्दों पर काम करने का दावा करता है।
यह सब डोकलाम विवाद के दौरान घटित हो रहा था। यानी एक ओर जहाँ सीमा पर भारतीय सेना और चीन की सेना आमने-सामने थीं, तब राहुल गाँधी चीन की सरकार के साथ लंच करते हुए सीक्रेट समझौतों पर हस्ताक्षर कर रहे थे।
इसमें राहुल गाँधी को आमंत्रित किया गया था, उनके साथ गुपचुप लंच आयोजित किए गए। जबकि आज के समय पर वो गलवान घाटी में चल रहे घटनाक्रम पर यह साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि चीन ने भारत की जमीन हड़प ली है और केंद्र सरकार ने यह जेमीन चीन को दे दी है।
2008 में साइन किया गया यह MOU बेहद गोपनीय तरीके से साइन किया गया था, जिसके बारे में किसी को शायद ही भनक लग पाई हो यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी कमिटी तक को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि यदि यह डोनेशन और समझौते दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड अग्रीमेंट के लिए थे तो फिर इन्हें सार्वजानिक करने में कॉन्ग्रेस को क्या समस्या थी?
कॉन्ग्रेस चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करती है। डोकलाम मुद्दे के दौरान, राहुल गाँधी गुपचुप तरीके से चीनी दूतावास जाते हैं। नाजुक स्थितियों के दौरान, राहुल गाँधी राष्ट्र को विभाजित करने और सशस्त्र बलों का मनोबल गिराने की कोशिश करते हैं। इन सबके बीच गाँधी परिवार और चीन की सरकार के बीच साइन किए गए एमओयू की भूमिका को देखा जाना चाहिए है।
राजीव गाँधी फाउंडेशन में चीन की सरकार की वित्तीय मदद, गाँधी परिवार के साथ रेगुलर मीटिंग, इंडिया-चीन स्टडी आदि घटनाक्रमों का अर्थ यह लगाया जा सकता है कि चीन की सरकार गुपचुप तरीके से राजीव गाँधी फाउंडेशन में वित्तीय मदद के नाम पर गाँधी परिवार के खतों में पैसे भेज रही थी? चीन की सरकार और गाँधी परिवार के बीच गुपचुप तरीकों से किए गए यह समझौते कई प्रकार के सवाल खड़े करते हैं।
वर्ष 2008 में साइन किए गए इस एमओयू पर राहुल गाँधी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के मंत्री वांग जिया रुई ने हस्ताक्षर किए थे। इस मौके पर सोनिया गाँधी और चीन के तत्कालीन उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग भी उपस्थित थे।
कॉन्ग्रेस के इस गोपनीय समझौते का आधार व्यापार को बढ़ावा देना बनाया गया, वास्तव में यह भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं। यह भी देखा जाना चाहिए कि दोनों देशों के बीच सप्लाई चेन से लेकर कई ऐसी जगहों पर चीन को आधार दिया गया कि आज के समय में चीन के बहिष्कार कर पाना लगभग नामुमकिन हो चुका है। यानी कॉन्ग्रेस नहीं चाहती कि चीन की भारतीय अर्थव्यवस्था से घुसपैठ दूर हो और वह निरंतर भारतीय बाजार का अहम् हिस्सा बना रहे, जिसके लिए वह सत्ता में रहते हुए पूरी तैयारी भी कर चुके थे?
इन समझौतों के जरिए चीन की कम्पनियों को बड़े स्तर पर भारत में स्थापित करने का अवसर मिला और आज के समय में यह भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद बन चुके हैं खासकर इलेक्ट्रोनिक्स और फर्मास्युटीकल सेक्टर में चीन की पैठ आज भारत के लिए बड़ा सरदर्द बन गया है।