Monday, November 18, 2024
Homeराजनीतिसोनिया गाँधी का 'काला कानून': आज ताहिर हुसैन जैसे दंगाई आज़ाद और जेल में...

सोनिया गाँधी का ‘काला कानून’: आज ताहिर हुसैन जैसे दंगाई आज़ाद और जेल में होते दिल्ली के पीड़ित हिन्दू

एक ऐसा क़ानून, जो हिन्दुओं को उनके ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता। सरकारी अधिकारी से लेकर पुलिस तक दंगाइयों का पक्ष ले रहे होते क्योंकि उनकी नौकरी चली जाती। ताहिर हुसैन मजे कर रहा होता और अंकित शर्मा का परिवार जेल में होता। जानिए और क्या था उस 'काले कानून' में...

फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भयंकर हिन्दू-विरोधी दंगे हुए, जिनमें कई लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। मीडिया ने कपिल मिश्रा को इसके लिए दोष दे दिया, क्योंकि उन्होंने उपद्रवियों से सड़कें खाली कराने को कहा था। लेकिन, जो असली दोषी सामने आए, उन्हें बचाने के लिए मीडिया का एक बड़ा वर्ग खड़ा हो गया। आप के निलंबित निगम पार्षद ताहिर हुसैन का इन दंगों में बड़ा रोल सामने आया है। फैसल फ़ारूक़ की राजधानी स्कूल से हिन्दुओं पर हमले किए गए। मोहम्मद शाहरुख़ नामक व्यक्ति पुलिस पर फायरिंग करता हुआ सड़कों पर बेख़ौफ़ घूमता रहा। फ़िलहाल ये तीनों ही पुलिस के शिकंजे में हैं। इस्लामी भीड़ की क्रूरता की एक से बढ़ कर एक दरिंदगी सामने आई है। मसलन, अंकित शर्मा को 400 से अधिक बार चाकुओं से गोदना। दिलबर नेगी के हाथ-पैर काट कर जिंदा आग में झोंक देना।

क्या आपको पता है, आज से एक दशक पहले हमारे देश में एक ऐसा क़ानून बनने जा रहा था, जिससे इन दंगाइयों को सज़ा मिलना मुश्किल हो जाता और उन पर कार्रवाई नहीं हो पाती। जैसा कि सर्वविदित है, यूपीए सरकार के दौरान कॉन्ग्रेस अध्यक्ष गाँधी राष्ट्रीय सलाहकार समिति की मुखिया होती थीं और परदे के पीछे रह कर मनमोहन सरकार चलाया करती थीं। जो भी क़ानून बनते थे, क़ानूनी संशोधन पारित होते थे या बिल तैयार होते थे, उन सब पर सोनिया की छाप रहती थी।

ऐसा ही एक बिल 2011 में तैयार किया गया था। इसका मसौदा राष्ट्रीय सलाहकार समिति ने बनाया था। इसका नाम था- सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक। अगर ये क़ानून बन गया होता तो बहुसंख्यक हिन्दू पीड़ित होकर भी अपराधी की श्रेणी में आते और कथित अल्पसंख्यक दंगे कर के भी पीड़ित कहे जाते। हिन्दुओं को बिना कुछ किए ही सज़ा मिलती। इस क़ानून के 2 मुख्य उद्देश्य थे। पहला उद्देश्य था, हिंदूवादी संगठनों का दमन करना और दूसरा लक्ष्य था अल्पसंख्यक वोटरों को रिझाना। संघीय ढाँचे को ध्वस्त करने की पूरी तैयारी थी, क्योंकि क़ानून-व्यवस्था का मसला राज्य के जिम्मे आता है।

आपको बताते हैं कि इस क़ानून के ड्राफ्ट को तैयार करने वालों में कौन लोग शामिल थे। हर्ष मंदर, जो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर भी विश्वास नहीं करता है और कहता है कि फैसला सड़कों पर होगा। इसके अलावा जॉन दयाल और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे नक्सली भी इस कमिटी में शामिल थे। तीस्ता आज विदेशी फंडिंग के मामले में कार्रवाई का सामना कर रही हैं। जॉन दयाल ‘ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन’ का अध्यक्ष रहा है। सैयद शहाबुद्दीन भी इस कमिटी में शामिल था। नियाज फारुखी, शबनम हाश्मी और फराह नकवी जैसे हिन्दू-विरोधी तो थे ही। आप सोचिए, उस कमिटी ने दंगों के मामले में कैसा क़ानून बनाया होगा?

