योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद सूबे में व्याप्त खौफ के आलम को खत्म कर कानून का राज कायम किया। आज बहू-बेटिया बेखौफ होकर घरों से बाहर निकलती हैं। अतीक अहमद जैसे कई तथाकथित ‘बाहुबली’ और दबंगों को यूपी पुलिस को देख पसीने आने लगते हैं। लेकिन 2017 से पहले यहाँ हालात ऐसे नहीं थे। मार्च, 2017 के पहले तक, जो आतंक का पर्याय हुआ करते थे, आज खुद की जान को लेकर फिक्रमंद हैं।
उत्तर प्रदेश के खौफ को खत्म कर अमन व तरक्की की पहल करने का श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। सूबे में कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर योगी की सख्ती जगजाहिर है। मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से इन जैसे माफियाओं के साम्राज्य पतन का जो दौर शुरू हुआ, आज वह दिनों-दिन जोर पकड़ता जा रहा है। अच्छी बात यह है कि योगी की इस कार्रवाई को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है।
माफियाओं पर योगी सरकार का कसता शिकंजा
लेकिन एक ऐसा भी वक्त था, जब पूरे देश में सबसे अधिक गुंडागर्दी और अपराध इसी राज्य में हुआ करती थी। गुंडागर्दी भी इस दर्जे की हुआ करती थी कि वो कानून की सरेआम धज्जियाँ उड़ा देते थे। खैर, 2017 में प्रदेश में हाल बदलनी शुरू हुई। योगी सरकार ने उन सभी माफियाओं और बाहुबलियों पर नकेल कसना शुरू किया, जिन्हें पिछली सरकारों ने फलने-फूलने की खुली छूट दे रखी थी। मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद भी उन्हीं में से एक है, जिनके खिलाफ आज भी योगी सरकार की ओर से कार्रवाई की जा रही है। मौजूदा हालात यह हैं कि योगी सरकार के खौफ के चलते ये माफिया सूबे में आने तक को तैयार नहीं है। दिनों-दिन इन सभी के पैरों के नीचे की जमीन खिसकती जा रही है। कभी जिनकी हैसियत सूबे की सरकार बनाने-बिगाड़ने की हुआ करती थी, आज जेल में बंद अपने साम्राज्य को तिल-तिल होते ढहते हुए देखने को मजबूर हैं।
बहुत दिन नहीं हुए बीते, जब यही अतीक अहमद प्रदेश में आतंक हुआ करता था। संगम नगरी प्रयागराज का नाम तब इलाहाबाद हुआ करता था। इलाहाबाद के छात्र नेता और शहर के दबंग लोगों में दौलतमंद बनने की चाहत बुलंद हो रही थी। इसी दौर में चकिया मोहल्ले में रहने वाले फिरोज ताँगेवाला का बेटा अतीक अहमद सुर्खियों में आ गया।
17 साल की उम्र में लगा हत्या का आरोप
श्रावस्ती में 10 अगस्त 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद के खिलाफ 1979 में पहला मामला जब दर्ज हुआ था। यह मामला हत्या का था। जिस समय यह मामला दर्ज हुआ वो बालिग भी नहीं हुआ था। इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर ताँगा चलाने वाले फिरोज के बेटे अतीक ने बालिग होकर अपराध जगत में धाक जमा ली। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक अतीक अहमद पर करीब 80 मामले दर्ज हैं। इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, सरकारी काम में बाधा पहुँचाने, शांति व्यवस्था भंग करने, पुलिस के साथ मारपीट, लाइसेंसी शस्त्र के दुरुपयोग, गुंडा एक्ट, जमीन पर जबरन कब्जा जैसे आरोप शामिल हैं। उसके खिलाफ इलाहाबाद, लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, देवरिया के साथ-साथ पड़ोसी राज्य बिहार में भी मामले दर्ज हैं।
पुराने इलाहाबाद में उस वक्त चाँद बाबा के नाम का ख़ौफ हुआ करता था। लोग बताते हैं कि पुलिस भी उस दबंग के इलाके में जाने से डरती थी। अगर कोई पुलिसवाला गलती से चला भी गया तो चाँद बाबा के गुंडे उसे पीटकर ही भेजते थे। चाँद बाबा के छोटे से गैंग के सामने चकिया का 20 साल का लड़का अतीक ख़ुद को उससे बड़ा गुंडा साबित करने के लिए पूरी ताकत लगा रहा था।
उम्र और बदमाशी की दुनिया में अतीक चाँद बाबा से काफी छोटा था, लेकिन पुलिस और उस दौर के कुछ नेता उसे शह दे रहे थे। वो चाँद बाबा के खौफ को खत्म करने के लिए लोहे को लोहे से काटने की कोशिश कर रहा था। स्थानीय पुलिस, नेता और बदमाशों के इसी कॉकटेल के दम पर अतीक अहमद गुनाहों का हमसाया बनता चला गया। अतीक अहमद और चाँद बाबा में कई बार गैंगवार हुआ। दोनों ने चुनाव लड़ा, अतीक विधायक बन गया और चाँद बाबा हार गया।
1989 में चुनाव जीतने के कुछ महीनों बाद चाँद बाबा की हत्या कर दी गई। बीच चौराहे, भरे बाज़ार ये सिर्फ़ प्रयागराज के पुराने गैंगस्टर की हत्या नहीं थी, बल्कि नए गैंगस्टर के बाहुबल का ख़ूनी उदय था। कहते हैं पुलिस की शह पाकर अतीक अहमद ने एक-एक करके चाँद बाबा का पूरा गैंग ख़त्म कर दिया। उसकी हत्या के बाद अतीक का खौफ इस कदर फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिम सीट से विधायक का टिकट लेने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।
कॉन्ग्रेस सांसद से थी नजदीकी
बाहुबली और 80 से ज़्यादा मुक़दमों में आरोपित अतीक अहमद के दर्जनों किस्से हैं। कहते हैं गुनाहों की दुनिया में जाने के कुछ दिनों बाद ही उसने अपना राजनीतिक गठजोड़ इतना मज़बूत कर लिया था कि एक बार जब उसे पुलिस उठा ले गई, तो उसने वो कर दिया, जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। 1986 की बात है, यूपी में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी। प्रधानमंत्री थे- राजीव गाँधी। चकिया के अतीक अहमद का गैंग पुलिस के लिए ही बड़ा खतरा बन चुका था। उस वक़्त पुलिस अतीक और उसके लड़कों को गली-गली खोज रही थी। एक दिन पुलिस ने उसे उठा लिया। पुलिसवाले उसे थाने नहीं ले गए।
किसी को ख़बर नहीं लगी कि आख़िर क्या हुआ? सबने समझा कि अब अतीक का काम ख़त्म हो चुका है। लेकिन, तभी दिल्ली से एक फ़ोन आया। लोग बताते हैं कि प्रयागराज में रहने वाले एक कॉन्ग्रेस सांसद को पूरी ख़बर दी गई। बताया जाता है कि वो सांसद प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के करीबी थे। दिल्ली से फोन आया लखनऊ, लखनऊ से फोन किया गया इलाहाबाद और पुलिस ने अतीक अहमद को छोड़ दिया गया।
गुनाह की दुनिया में पैर जमाने के बाद राजनीति में एंट्री
अपराध की दुनिया में सिक्का जमाने के बाद अतीक अहमद ने राजनीति का रुख किया। उसने 1989 के चुनाव में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा। उसने कॉन्ग्रेस के गोपालदास को 8,102 वोट से हरा दिया। इसके बाद अतीक अहमद ने इसी सीट से 1991 और 1993 का चुनाव भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता। इसके बाद वो समाजवादी पार्टी का सिपाही हो गया। साल 1996 में सपा ने उसे टिकट दिया। वो चौथी बार विधानसभा पहुँचने में कामयाब रहा। सपा से नाराजगी बढ़ने पर अतीक अहमद 1999 में सोनलाल पटेल की ‘अपना दल’ में शामिल हो गया। ‘अपना’ दल ने उसे प्रतापगढ़ से चुनाव लड़वाया। लेकिन अतीक हार गया। अपना दल ने 2002 में अतीक को उनकी परंपरागत सीट से टिकट दिया। अतीक अहमद विधानसभा पहुँचने में फिर कामयाब रहा।
समाजवादी पार्टी में पकड़
मुलायम सिंह यादव ने 2003 में उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई। यह देख अतीक अहमद एक बार फिर समाजवादी हो गया। इस बार उसके सपने ने विस्तार लिया। वो देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में पहुँचने का ख्वाब देखने लगा। सपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक को फूलपुर से टिकट दिया। अतीक अहमद चुनाव जीत गया। इसके बाद अतीक ने इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। वहाँ हुए उपचुनाव में सपा ने अतीक अहमद के भाई खालिद अजीम ऊर्फ अशरफ को टिकट दिया। लेकिन बसपा के राजू पाल ने उन्हें मात दे दी।
राजू पाल की 25 जनवरी 2005 में हत्या हो गई। इसमें अतीक अहमद और उनके भाई खालिद अजीम का नाम आया। इलाहाबाद पश्चिम सीट पर कराए गए उपचुनाव में सपा ने फिर खालिद अजीम को टिकट दिया। बसपा ने राजू पाल की विधवा पूजा पाल को टिकट दिया। जीत अजीम की हुई। साल 2007 के चुनाव में पूजा पाल पर बसपा ने फिर विश्वास जताया। वो पार्टी के विश्वास पर खरी उतरीं। उन्होंने खालिद अजीम को हरा दिया। अतीक अमहद का नाम 1995 में लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड में आया था। मायावती को अतीक का नाम अच्छी तरह याद था।
क्या है गेस्ट हाउस कांड
यूपी की राजनीति में 2 जून 1995 का दिन स्टेट गेस्ट हाउस कांड के लिए में जाना जाता है। उस वक्त बीएसपी के मुखिया कांशीराम थे। सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने 1993 में उनसे गठबंधन करके राजनीति की नई ‘इबारत’ लिखी थी। दोनों पार्टियों ने विधानसभा चुनाव गठबंधन पर लड़कर सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन गठबंधन सरकार में आपसी खींचतान के चलते 2 जून 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया। इससे मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई। नाराज सपा कार्यकर्ताओं ने राजनीति की मर्यादा लाँघते हुए सांसद, विधायकों के नेतृत्व में लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस का घेराव कर शुरू कर दिया।
उस वक्त बीएसपी नेता मायावती इसी गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में रुकी थीं। मायावती ने खुद को बचाने के लिए कमरा अंदर से बंद कर लिया। घंटों ये ड्रामा चलता रहा। आखिरकार बीजेपी के कुछ नेताओं के हस्तक्षेप और मामला राजभवन पहुँचने पर पुलिस सक्रिय हुई और किसी तरह मायावती को वहाँ से बचाकर निकाला गया।
मायावती की टेढी नजर
मायावती 2007 में मुख्यमंत्री बनीं। उनकी सरकार ने अतीक अहमद पर शिकंजा कसना शुरू किया। उन पर धड़ाधड़ 10 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए। सरकार की सख्ती देख अतीक अहमद फरार हो गया। यूपी पुलिस ने उन पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया। दबाव बढ़ता देख अतीक ने दिल्ली में गिरफ्तारी दी। उसने मायावती से अपनी जान को खतरा बताया। सरकार ने उनकी करोड़ों की संपत्तियों को मिट्टी में मिला दिया।
अखिलेश यादव की सरकार बनने के बाद अतीक को राहत मिली। उसे जमानत मिल गई। सपा ने 2014 के चुनाव में अतीक को श्रावस्ती से उम्मीदवार बनाया। लेकिन नरेंद्र मोदी की आँधी में वो टिक नहीं पाया। फरवरी 2017 में उसे कोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया। हाईकोर्ट ने सारे मामलों में उसकी ज़मानत रद्द कर दी और उसे जेल जाना पड़ा। मुरादाबाद से निर्दलीय पर्चा भरने वाला अतीक चुनाव भी हार गया।
योगी आदित्यनाथ सरकार की कार्रवाई
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद अतीक अहमद पर फिर शिकंजा कसा जाने लगा। लखनऊ से एक व्यापारी को अगवा कर देवरिया जेल ले जाने और जेल के अंदर उसकी पिटाई का वीडियो वायरल हुआ। इसमें भी अतीक का नाम आया। पीड़ित व्यापारी ने भी अतीक और उनके बेटे का नाम लिया। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य की जेल में भेजने को कहा। उन्हें अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया। वो 3 जून 2019 से वहीं कैद है।
जेल से अतीक अहमद ने माँगी 5 करोड़ की रंगदारी
हाल ही में अतीक अहमद पर अहमदाबाद जेल से फोन करके अपने एक रिश्तेदार से पाँच करोड़ रुपए माँगने का आरोप लगा है। प्रॉपर्टी हड़पने और जानलेवा हमले के मामले में करेली पुलिस ने अतीक के बेटे अली के दो साथियों को गिरफ्तार कर लिया। आरोप है कि प्रयागराज करेली में मोहम्मद जीशान उर्फ जानू की 5 बीघा जमीन पर अतीक अहमद के बेटे अली और उसके सहयोगी ने कब्जा कर लिया है। दोनों ने जीशान को मारने की धमकी देकर फोन पर अतीक अहमद से बात करवाई।
अतीक अहमद ने फोन पर जमीन को अपनी पत्नी शाहिस्ता के नाम करने को कहा। जमीन नहीं देने पर जीशान से 5 करोड़ रुपए की रंगदारी भी माँगी गई। यही नहीं जीशान ने परिवार के लोगों को पीटने का भी आरोप लगाया है। फरार अली को पकड़ने के लिए पुलिस कई जगह दबिश दे रही है।
अतीक के भाई पर भी पुलिस ने की कार्रवाई
अतीक के भाई अशरफ के घर की 5 बार कुर्की हो चुकी है। पुलिस घर के खिड़की दरवाजे तक उखाड़ कर ले जा चुकी है। अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन माफिया वाली छवि से कभी बाहर नहीं आया। अतीक ने अपराधों और खौफ के दम पर सियासी बाहुबल हासिल किया। लेकिन, राजनीति में आने के बाद उसका अपराधिक साम्राज्य और बढ़ता गया। 1989 में चाँद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या में उसका हाथ रहा है। अतीक और उसके गैंग ने 2017 से पहले तक हमेशा कानून व्यवस्था को चुनौती दी, लेकिन गुनाहों का ये सिलसिला योगी आदित्यनाथ की सरकार प्रदेश में बनते ही थम गया।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अतीक अहमद और उनके साम्राज्य पर बुलडोजर चला रही है। सरकार अब तक उनकी करोड़ों की संपत्तियाँ जब्त कर चुकी है। 2005 में विधायक राजू पाल हत्याकांड को अतीक और उसके गैंग का सबसे दुर्दांत गुनाह माना जाता है। लेकिन, योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद से अतीक अहमद के बाहुबल और खौफ का साम्राज्य जेल की सलाख़ों के पीछे कैद होकर सिमटता चला गया।