ये अब किसी से छिपा नहीं है कि महात्मा गाँधी की हत्या के बाद मुंबई व पूरे महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के खिलाफ दंगे भड़क गए थे और उनका नरसंहार हुआ था। अब लेखक व इतिहासकार विक्रम सम्पत ने कहा है कि महात्मा गाँधी की हत्या के बाद ब्राह्मण-विरोधी नरसंहार कॉन्ग्रेस नेताओं ने करवाया था। उन्होंने बताया कि इन मामलों में एक भी केस दर्ज नहीं किया गया था। विक्रम सम्पत ने ‘Times Now’ चैनल पर नविका कुमार से बात करते हुए ये बात कही।
बता दें कि विक्रम सम्पत को विनायक दामोदर सावरकर पर शोध कर के उनकी जीवनी लिखने के लिए जाना जाता है। उन्होंने सावरकर पर ‘Savarkar (Part 1): Echoes from a Forgotten Past, 1883–1924’ और ‘Savarkar (Part 2): A Contested Legacy, 1924-1966’ नामक पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने इन दोनों पुस्तकों में वीर सावरकर की पूरी जीवनी को समेटा है।
विक्रम सम्पत ने कहा कि ये आज भी अधिकतर लोगों को पता नहीं है कि 1984 में दिल्ली व पंजाब में हुए सिख नरसंहार की तरह ही 1948 में भी कॉन्ग्रेस ने मुंबई में ब्राह्मणों का नरसंहार करवाया था। उन्होंने कहा कि पूरे महाराष्ट्र में ब्राह्मणों को निशाना बनाया गया था और ब्राह्मण समाज के हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। बता दें कि नाथूराम गोडसे ‘चितपावन ब्राह्मण’ समुदाय से सम्बन्ध रखते थे।
Several aspects of Indian history are still hidden. Several pages of history have been deleted deliberately: @vikramsampath, Author of #Savarkar – A Contested Legacy, tells Navika Kumar on #FranklySpeakingWithSampath. pic.twitter.com/WeiuHWtiUM
— TIMES NOW (@TimesNow) July 24, 2021
उन्होंने बताया कि उस दंगे में कई कॉन्ग्रेस नेताओं और समर्थकों ने भाग लिया था। विक्रम सम्पत ने जानकरी दी कि नागपुर में कॉन्ग्रेस के 100 दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनके खिलाफ एक भी केस दर्ज नहीं हुआ। बकौल सम्पत, भारतीय लोकतंत्र के इस काले अध्याय को हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी को तो पता भी नहीं है कि ऐसा कुछ हुआ था।
विक्रम सम्पत ने कहा, “वीर सावरकर पर पुस्तक लिखने के दौरान कई ऐसे लोग सामने आए, जिनके पूर्वजों को उस ब्राह्मण विरोधी नरसंहार में निशाना बनाया गया था। उन्होंने अपनी कहानी मुझे बताई। महात्मा गाँधी की हत्या में वीर सावरकर को आरोपित बनाया गया, जिसके बाद उन्हें एक तरह से राजनीति में बहिष्कृत कर दिया गया। अदालत ने उन्हें निर्दोष साबित किया, लेकिन बावजूद इसके उन्हें लेकर गलत धारणाएँ तैयार की गईं।
'In the 60s and 70s, the Hindu nationalist parties were fringe elements. So the Congress leadership were a little more generous with them'.
— TIMES NOW (@TimesNow) July 25, 2021
Author of #Savarkar – A Contested Legacy, @vikramsampath joins Navika Kumar on #FranklySpeakingWithSampath.
Full episode at 8 PM. pic.twitter.com/Kw2obM3lRy
विक्रम सम्पत ने आरोप लगाया कि लिबरल लोग अपने विचार से अलग धारणाओं को जगह नहीं देते हैं और भारत में जब भी इतिहास की बात आती है तो एक संकीर्ण नैरेटिव को आगे बढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा कि चूँकि इतिहास के कई पन्नों को जानबूझ कर मिटा दिया गया है, उन्हें फिर से खँगालना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि आक्रांताओं और स्वतंत्रता संग्राम को लेकर आज़ादी के बाद शासक के हिसाब से इतिहास लिखा गया।
महादेव रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और वीर सावरकर जैसे नाम इसी चितपावन ब्राह्मण जाति से सम्बन्धित हैं। तब महिलाओं और बच्चों तक को शिकार बनाया गया था। इस कत्लेआम में 20 हजार के करीब मकान और दुकानें जला दी गईं। नरसंहार में वीर सावरकर के भाई नारायण दामोदर सावरकर भी मारे गए थे। तकरीबन 1000 से 5000 चितपावन ब्राह्मणों को निर्ममता से रात के अंधेरों में मौत के घाट उतार दिया गया। संख्या 8000 भी हो सकती है।
उस ज़माने में भी इस सम्बन्ध में अखबार में खबरें कम ही आईं, हालाँकि विदेश के अख़बारों ने इस पर रिपोर्ट छापी थी। विदेशी लेखकों ने बताया है कि गाँधी के अनुयाइयों द्वारा फैलाई गई इस हिंसा में ब्राह्मणों के प्रति नफरत फैलाने वाले संगठनों ने भी हवा दी। इनमें कुछ ऐसे संगठन भी थे जिनका नाम ज्योतिबा फुले से जुड़ा है। RSS और हिन्दू महासभा के दफ्तरों में तोड़फोड़ हुई थी। एक लेखक ने बताया था कि पुलिस ने कभी कोई भी सरकारी रिकॉर्ड उनसे शेयर नहीं किया।