जस्टिस मुरलीधर की पत्नी उषा रामनाथन भी इस क़ानून का ड्राफ्ट तैयार करने वालों में शामिल थीं। वो आधार के ख़िलाफ़ एक्टिविज्म करती रही हैं। इस क़ानून में दावा किया गया था कि ये एक समूह की सुरक्षा के लिए लाया गया है। आप समझ गए होंगे, उस समूह से क्या आशय रहा होगा। अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का आरोप लगा कर हिन्दुओं को प्रताड़ित करना। अगर कोई हिन्दू किसी समुदाय विशेष वाले को अपना मकान बेचने से मना कर दे, फिर भी घृणा जैसे आरोप लग जाते। विश्व हिन्दू परिषद् के प्रवक्ता विनोद बंसल ने तब इन क़ानून का अध्ययन करने के बाद इसकी आलोचना करते हुए लिखा था:

भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जाएगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाए; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जाएगा जब तक वह अपने-आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।

अब आप समझ जाइए, इस क़ानून के लागू होते ही हिन्दुओं का क्या हाल हो जाता? अब थोड़ी सी बात इस बिल के तकनीकी पहलुओं पर करते हैं। यह क़ानून दलित विरोधी भी था, क्योंकि यदि कोई हिंसा समुदाय विशेष और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजातियों के मध्य होती तो उस स्थिति में यह विधेयक समुदाय विशेष का साथ देता और इस प्रकार दलितों की रक्षा के लिए बना हुआ दलित एक्ट भी निष्प्रभावी हो जाता। अगर किसी हिन्दू महिला के साथ बलात्कार की घटना होती तो इस क़ानून के अंतर्गत कार्रवाई नहीं होती। सोचिए, इतना जघन्य अपराध कर के भी दंगाई बच निकलते तो पत्थरबाजी, गोलीबारी और बमबारी करने वालों के लिए ये क़ानून कितने बड़े ढाल का काम करता!

ताहिर हुसैन आज पुलिस के शिकंजे में नहीं होता, उलटा दिवंगत आईबी ऑफिसर अंकित शर्मा के परिवार पर ही कार्रवाई हो रही होती। फ़ारूक़ फैसल गिरफ़्तार नहीं होता, उलटा प्राचीन हनुमान मंदिर की रक्षा के लिए जान हथेली पर रखने वाले हिन्दू ही जेल में होते। दिलचस्प बात ये है कि हिन्दुओं के ख़िलाफ़ घृणा फैलाने वालों को लेकर इस बिल में कुछ नहीं लिखा था, जबकि ‘समूह’ वाले मामले में कड़ी सज़ा मिलती। अपराध अगर ‘समूह’ के ख़िलाफ़ हो तो पुलिस अधिकारी तक पर कार्रवाई का प्रावधान था।

सबसे बड़ी बात तो ये कि अगर किसी हिंदूवादी संगठन के किसी साधारण कार्यकर्ता तक पर कोई झूठे आरोप भी लगते तो न सिर्फ़ वो संगठन बल्कि उसके मुखिया व वरिष्ठ पदाधिकारियों तक पर कार्रवाई का रास्ता साफ़ हो जाता। उससे पूछा जाता कि उसने अपने कार्यकर्ता को नियंत्रण में क्यों नहीं रखा? इस बिल के दस्तावेज में बार-बार ‘ग्रुप’ यानी ‘समूह’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका स्पष्ट अर्थ अल्पसंख्यकों से था। क्या इस क़ानून से वहाँ हिन्दुओं को फायदा मिलता, जहाँ वो अल्पसंख्यक हैं? उत्तर है- नहीं। अगर ये आँकड़ा हिन्दुओं के पक्ष में न्यूनतम 60:40 का न हो तो भी उन्हें ही सज़ा मिलती।

यानी, सोनिया गाँधी का सीधा मानना था कि हिन्दू कभी पीड़ित हो ही नहीं सकते और कथित अल्पसंख्यक कभी कोई अपराध कर ही नहीं सकते। तब राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अरुण जेटली ने भी इस बिल पर हमला करते हुए यही बात कही थी। उन्होंने इसे ‘बहुत ज्यादा भेदभाव करने वाला बिल’ करार दिया था। उन्होंने कहा था कि बिना इससे प्रभावित होने वाले लोगों से बातचीत किए हुए इस बिल का प्रारूप तैयार किया गया है, जिसका एकमात्र उद्देश्य देश में ध्रुवीकरण का माहौल तैयार करना है।

तभी संघीय ढाँचे, सेकुलरिज्म, बराबरी का अधिकार और दलितों को मिले अधिकारों को ताक पर रख कर न सिर्फ़ इस क़ानून का मसौदा तैयार किया गया, बल्कि इसे पास कराने के लिए जोर भी लगाया गया। तब इसे लेकर हुई बैठक का गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहिष्कार किया था। बिहार के सीएम नीतीश कुमार और ओडिशा के उनके समकक्ष नवीन पटनायक भी नहीं पहुँचे थे। जेटली ने ये बातें 2013 में कही थी और याद दिलाया था कि 2011 में भी इसका विरोध हुआ था।

इस बिल की की धारा-8 के अनुसार, ‘हेट प्रोपेगेंडा’ अथवा ‘घृणा या दुष्प्रचार’ सिर्फ़ ‘समूह’ के ख़िलाफ़ ही होता है और इसके अंतर्गत सज़ा भी उन्हें ही मिलती जो ‘समूह’ के ख़िलाफ़ कुछ भी लिखित में या बोल कर उसे ठेस पहुँचाते। ठेस पहुँचाने की तो छोड़िए, आरोप भी लग जाते तो कार्रवाई होती। यानी, इस क़ानून के अंतर्गत भारतीय न्याय-व्यवस्था का भी अपमान होता, क्योंकि व्यक्ति तब तक एक तरह से दोषी माना जाता, जब तक वो ख़ुद को निर्दोष न सिद्ध कर दे।

घृणा फैलाने में कोई कार्टून, चित्र या फिर सिंबल भी आ जाता। लेकिन इससे ‘फक हिंदुत्व’ का पोस्टर लहराने वाले, देश के नक़्शे के साथ छेड़छाड़ करने वाले और माँ काली का अपमान करने वाले दंगाई बच निकलते, क्योंकि हिन्दू तो उस ‘समूह’ के अंतर्गत आता ही नहीं। ‘संगठित अपराध’ की परिभाषा को भी इस बिल ने छिन्न-भिन्न कर के रख दिया था। अगर कोई व्यक्ति किसी संगठन का सदस्य है और उसके लिए सक्रिय न भी हो, तब भी उस पर लगे आरोपों के लिए ‘संगठित अपराध’ का मुक़दमा चलता। इतना ही नहीं, उस संगठन या व्यक्ति को वित्तीय रूप से मदद करने वाली संस्थाएँ या लोग भी कार्रवाई की जद में आ जाते।

सोचिए, यूपीए सरकार को अगर एक और कार्यकाल मिल जाता और उसके पास पूर्ण बहुमत होता तो इस देश में हिन्दुओं पर कितना बड़ा अत्याचार हो रहा होता! किसी मजहबी द्वारा आरोप लगाने भर से संगठन, व्यक्ति, अधिकारी या संस्था पर कार्रवाई हो जाती और अदालतों के चक्कर काटने पड़ते। ताहिर हुसैन और फ़ारूक़ फैसल जैसे दंगाई आज कार्रवाई का सामना कर रहे हैं, क्योंकि ये क़ानून अस्तित्व में नहीं है। इसका तब घोर विरोध हुआ था।

