यूपी सरकार ने मंगलवार (अक्टूबर 06, 2020) को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर माँग की है कि उसे यूपी के हाथरस में लड़की से कथित बलात्कार और हमले की CBI जाँच का निर्देश देना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई निहित स्वार्थ से गलत और झूठे विमर्श नहीं रच पाएगा। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में यूपी सरकार की माँग है कि PIL पर सुनवाई की जगह अदालत को CBI जाँच की निगरानी करनी चाहिए।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक अनुसूचित जाति की युवती से कथित सामूहिक बलात्कार और मौत के मामले में केस की SIT से जाँच कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की बेंच कर रही है।
पीड़िता के परिवार की सहमति से ही किया था रात को अंतिम संस्कार
उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें कहा गया है कि पीड़िता के परिवार की सहमति से ही उस रात अंतिम संस्कार किया गया था। मामले में एसआईटी की जाँच चल रही है। आज एसआईटी की टीम उस जगह पहुँची है, जिस जगह पीड़िता का शव जलाया गया था।
हलफनामे में बताया गया है कि जिला प्रशासन ने सुबह बड़े पैमाने पर हिंसा से बचने के लिए, रात में सभी धार्मिक संस्कारों के साथ पीड़िता के अंतिम संस्कार के लिए पीड़िता के माता-पिता को समझाने का फैसला लिया। इस घटना का राजनीतिक किया जा सकता था और कुछ निहित स्वार्थों द्वारा विभाजित जातिगत विभाजन से उत्पन्न राजनीतिक हिंसा को समाप्त करने के लिए ही अंतिम संस्कार किया गया।
‘राज्य सरकार को बदनाम कराने के लिए चलाए जा रहे हैं अभियान’
यूपी सरकार की ओर से, एसजी तुषार मेहता ने कहा कि इस घटना के बारे में निहित स्वार्थों द्वारा फैलाई जा रही झूठी बातें हैं और यही कारण है कि यूपी सरकार ने सीबीआई जाँच की सिफारिश करने का फैसला किया। राज्य सरकार ने कहा कि सीबीआई जाँच सुनिश्चित करेगी कि कोई निहित स्वार्थ से गलत और झूठे विमर्श नहीं रच पाएँ।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का नोटिस मिलने का इंतजार किए बिना ही अपनी तरफ से हलफनामा फाइल कर दिया है। इसमें उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि हाथरस कांड के बहाने राज्य सरकार को बदनाम करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया, टीवी और प्रिंट मीडिया पर आक्रामक अभियान चलाए गए। इस हलफनामे में कहा गया है कि चूँकि यह मामला अब पूरे देश के आकर्षण के केंद्र में आ गया है, इसलिए इसकी केंद्रीय एजेंसी से जाँच होनी चाहिए।
हलफनामे में कहा गया है कि खुफिया विभाग के मुताबिक, 29 सितंबर से कुछ लोग हालात को खराब करने के लिए सक्रिय हो गए थे। इसकी शुरुआत दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल से हुई। खुफिया विभाग के मुताबिक, कुछ लोगों ने 30 सितंबर को हाथरस में जमा हो कर दंगा भड़काने की साजिश रची और मामले को जातीय और धार्मिक रंग देने की कोशिश की।
यूपी सरकार ने हलफनामे में कहा कि राज्य सरकार सीबीआई को इस घटना की जाँच कर जातिगत संघर्ष को फैलाने के साथ ही हिंसा और मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा तोड़-मरोड़कर पेश कर घटना का दुष्प्रचार करने वालों की सच्चाई को उजागर करने की माँग करती है।
यूपी सरकार ने दोहराई मेडिकल जाँच में बलात्कार की पुष्टि न होने की बात
इस बीच, यूपी सरकार ने SC में भी दोहराया कि जेजे मेडिकल अस्पताल अलीगढ़ की मेडिकल रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया बलात्कार की बात नहीं थी। यूपी सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि नमूने को एफएसएल आगरा भेजा गया था, जिसने अपनी अंतिम राय बताई थी।
#Hathras UP Govt further states :
— Live Law (@LiveLawIndia) October 6, 2020
*Police took all necessary steps as per law.
*Extraordinary circumstances forced the extraordinary step of cremating the victim at night.
*Certain section of media and political parties attempting to incite caste/communal riots. pic.twitter.com/zvdV8eobh9
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक युवती का 14 सितंबर को कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया था और दो सप्ताह बाद नई दिल्ली के अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी। इस घटना को लेकर देशभर में विवाद जारी है और इसमें कई तरह के नए खुलासे भी सामने आ रहे हैं।
हाथरस केस में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने यचिकाकर्ताओं से कहा, “हर कोई कह रहा है कि घटना झकझोरने वाली है। हम भी यह मानते हैं। तभी आपको सुन रहे हैं, लेकिन आप इलाहाबाद हाईकोर्ट क्यों नहीं गए? क्यों नहीं मामले की सुनवाई पहले हाईकोर्ट करे, जो बहस यहाँ हो सकती है, वही हाईकोर्ट में भी हो सकती है। क्या ये बेहतर नहीं होगा कि हाईकोर्ट मामले की सुनवाई करे?” इस मामले में आगे की सुनवाई अगले सप्ताह होगी।