कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गाँधी के इस्तीफे के बाद पार्टी नेताओं की आपसी खींचतान भी सामने आने लगी है। पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में पार्टी भीतरी कारणों से हारी है। राहुल के इस्तीफे को आदर्श बताते हुए कहा है कि अन्य लोग जो जिम्मेदारी के पदों पर हैं उन्हें इससे सीख लेनी चाहिए। लेकिन, पार्टी अध्यक्ष के इस्तीफे के बाद भी स्थिति जस की तस है।
द्विवेदी ने कहा है की तकनीकी तौर पर राहुल अब भी पार्टी अध्यक्ष हैं और अपने उत्तराधिकारी के नाम का सुझाव देने के लिए उन्हें एक समिति बनानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि मौजूदा वक़्त में अध्यक्ष के नाम पर अनौपचारिक चर्चा कर रही पैनल के मुकाबले यह समिति ज्यादा विश्वसनीय होगी। उन्होंने कहा है, “कार्यसमिति की बैठक बुलाकर अध्यक्ष के नाम पर जल्द फैसला किया जाना चाहिए।’
Janardan Dwivedi, Congress: A meeting of the Working Committee should be called and a decision should be made on the name at the earliest. https://t.co/yHcaKPowtN
— ANI (@ANI) July 9, 2019
जनार्दन द्विवेदी ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिस संगठन में उन्होंने पूरा जीवन लगाया, उसकी स्थिति देख कर पीड़ा होती है। उन्होंने कहा कि हार के कारण पार्टी के भीतर हैं, न कि बाहर। उन्होंने कहा कि पार्टी में कई ऐसी बातें हुईं, जिससे वो सहमत नहीं थे और उन्होंने इससे पार्टी नेतृत्व को अवगत कराया था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग की थी, तब पार्टी अध्यक्ष ने इससे किनारा कर लिया। बाद में जब मोदी सरकार 10% आरक्षण लेकर आई तो सारी पार्टियों ने चुप्पी साध ली। उनका कहना है कि भारतीयता और भगवाकरण को लेकर उनके विचार से पार्टी सहमत नहीं थी और फिर बाद में भारतीय संस्कृति से नजदीकी दिखाने के लिए क्या-क्या जतन नहीं किए गए।
जनार्दन द्विवेदी सबसे लंबे समय तक कॉन्ग्रेस महासचिव रहे हैं। उन्होंने 5 कॉन्ग्रेस अध्यक्षों इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरसिम्हा राव और सोनिया गाँधी के साथ काम किया है। द्विवेदी को सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी का करीबी माना जाता है। उन्होंने 2018 में स्वेच्छा से रिटायरमेंट ली थी।
जनार्दन ने कहा कि वे 15 सितंबर 2014 को सोनिया गाँधी को लिखे पत्र, जिसमें उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की थी, सार्वजानिक कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि जिस समाज, संगठन, देश में स्वतंत्र विचार और मुक्त आत्मा का स्वर नहीं सुना जाता, वो समाज, वो देश मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रह सकता और वहाँ लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता।