उत्तर प्रदेश में वाराणसी (Varanasi, Uttar Pradesh)के ज्ञानवापी विवादित ढाँचे (Gyanvapi Controversial Structure) की सर्वे एवं वीडियोग्राफी के बीच कॉन्ग्रेस (Congress) ने शनिवार (14 मई 2022) को काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के विध्वंस के लिए मुगल आक्रांता औरंगजेब (Mughal Invader Aurangzeb) को क्लीनचिट देने की कोशिश के बीच विवाद खड़ा कर दिया।
ज्ञानवापी विवादित ढाँचे की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के बीच लोकप्रिय ट्विटर हैंडल (@IndiaHistorypic) ने 12 मई को ट्विटर पर काशी विश्वनाथ मंदिर की क्षतिग्रस्त दीवार की एक पुरानी तस्वीर अपलोड की थी। तस्वीर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अभिलेखागार से ली गई थी।
इस तस्वीर का श्रेय ASI को देते हुए हैंडल ने लिखा था, “1890: काशी विश्वनाथ मंदिर की दीवार (मंदिर को मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिया गया था) अब ज्ञानवापी मस्जिद, वाराणसी का हिस्सा है।”
1890 :: Wall of Kashi Vishwanth Temple ( Temple Was Destroyed by Mughal Emperor Aurangzeb) Now Part of Gyan Vapi Mosque , Varanasi
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) May 12, 2022
( Photo – ASI Archive ) pic.twitter.com/LYlT14uGjE
तस्वीर देखने और उसके कैप्शन में औरंगजेब को अत्याचारी बताने पर कॉन्ग्रेस मुगल आक्रांता के बचाव में आ गई। महाराष्ट्र प्रदेश कॉन्ग्रेस सेवा दल के आधिकारिक हैंडल ने दावा किया कि प्राचीन हिंदू मंदिर को मुगल सम्राट ने नष्ट नहीं किया था। कॉन्ग्रेस के ट्विटर हैंडल ने दावा किया कि 1890 में ली गई तस्वीर यह कैसे साबित कर सकती है कि औरंगजेब ने ही मंदिर को तबाह किया था, जबकि उसकी मृत्यु लगभग दो शताब्दी पहले ही हुई थी।
महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस सेवा दल ने कहा, “”औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को हुई थी। 1890 में क्लिक की गई एक तस्वीर उस दीवार को कैसे दिखा सकती है जिसे 1707 में मरने वाले व्यक्ति द्वारा कथित रूप से तोड़ा गया था?”
कॉन्ग्रेस सेवा दल के बयान में कई खामियाँ
ट्विटर उपयोगकर्ता ‘IndiaHistorypics’ ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि उसी नष्ट की गई दीवार को 1834 में ब्रिटिश विद्वान जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनाए गए एक लिथोग्राफ में भी देखा गया है, जिसमें उल्लेख किया गया था कि मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था। इस हैंडल ने कॉन्ग्रेस सेवा दल से कहा, “आगे आप ASI और ब्रिटिश लाइब्रेरी के साथ इस मामले को उठा सकते हैं, क्योंकि स्रोत उनका है।”
https://t.co/TpsNKAdxQB please see this link of 1834 Lithograph by James prinsep Which Shows the Wall of Temple and that Aurangzeb destroyed the original temple
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) May 14, 2022
Further you may take up the matter with ASI and British Library as the source belongs to them https://t.co/Ogj6SEYzKx
अपने अगले ट्वीट में ‘IndiaHistorypics’ ने कहा, “जेम्स प्रिंसेप द्वारा 1834 में निर्मित इस लिथोग्राफ में नष्ट काशी विश्वनाथ मंदिर की वही दीवार दिखाई गई है। इन्होंने भी कहा है कि मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ा था।”
Same Wall of Destroyed Kashi Vishwanath Temple Shown In This Lithograph Made In 1834 by James Prinsep
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) May 14, 2022
It Also Says That The Temple Was Destroyed by Aurangzeb
( Source – British Library / https://t.co/TpsNKAvH4J ) https://t.co/Ogj6SEHwIx pic.twitter.com/JzvUx8FmZZ
जेम्स प्रिंसेप (1799-1840) एक यूरोपीय वास्तुकार और विद्वान थे, जिन्हें प्राचीन भारतीय सम्राट अशोक के शिलालेखों को समझने का गौरव प्राप्त है। उन्हें वजन और माप की भारतीय प्रणाली में सुधार और एक समान सिक्का प्रणाली शुरू करने का श्रेय दिया जाता है।
कॉन्ग्रेस सेवा दल ने इस तथ्य को खारिज करने की कोशिश की कि औरंगजेब को मंदिर का विध्वंसकर्ता इसलिए कहा जा सकता, क्योंकि आंशिक रूप से नष्ट की गई दीवार की एक तस्वीर दशकों बाद ली गई थीं। हालाँकि, यह निर्विवाद तथ्य है कि मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब के शासन में नष्ट कर दिया गया था और मस्जिद को उसके खंडहरों पर बनाया गया था। मुसलमान भी इस तथ्य से इनकार नहीं करते हैं, वे केवल यह कहकर इसे सही ठहराते हैं कि औरंगजेब ने मंदिर में पुजारियों के कुछ अपराधों को देखकर मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था।
इंडियाहिस्ट्रीपिक्स द्वारा पोस्ट की गई तस्वीर में आंशिक रूप से नष्ट हुई दीवार दिखाई दे रही है। साथ ही ट्वीट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि यह मूल काशी विश्वनाथ मंदिर की दीवार है, जो अब ज्ञानवापी मस्जिद का हिस्सा है। मंदिर की दीवारें आज भी मस्जिद पर देखी जा सकती हैं, फिर भी कॉन्ग्रेस ने इस तथ्य पर सवाल उठाने की कोशिश की।
फिर भी औरंगजेब का बचाव करता रहा कॉन्ग्रेस सेवा दल
लोकप्रिय ट्विटर हैंडल ने बार-बार बताने की कोशिश की कि पोस्ट की गई तस्वीर ASI और ब्रिटिश संग्रहालय से ली गई हैं और नष्ट हुए मंदिर की दीवार अब मस्जिद का हिस्सा है। इसके बाद भी महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस सेवा दल ने इस तथ्य पर सवाल उठाना जारी रखा। इस तथ्य को माने के बजाय सेवा दल ने हैदराबाद में चारमीनार के बगल में स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर का मामला उठाया।
सेवा दल ने कहा कि यह साबित करने के लिए कि ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी, उन्हें पहले और बाद की तस्वीरों को देखने की जरूरत है, जो अलग-अलग समय में अलग-अलग जगह को दर्शाती हैं। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने हैदराबाद में चारमीनार की दो तस्वीरें अलग-अलग पोस्ट कीं। दूसरी रंगीन तस्वीर में चारमीनार के बगल में स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर दिखाई दे रहा है, जबकि पहली ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर में मंदिर नहीं है। मंदिर का निर्माण 1960 के दशक में किया गया था और यह एक विवादित संरचना है, जिसके विस्तार को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने रोक दिया है।
औरंगजेब के बचाव के लिए कॉन्ग्रेस पूरी तरह से असंगत विषय लेकर आई। भाग्यलक्ष्मी मंदिर एक अलग राज्य में पूरी तरह से अलग मुद्दा है। यह मंदिर कुछ दशक पहले ही बनाया गया था, इसलिए बिना मंदिर वाली तस्वीरें उपलब्ध हैं, लेकिन मूल काशी विश्वनाथ मंदिर के अस्तित्व का फोटोग्राफिक प्रमाण माँगना विचित्र है, क्योंकि इसे फोटोग्राफी के आविष्कार के सदियों पहले ध्वस्त कर दिया गया था। इसके अलावा, मस्जिद में दीवारों और अन्य खंडहरों के रूप में मंदिर के भौतिक प्रमाण हैं। इसके साथ ही इसके कई ऐतिहासिक और साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध हैं।
अपने खास उद्देश्य को लेकर सेवा दल ने दोनों तस्वीरों में चारमीनार के पास चार कमान को भी इंगित किया है। चारमीनार के पूरा होने के बाद 16वीं शताब्दी में कमानों का निर्माण किया गया था। इससे पता चलता है कि कॉन्ग्रेस पार्टी दोनों तस्वीरों में इसे दिखाकर क्या साबित करना चाहती है।
ज्ञानवापी विवादित ढाँचा और सर्वे
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर एक विवादित ढाँचा है, जिसे मुगल आक्रांता औरंगजेब द्वारा पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ कर उसके खंडहरों पर बनाया गया है। कुतुब अल-दीन ऐबक और औरंगजेब जैसे इस्लामी आक्रांताओं द्वारा कई बार इन्हें तोड़ा गया था।
आज तक इस प्राचीन मंदिर के कुछ हिस्से मस्जिद की बाहरी दीवारों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। खासकर पश्चिमी दीवार के दूर बैठा नंदी बैल और माँ श्रृंगार गौरी की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। इसके अलावा, मंदिर के विध्वंस, मस्जिद के निर्माण और वर्तमान आसन्न स्थल पर मंदिर के पुनर्निर्माण के पर्याप्त ऐतिहासिक प्रमाण हैं। विवादित ढाँचे से सटे हुए काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में, जहाँ भक्त पूजा-अर्चना करते हैं, उसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 ईस्वी में कराया था।
वाराणसी की एक अदालत ने 12 मई को विवादित ढाँचे के वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण की अनुमति दी थी। वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर ने इसके लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट 17 मई को अदालत में प्रस्तुत की जाएगी।