इस साल हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन यानी डूसू (DUSU) चुनावों में बड़ी संख्या में वोटर्स ने ‘इनमें से कोई भी नहीं’ (NOTA) विकल्प का इस्तेमाल किया। शुक्रवार (22 सितंबर) को वोट करने वाले 53,452 छात्र-छात्राओं में से 16,559 विद्यार्थियों ने नोटा का विकल्प चुना।
नोटा की संख्या में बढ़ोतरी दर्शाता है कि ताकत और पैसे के इस चुनावी खेल में विद्यार्थियों की दिलचस्पी कम होती जा रही है। वहीं, वामपंथी दलों की हालत और भी बुरी है। डूसू चुनाव के कुछ वामपंथी उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट मिले हैं।
हैरानी की बात यह है कि स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) समेत वामपंथी दलों को मिले कुल वोटों के मुकाबले नोटा की संख्या बहुत अधिक रही।
नोटा ने बनाया मुकाबला कड़ा
शनिवार (23 सितंबर) को काउंटिंग के दौर में ये नोटा ही था, जिसकी वजह से एनएसयूआई और एबीवीपी के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। डीयू के 32 कॉलेजों में एबीवीपी (ABVP) की जीत हुई थी तो 9 कॉलेजों में क्लीन स्वीप किया। यानी कि इन 9 कॉलेजों के सभी पदों पर सिर्फ ABVP के ही उम्मीदवार जीते हैं।
एबीवीपी ने यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष पद सहित 3 सीटों पर जीत दर्ज की है। एनसीयूआई (NSUI) के खाते में एक सीट गई है। ABVP के तुषार डेढ़ा अध्यक्ष (23460 वोट), अपराजिता सचिव (24543 वोट), सचिन बैसला संयुक्त सचिव (24,955 वोट) तथा NSUI के अभी दहिया (22331 वोट) को उपाध्यक्ष पद पर जीत हासिल हुई है।
नॉर्थ कैंपस में पीछे रह गई AISA
विद्यार्थियों का कहना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनिंदा कॉलेजों में ही अब वामपंथी संगठन सक्रिय हैं। नॉर्थ कैंपस में ही उनकी तूती बोलती थी, लेकिन साल 2023 के चुनावों में वो यहाँ भी फीके पड़ गए। ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआइ) ने सभी पदों पर चुनाव लड़ा था।
आइसा ने अध्यक्ष पद के लिए आयशा अहमद खान, उपाध्यक्ष के लिए अनुष्का चौधरी, सचिव के लिए आदित्य प्रताप सिंह और संयुक्त सचिव के लिए अंजलि कुमारी को मैदान में उतारा था। आयशा 3335 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रही थीं। वहीं उपाध्यक्ष की उम्मीदवार अनुष्का को 3492 वोट पड़े। उनके मुकाबले नोटा को 3,914 वोट पड़े।
इसी तरह सचिव पद पर उतरे आदित्य प्रताप सिंह को 3884 वोट मिले। यहाँ भी नोटा उनसे 5108 वोट से बाजी मार ले गया। आइसा की संयुक्त सचिव पद की उम्मीदवार अंजलि को 4195 वोट मिले। उनकी तुलना में इस पद पर भी नोटा 4786 वोट से बाजी मार ले गया।
SFI को भी मुँह की खानी पड़ी
इसी तरह एसएफआई (SFI) के पैनल में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आरिफ सिद्दीकी को नोटा के 2,757 वोट के मुकाबले महज 1,838 वोट पड़े। इसके उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार अंकित को 2,906 वोट मिले, जबकि नोटा को 3,914 वोट मिले। वहीं संगठन के संयुक्त सचिव को 3,311 वोट मिले जबकि नोटा को 4,786 वोट पड़े।
वामपंथी छात्र संगठनों में सबसे अधिक वोट हासिल करने वाली सचिव पद की एसएफआई की उम्मीदवार अदिति त्यागी रहीं। उन्हें 5150 वोट मिले, लेकिन वो तीसरे स्थान पर सिमटकर रह गईं। संयुक्त सचिव पर निष्ठा सिंह को 3311 वोट मिले। वे चौथे स्थान पर रहीं, लेकिन नोटा उनसे बाजी मार गया।
डूसू चुनावों में सचिव पद के लिए नोटा का विकल्प सबसे अधिक चुना गया। इस पद पर सबसे अधिक 5108 वोट नोटा को पड़े। उसके बाद संयुक्त सचिव पद के लिए 4786 नोटा को वोट पड़े। वहीं, उपाध्यक्ष पद के लिए 3914 और अध्यक्ष पद के लिए 2751 विद्यार्थियों ने नोटा को चुना।