कर्नाटक में 21 अक्टूबर को होने जा रहे 15 विधानसभा सीटों के उपचुनाव को निर्वाचन आयोग ने फ़िलहाल स्थगित करने का निर्णय लिया है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के इंतज़ार में किया गया है, ताकि अयोग्य घोषित हुए विधायकों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले से स्थिति स्पष्ट हो सके। केंद्रीय निर्वाचन आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में आज (26 सितंबर) को कही।
संविधान के दुरुपयोग की याचिका
कॉन्ग्रेस के 13, जदएस के 3 और एक स्वतंत्र विधायक को कर्नाटक विधान सोउधा (विधान सभा) के तत्कालीन अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने जुलाई में सदन के लिए अयोग्य करार दिया था। इन विधायकों के हट जाने से एचडी कुमारास्वामी की कॉन्ग्रेस-जदएस सरकार गिर गई थी, और बीएस येद्दियुरप्पा 26 जुलाई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद स्पीकर केआर रमेश कुमार ने भी सदन की अध्यक्षता से त्यागपत्र दे दिया था। कॉन्ग्रेस और जेडीएस दोनों ने ही भाजपा पर विधायकों को पैसे और मंत्रिपद का लालच देकर उनके इस्तीफ़े लेने का आरोप लगाया था।
तत्पश्चात निष्कासित विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। उन्होंने दावा किया था कि कुमार का निर्णय पूरी तरह अवैध, स्वेच्छाचारी और संविधान की 10वीं अनुसूची में मिली शक्तियों का दुरुपयोग था। इसके अलावा उनके खुद से दिए गए इस्तीफ़ों को ‘बेईमान’ और ‘स्वेच्छा से नहीं’ करार देने के स्पीकर के फैसले पर भी पूर्व-विधायकों ने सवाल उठाया।
‘आप ही दे दीजिए दिशानिर्देश’
सुप्रीम कोर्ट से ही दिशानिर्देश की माँग करते हुए कर्नाटक विधान सोउधा अध्यक्ष के कार्यालय ने कहा कि इस्तीफ़ा देना विधायकों का लोकतान्त्रिक अधिकार है, और न्यायपालिका को स्पीकरों के लिए एक दिशानिर्देश तय कर देने चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ को बताया कि विधायकों को अयोग्य पार्टी से इस्तीफ़ा देने पर करार दिया जा सकता है, लेकिन सदन से इस्तीफ़ा देने पर नहीं। निर्वाचन आयोग ने तीन दिन पहले (23 सितंबर को) अदालत को बताया था कि इन 17 विधायकों को उपचुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।