इंडियन ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष और राहुल गाँधी के सलाहकार सैम पित्रोदा ने ‘विरासत कर (Inheritance Tax)’ का मुद्दा छेड़कर कॉन्ग्रेस की ही परेशानी बढ़ा दी है। अब लोकसभा चुनाव से पहले वो पुराने पन्ने भी खुल रहे हैं जिनपर इतने समय से चुप्पी थी। हर कोई कॉन्ग्रेस की मंशा पर सवाल खड़ा कर रहा है कि उनका मकसद देश के लोगों से उनकी कमाई संपत्ति छीनना है… लेकिन मालूम हो कि ‘विरासत कर’ देश के लिए नया टैक्स नहीं है। 40 साल पहले तक ये भारत में लागू था, जिसे 1985 में राजीव गाँधी सरकार ने ठीक उस समय खत्म किया जब इंदिरा गाँधी के संपत्ति के बँटवारे की बात आई।
मौजूदा जानकारी के अनुसार, यह ‘विरासत कर’ का कॉन्सेप्ट देश में तीन दशकों तक अस्तित्व में था। एस्टेट ड्यूटी एक्ट 1953 के तहत, व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसकी विरासत का कर 85% तक जा सकता था। इसमें भी दरें निर्धारित थीं। जो प्रॉपर्टी 20 लाख रुपए से ऊपर थी उसमें 85% टैक्स लगता था जिसका मतलब है कि व्यक्ति की मौत के बाद अधिकांश जमीन पर अधिकार सरकार का हो जाता था। हालाँकि, ये कानून उस तरह से काम नहीं किया, जिस प्रकार से सोचा गया था।
इसके तहत नागरिकों को दो बार संपत्ति से जुड़ा कर भरना पड़ता था एक तो जीवन रहते (जिसे 2016 में मोदी सरकार ने बंद करवा दिया) और फिर उनके निधन पर भी। इसके अलावा जिस प्रकार से कॉन्ग्रेस ने इस कर को लागू करके धन जुटाने की सोची थी वो भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ क्योंकि जब देश में ऐसा कर आ गया तो फिर लोग बेनामी प्रॉपर्टी के मामले और संपत्ति छिपाने के मामले ज्यादा बढ़ गए। अंत में ये एक्ट 1985 में जाकर खत्म कर दिया गया।
अब दिलचस्प बात ये है कि जिस समय पर ये कानून रद्द किया गया वो वही समय था जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की प्रॉपर्टी उनके पोते-पोतियों के नाम पर होनी थी। राजीव गाँधी सरकार ने इस काम से ठीक एक माह पहले एस्टेट ड्यूटी 1953 को खत्म किया, उस समय वीपी सिंह वित्त मंत्री हुआ करते थे। घोषणा हुई कि ये कानून 1 अप्रैल 1985 के बाद से लागू नहीं होगा। इसके बाद 2 मई 1985 को इंदिरा गाँधी की करीबन 21 लाख 50 हजार की संपत्ति उनके तीन पोते-पोतियों में हस्तांतरित हो गई। आज उस प्रॉपर्टी की कीमत करीब 4.2 करोड़ रुपए है।
यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल (यूपीआई) की 2 मई 1985 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1981 में हस्ताक्षरित वसीयत में इंदिरा गाँधी ने अपने बेटे राजीव गाँधी और उनकी पत्नी सोनिया गाँधी को वसीयत का निष्पादक (एग्जिक्यूटर) नियुक्त किया था, लेकिन बाद में उन्होंने उन्हें कुछ नहीं दिया। उन्होंने अपनी बहु मेनका गाँधी के लिए भी कुछ नहीं छोड़ा था। सारी संपत्ति तीनों पोते-पोतियों के नाम की गई थी।
बता दें कि राजीव गाँधी द्वारा ये वसीयत कोर्ट में दिखाए जाने के बाद इसे अखबार में भी पब्लिश किया गया था। इस विल के अनुसार इंदिरा गाँधी संपत्ति का बड़ा हिस्सा महरौली में निर्माणाधीन एक खेत और एक फार्महाउस था, जिसकी कीमत 98,000 डॉलर थी (आज के हिसाब से 81,72,171 रुपए)।
Inheritance Tax in India was abolished in 1985 by Rajiv Gandhi. The timing though is highly suspect.
— Akhilesh Mishra (मोदी का परिवार) (@amishra77) April 24, 2024
Total $173,000 of estate was passed on by Indira Gandhi as inheritance, post her death in 1984, to her three grandchildren Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi and Varun Gandhi.
In… pic.twitter.com/H9g51bYCHc
इसके अलावा तीनों बच्चों के नाम इंदिरा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकों के कॉपीराइट के साथ-साथ इकट्ठा हुए लगभग 75,000 डॉलर की नकदी, स्टॉक और बांड भी थे। वहीं इंदिरा गाँधी की प्राचीन वस्तुएँ और लगभग 2500 डॉलर की निजी आभूषण केवल प्रियंका गाँधी के लिए छोड़े गए थे। 1984 में तीनों वारिस नाबालिग थे इसलिए उस समय राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी को उनके बड़े होने तक संपत्ति संभालने की जिम्मेदारी दी गई।
अब ये ध्यान देने वाली बात है कि जिस देश में 20 लाख से अधिक संपत्ति होने पर 85% प्रॉपर्टी सरकार को चली जाती थी, वो नियम राजीव गाँधी की सरकार में ठीक उस समय पलटा गया जब उनके बच्चों को उनकी दादी की विरासत मिलनी थी। यूपीआई की रिपोर्ट में भी कहा गया था, “1 अप्रैल से प्रभावी हुए एक वित्त विधेयक के तहत, भारत में सभी मृत्यु शुल्क समाप्त कर दिए गए हैं और गांधी संपत्ति पर कोई विरासत कर नहीं लगाया जाएगा।”