(इस बिल का प्रारूप पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Searched termsसांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम बिल, सांप्रदायिकता बिल 2011, यूपीए सरकार, ताहिर हुसैन मनी लांड्रिंग, ताहिर हुसैन पीएफआई, ता​हिर हुसैन ईडी, ताहिर हुसैन शाहीन बाग, ताहिर हुसैन का बयान, ताहिर हुसैन पिस्टल, ताहिर हुसैन की जमानत याचिका, कैसे पकड़ा गया ताहिर हुसैन, ताहिर हुसैन का भाई, शाह आलम, ताहिर हुसैन फैमिली, ताहिर हुसैन अमरोहा, अंकित शर्मा टार्गेट किलिंग, अंकित शर्मा की हत्या क्यों की गई, अंकित शर्मा बांग्लादेशी आतंकी, बांग्लादेशी आतंकी ताहिर हुसैन, हिंदू घृणा, अमेरिका में हिंदू निशाने पर, हिंदू प्रताड़ना, उबर हिंदूफोबिया, उबर ड्राइवर ने हिंदू को किया प्रताड़ित, उबर दिल्ली दंगा, ताहिर लास्ट लोकेशन, ता​हिर एफआईआर, ताहिर लुक आउट नोटिस, ताहिर हुसैन की तलाश में छापेमारी, ताहिर हुसैन सीसीटीवी फुटेज, ताहिर हुसैन अग्रिम जमानत याचिका, ताहिर हुसैन दिल्ली पुलिस, दिल्ली हिंदू विरोधी दंगा, नालों से मिले शव, दिल्ली नाला शव, दिल्ली मदरसा गुलेल, मदरसा गुलेल विडियो, शिव विहार, मुस्तफाबाद, अमर विहार, दिल्ली दंगे चश्मदीद, दिल्ली हिंसा चश्मदीद, दिल्ली हिंसा महिला, दिल्ली दंगों में कितने मरे, दिल्ली में कितने हिंदू मरे, मोहम्मद शाहरुख, जाफराबाद शाहरुख, शाहरुख फरार, ताहिर हुसैन आप, ताहिर हुसैन एफआईआर, ताहिर हुसैन अमानतुल्लाह, चांदबाग शिव मंदिर पर हमला, दिल्ली दंगा मंदिरों पर हमला, दिल्ली मंदिरों पर हमले, मंदिरों पर हमले, चांदबाग पुलिया, अरोड़ा फर्नीचर, ताहिर हुसैन के घर का तहखाना, अंकित शर्मा केजरीवाल, अंकित शर्मा ताहिर हुसैन, अंकित शर्मा का परिवार, दिल्ली शाहदरा, शाहदरा दिलबर सिंह, उत्तराखंड दिलवर सिंह, दिल्ली हिंसा में दिलवर सिंह की हत्या, रवीश कुमार मोहम्मद शाहरुख, रवीश कुमार अनुराग मिश्रा, रतनलाल, साइलेंट मार्च, यूथ अगेंस्ट जिहादी हिंसा, दिल्ली हिंसा एनडीटीवी, एनडीटीवी श्रीनिवासन जैन, एनडीटीवी रवीश कुमार, रवीश कुमार दिल्ली हिंसा, दिल्ली हिंसा में कितने मरे, दिल्ली दंगों में मरे, दिल्ली कितने हिंदू मरे, दिल्ली दंगों में आप की भूमिका, आप पार्षद ताहिर हुसैन, आप नेता ताहिर हुसैन, ताहिर हुसैन वीडियो, कपिल मिश्रा ताहिर हुसैन, आईबी कॉन्स्टेबल की हत्या, अंकित शर्मा की हत्या, चांदबाग अंकित शर्मा की हत्या, दिल्ली हिंसा विवेक, विवेक ड्रिल मशीन से छेद, विवेक जीटीबी अस्पताल, विवेक एक्सरे, दिल्ली हिंदू युवक की हत्या, दिल्ली विनोद की हत्या, दिल्ली ब्रहम्पुरी विनोद की हत्या, दिल्ली हिंसा अमित शाह, दिल्ली हिंसा केजरीवाल, दिल्ली पुलिस, दिल्ली पुलिस रतनलाल, हेड कांस्टेबल रतनलाल, रतनलाल का परिवार, छत्तीसिंह पुरा नरसंहार, दिल्ली हिंसा, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली हिंसा, करावल नगर, जाफराबाद, मौजपुर, गोकलपुरी, शाहरुख, कांस्टेबल रतनलाल की मौत, दिल्ली में पथराव, दिल्ली में आगजनी, दिल्ली में फायरिंग, भजनपुरा, दिल्ली सीएए हिंसा
अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

महाराष्ट्र में महायुति सरकार लाने की होड़, मुख्यमंत्री बनने की रेस नहीं: एकनाथ शिंदे, बाला साहेब को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहने का राहुल गाँधी...

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने साफ कहा, "हमारी कोई लड़ाई, कोई रेस नहीं है। ये रेस एमवीए में है। हमारे यहाँ पूरी टीम काम कर रही महायुति की सरकार लाने के लिए।"

महाराष्ट्र में चुनाव देख PM मोदी की चुनौती से डरा ‘बच्चा’, पुण्यतिथि पर बाला साहेब ठाकरे को किया याद; लेकिन तारीफ के दो शब्द...

पीएम की चुनौती के बाद ही राहुल गाँधी का बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने का ट्वीट आया। हालाँकि देखने वाली बात ये है इतनी बड़ी शख्सियत के लिए राहुल गाँधी अपने ट्वीट में कहीं भी दो लाइन प्रशंसा की नहीं लिख पाए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -