भारत में पाठ्य पुस्तकों के कंटेंट्स से लेकर इतिहास से जुड़े नैरेटिव तैयार करने तक, इन सबमें वामपंथियों का ही रोल रहा है। इतिहासकारों ने वामपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर भारतीय इतिहास से छेड़छाड़ किया और हिन्दू धर्म व हिन्दू राजाओं को नीचा दिखा कर मुगलों को महान बताया। उन्हीं में से एक थे द्विजेन्द्र नारायण (DN) झा, जिन्होंने राम मंदिर को लेकर झूठ फैलाया था। अब पता चला है कि वो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) के सदस्य थे।
CPI की दिल्ली यूनिट के एक ईमेल से भी इसकी पुष्टि होती है। इसका दफ्तर नई दिल्ली स्थित असफ अली रोड में स्थित है। CPI ने कहा है कि DN झा का निधन न सिर्फ इतिहास की दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है, बल्कि इतिहास के ‘वैज्ञानिक लेखन’ के लिए भी बड़ा नुकसान है। पार्टी ने उन्हें अपने-आप में एक संस्था बताते हुए याद दिलाया कि उन्होंने कैसे प्राचीन और मध्ययुगीन भारत पर ढेर सारी पुस्तकें लिखीं।
बकौल CPI, उनके इतिहास लेखन पर कई बार दक्षिणपंथियों ने अपना क्रोध दर्शाया, लेकिन वो अपनी बातों पर अड़े रहे और अपने दिमाग की आवाज़ को बोलने में कभी पीछे नहीं हटे। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के HOD रहे द्विजेन्द्र नारायण झा के बारे में वामपंथी पार्टी ने दावा किया है कि उन्होंने अनुभववाद के आधार पर इतिहास लिखा। साथ ही उन्हें ‘सांप्रदायिक इतिहास के खिलाफ युद्ध लड़ने वाला’ करार दिया।
लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण है कि CPI ने स्वीकार किया है कि उनका जाना पार्टी के लिए भी बड़ी क्षति है क्योंकि बतौर प्रोफेसर रिटायरमेंट से पहले तक वो CPI के सदस्य हुआ करते थे। पार्टी ने लिखा कि CPI दिल्ली उनके परिजनों के साथ खड़ी है। DN झा को श्रद्धांजलि देते हुए CPI ने खुलासा किया कि उनके निधन के बाद पार्टी नेताओं ने उनके मृत शरीर पर पार्टी का झंडा भी डाला। फरवरी 4, 2021 को उनके निधन के बाद कई नेता उनके घर पहुँचे थे।
साथ ही CPI ने डीएन झा के निधन के बाद उन्हें याद करने के लिए ‘मेमोरियल मीटिंग’ भी बुलाई। इस बैठक में कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। इसमें DN झा समेत दो अन्य दिवंगत ‘इतिहासकारों’ को श्रद्धांजलि दी गई। इसमें उन्हें ‘बहुवाद और असहमति’ का चैंपियन बताया गया, जिनका जाना जाति और पंथ विहीन समाज की अवधारणा की लड़ाई में एक शून्य पैदा कर दिया। साथ ही उनके रास्ते पर चलने की बातें भी की गईं।
इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन ने भी ऑपइंडिया को बताया था कि 1947 के बाद के भारतीय इतिहास लेखन के “Big Four” – रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, आरएस शर्मा और डीएन झा ही थे और साथ ही उन्होंने इन सब के प्रपंच की पोल-पट्टी भी खोली थी। उन्होंने बताया कि कैसे ये चारों खुद अदालत में अपने झूठ की लानत-मलालमत से बचने के लिए अपने छात्रों को भेजते रहे, और खुद ‘निष्पक्षता’ का चोला ओढ़ कर अख़बारों के कॉलम से लेकर किताबें तक लिख-लिख कर बिना पाँव के झूठ की पालकी ढोते रहे।
अयोध्या पर डीएन झा व उनके साथी इतिहासकारों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘प्रख्यात इतिहासकारों’ द्वारा लिखी गई चीजों को सिर्फ़ उनका विचार माना जा सकता है, कोई सबूत नहीं। ‘Historians’ Report To The Indian Nation’ नामक इस रिपोर्ट को अयोध्या में हुए पुरातात्विक उत्खनन से निकले निष्कर्ष का अध्ययन किए बिना ही तैयार किया गया था। इनमें से एकाध को तो बाबर के बारे में भी कुछ नहीं पता था।
अब आप समझ सकते हैं कि किस तरह खास एजेंडा वाले राजनीतिक दलों के नेता इतिहासकार का चोला पहन कर इस देश का इतिहास लिखते रहे हैं। क्या इनसे उम्मीद की जा सकती है कि ये रामायण और महाभारत पर निष्पक्ष रिसर्च करेंगे? तभी हमें आज तक प्राचीन मंदिरों की आश्चर्यजनक संरचनाओं से दूर रख कर ताजमहल के बारे में पढ़ाया जाता रहा और अशोक व मौर्य जैसे सम्राटों की जगह मुगलों के गुणगान से पाठ्य पुस्तकों को भर दिया गया।