अहमदाबाद के इतिहासकार और लेखक रिजवान कादरी ने कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी को एक पत्र लिखकर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से संबंधित निजी दस्तावेजों की वापसी, उनकी प्रतियाँ या उनके डिजिटल एक्सेस की माँग की है। इन दस्तावेजों में नेहरू और जयप्रकाश नारायण, एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, अरुणा आसफ अली, विजया लक्ष्मी पंडित और बाबू जगजीवन राम के बीच हुए पत्राचार शामिल हैं। कादरी, जो प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसायटी (PMML) के सदस्य हैं, ने इस मामले को उठाते हुए इन दस्तावेजों को सार्वजनिक शोध और ऐतिहासिक अध्ययन के लिए आवश्यक बताया है।
कादरी ने अपने पत्र में लिखा कि इन दस्तावेजों का ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है, और इन तक पहुँच सुनिश्चित करना जरूरी है ताकि देश के इतिहास को समग्रता से समझा जा सके। उनका कहना है कि इन कागजातों तक पहुँच होने से भारत के स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्रीय निर्माण और भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की जा सकेगी। उनके अनुसार, गाँधी जी के लेखन को व्यवस्थित रूप से दस्तावेज किया गया है, लेकिन सरदार पटेल के योगदान को लेकर इतने व्यापक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू द्वारा छोड़े गए दस्तावेज बेहद महत्वपूर्ण हैं।
कादरी ने पत्र में कहा कि नेहरू परिवार के प्रतिनिधि के रूप में सोनिया गाँधी द्वारा कुछ निजी दस्तावेज 2008 में वापस ले लिए गए थे। ये दस्तावेज 51 बॉक्सों में थे और इनमें से कुछ को निजी और सरकारी दस्तावेजों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। कादरी ने इन दस्तावेजों को PMML में वापस लाने या उनकी प्रतियां उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है ताकि वे शोधकर्ताओं और आम जनता के लिए उपलब्ध हो सकें। उन्होंने कहा कि अगर ये दस्तावेज वापस नहीं किए जा सकते, तो उनका डिजिटलाइजेशन किया जा सकता है ताकि उन्हें बिना नुकसान पहुँचाए संरक्षित रखा जा सके।
कादरी ने सुझाव दिया है कि वह दो योग्य सहायकों की मदद से इन दस्तावेजों को स्कैन कर सकते हैं ताकि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यवस्थित और सुरक्षित रहें। उन्होंने कहा कि वह इस प्रक्रिया के खर्चे को वहन करने के लिए तैयार हैं और इस बात का ध्यान रखेंगे कि दस्तावेजों की समयरेखा में कोई छेड़छाड़ न हो।
#WATCH | Ahmedabad, Gujarat: Rizwan Kadri, historian & author and one of the members of the Prime Ministers’ Museum and Library (PMML) Society (formerly Nehru Memorial Museum and Library, or NMML), writes a letter to the Congress leader Sonia Gandhi asking her to either return… pic.twitter.com/Y6XR1nobfZ
— ANI (@ANI) September 22, 2024
इस मामले पर सोनिया गाँधी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, कादरी ने अपने पत्र में आशा जताई है कि यह मांग राष्ट्रीय हित और इतिहास के सही अध्ययन के लिए की गई है, और इसे स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नेहरू के योगदान का निष्पक्ष और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि उनकी भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इन दस्तावेजों की वापसी का मामला पहली बार फरवरी 2023 में PMML की वार्षिक बैठक में उठाया गया था। यह बैठक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई थी, जिसमें यह चर्चा हुई थी कि सोनिया गाँधी द्वारा 2008 में 51 बॉक्स वापस लिए गए थे। इन दस्तावेजों में नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच हुए पत्राचार भी शामिल थे, जिनके बारे में कई बार सवाल उठाए गए हैं। कुछ सदस्यों ने इस बात पर भी जोर दिया है कि इन पत्रों को वापस लाया जाए और यह सुनिश्चित करने के लिए फॉरेंसिक ऑडिट की मांग की है कि कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब न हों।
कादरी का कहना है कि इतिहासकारों को नेहरू, गाँधी और पटेल के योगदान को सही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करने का मौका मिलना चाहिए। उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि सोनिया गाँधी द्वारा किए गए दस्तावेजों की वापसी अच्छे इरादों से की गई थी ताकि इनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। हालाँकि, अब समय आ गया है कि इन दस्तावेजों तक पहुँच प्रदान की जाए ताकि राष्ट्र के इतिहास का व्यापक अध्ययन हो सके।
कादरी ने यह भी सुझाव दिया कि अगर सोनिया गाँधी इन दस्तावेजों को वापस नहीं करना चाहतीं, तो वह उनकी प्रतियाँ उपलब्ध करा सकती हैं। इससे दस्तावेज सुरक्षित भी रहेंगे और साथ ही शोधकर्ताओं को उनका उपयोग करने का अवसर मिलेगा। उन्होंने कहा कि वह इस प्रक्रिया में पूरी मदद करने के लिए तैयार हैं और उम्मीद करते हैं कि सोनिया गाँधी इस पर सकारात्मक रुख अपनाएँगी।
यह मामला न केवल नेहरू के व्यक्तिगत दस्तावेजों की वापसी का है, बल्कि इससे जुड़ा एक बड़ा सवाल यह भी है कि ऐतिहासिक दस्तावेजों तक पहुँच कैसे सुनिश्चित की जाए ताकि राष्ट्र के इतिहास का सही ढंग से अध्ययन हो सके। कादरी जैसे इतिहासकारों का कहना है कि इन दस्तावेजों का महत्व इतना अधिक है कि इन्हें सिर्फ एक परिवार की निजी संपत्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इन्हें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना राष्ट्रीय हित में है, और इस दिशा में उचित कदम उठाए जाने चाहिए।