पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक बेहद लोकप्रिय कविता की कुछ पंक्तियॉं यूॅं हैं,
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
ऐसे वक्त में जब दिल्ली की जनता ने अपना फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है, एग्जिट पोल्स आप की सत्ता में वापसी की भविष्यवाणी कर रहे हैं, शायद ही कोई आम आदमी पार्टी के टूटे हुए सपनों की सिसकी सुनना पसंद करे। लेकिन, राजनीति में अतीत को बिसरा भविष्य का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। सो, अतीत की मिसालें इस बात का संकेत करती हैं कि 11 फरवरी को जब नतीजे आएँगे तो असल तस्वीर दूसरी अनुमानों के बिल्कुल उलट भी हो सकती है। फिलहाल आसानी से बहुमत पाती दिख रही आप जादुई आँकड़े से पहले भी ठिठक सकती है। इसके कारणों की पड़ताल करने से पहले 2017 की एक घटना पर गौर करते हैं।
2017 में पंजाब में विधानसभा के चुनाव हुए थे। जैसे इस बार मतदान से दो महीने पहले तक दिल्ली विधानसभा चुनाव को एकतरफा बताया जा रहा था, उसी तरह राजनीतिक पंडित पंजाब में आप की सरकार बनने की भविष्यवाणी कर रहे थे। बीजेपी-शिअद गठबंधन की सरकार पंजाब में 10 साल से चल रही थी। एंटी इंकबेंसी फैक्टर काम कर रहा था। कॉन्ग्रेस गुटबाजी से उसी तरह त्रस्त बताई जा रही थी, जैसे आज दिल्ली में उसकी हालत है। 11 मार्च को पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे आने थे। आप जीत को लेकर इस कदर आश्वस्त थी कि रूझानों के आने से पहले ही दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर बैनर और गुब्बारों से सजावट कर दी गई थी। मंच तैयार था। बैंड बाजे सब रेडी। पार्टी नेता मीडिया से बातचीत में लगातार पंजाब में सरकार बनाने का दावा कर रहे थे। उस समय आप में रहे कुमार विश्वास ने दावा किया था कि 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में 75 से ज्यादा सीटें जीत पार्टी दिल्ली की तरह सरकार बनाएगी।
लेकिन, रूझानों के साथ ही आप का जश्न काफूर हो गया। नेता, कार्यकर्ता सब गायब। केजरीवाल के घर के बाहर सन्नाटा पसरा गया। जब अंतिम नतीजे आए तो 77 सीटों के साथ कॉन्ग्रेस पंजाब की सत्ता में लौटी थी। आप 20 सीटों पर सिमट गई थी।
पंजाब जीतने को लेकर आप का आत्मविश्वास और राजनैतिक पंडितों के दावे कितने ऊँचे थे इसकी एक और मिसाल देखिए। आप नेता संजय सिंह जो फिलहाल राज्यसभा के सांसद हैं का एक वीडियो वायरल हुआ था। इसमें पार्टी नेता पंजाब में जीत की खुशी मनाते दिख रहे थे। साथ ही पार्टी के कुछ नेताओं का मजाक भी उड़ाया जा रहा था। वीडियो में संजय सिंह यह भी कहते दिख रहे थे कि पार्टी 100 से ज्यादा सीट जीत रही है और सरकार बनाने के लिए तैयार है।
अब 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के लिए हुए चुनावों पर लौटते हैं। बीते साल के आखिर तक हर कोई दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आप के प्रचंड जीत का दावा करता नजर आ रहा था। इसमें कथित गोदी मीडिया भी शामिल है। लेकिन, शनिवार (8 फरवरी 2020) को आए एग्जिट पोल्स में भले बीजेपी बहुमत से दूर दिख रखी है, पर सभी पोल में उसकी सीटें 2015 की 3 सीटों से काफी ज्यादा बताई गई है। मसलन, टाइम्स नाउ के एग्जिट पोल में बीजेपी को 26, न्यूजएक्स-पोलस्टार्ट में 14, इंडिया न्यूज नेशन में 14, रिपब्लिक-जन की बात में 9-21, एबीपी न्यूज-सी वोटर में 12, टीवी9-सिसरो में 15 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। जाहिर है कि यह चुनाव उतना तो एकतरफा नहीं है जितना दावा किया जा रहा था।
इन अनुमानों को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी और दिल्ली से पार्टी सांसद प्रवेश वर्मा ने सिरे से खारिज किया है। तिवारी ने पार्टी को 48 तो वर्मा ने 50 सीटें मिलने का दावा किया है। तिवारी ने ट्वीट कर कहा है, “ये सभी एग्जिट पोल फेल होंगे। बीजेपी 48 सीटों के साथ सरकार बनाएगी। मेरा यह ट्वीट सॅंभालकर रखिएगा।”
ये सभी एग्ज़िट पोल होंगे fail..
— Manoj Tiwari (@ManojTiwariMP) February 8, 2020
मेरी ये ट्वीट सम्भाल के रखियेगा..
भाजपा दिल्ली में ४८ सीट ले कर सरकार बनायेगी .. कृपया EVM को दोष देने का अभी से बहाना ना ढूँढे..?
11 तारीख़ को चुनाव के परिणाम भाजपा – 50 आप – 16 कांग्रिस – 4 धन्यवाद दिल्ली
— Parvesh Sahib Singh (@p_sahibsingh) February 8, 2020
एग्जिट पोल्स के ट्रैक रिकॉर्ड और अमित शाह के माइक्रोमैनेजमेंट की रणनीति बताती है कि तिवारी और वर्मा के दावों को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता। जैसा का वरिष्ठ पत्रकार राहुल रोशन कहते हैं कि एग्जिट पोल्स के माध्यम से मतदातों के मूड का सटीक आँकलन कठिन होता है। 2015 के चुनाव में किसी ने भी आप के 70 में से 67 सीटें लाने का अनुमान नहीं लगाया था।
इसके अलावा दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान हुई वोटिंग के आँकड़े भी एक अलग तस्वीर पेश करते हैं। 1993 से 2015 तक के चुनाव बताते हैं कि वोटिंग का ग्राफ गिरने पर सत्ताधारी दल को नुकसान होता है, लेकिन जब वोटिंग परसेंट बढ़ता है तो उसकी सत्ता में वापसी होती है। मसलन, 1993 के 61.75 फीसदी से गिरकर 1998 में 48.99 फीसदी वोटिंग हुई और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। इसके बाद 2013 को अपवाद मान लें तो हर मौके पर वोटिंग में इजाफा दर्ज किया गया और सत्ता में रहने वाले दल की वापसी हुई। इस बार मतदान 2015 के 67.13 फीसदी से करीब दस फीसदी कम हुआ।
आप इसे संयोग कहकर खारिज कर सकते हैं। लेकिन, क्या इसे भी महज संयोग माना जाए कि 2017 में भी आप आज की तरह ही आत्मविश्वास में थी, राजनैतिक पंडित उसके हक में आज की तरह ही दावे कर रहे थे लेकिन आखिरी नतीजा कुछ और निकला। क्या इसे भी संयोग माना जाए कि उस साल भी वोटों की गिनती 11 तारीख को हुई थी और इस बार भी 11 को ही होनी है। अंतर बस केवल इतना ही है कि वह मार्च का महीना था और यह फरवरी की 11 तारीख होगी। दिल्ली के एग्जिट पोल्स में खारिज कर दी गई कॉन्ग्रेस नतीजों में भी उन करीब दर्जनभर सीटों पर मजबूती से लड़ती दिखी तो यह अंतर खत्म हो सकता है, क्योंकि इसी तरह पंजाब चुनाव के वक्त शिअद-बीजेपी के सूपड़ा साफ होने की बात कही गई थी। लेकिन दोनों ने मिलकर 18 सीटें जीत ली थी।
ऐसे में आखिरी तस्वीर तो 11 फरवरी को मतगणना के बाद ही साफ होगी। तब ही पता चलेगा कि आप अपने ही अतीत को झुठला पाती है या नहीं।