कावेरी नदी के पानी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में विवाद मचा हुआ है। इस बीच ‘कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड’ ने कर्नाटक सरकार को 15 अक्टूबर तक हर दिन 3000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया था। इस निर्देश के खिलाफ कर्नाटक सरकार ने बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट के पास समीक्षा याचिका दायर करने का फैसला किया है।
इस फैसले की जानकारी देते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार (30 अक्टूबर, 2023) को कहा, “कावेरी का पानी छोड़ने के आदेश के बारे में ‘कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड’ के समक्ष एक समीक्षा याचिका दायर की गई है। स्थिति की समीक्षा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी एक समीक्षा याचिका दायर की जाएगी। कल हमने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों और एडवोकेट जनरल के साथ बैठक की थी। इस मीटिंग में मिले सुझाव के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।”
A review petition was filed today before the Cauvery Water Management Authority regarding the Cauvery water release order. After reviewing the situation, a review petition will be filed before the Supreme Court. Yesterday we had a meeting with the retired judge of the Supreme… pic.twitter.com/6lvvygCgiv
— ANI (@ANI) September 30, 2023
बता दें कि कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड ने 28 सितंबर को एक मीटिंग की थी। इस मीटिंग के बाद बोर्ड ने कर्नाटक सरकार को 28 सितंबर से लेकर 15 अक्टूबर तक हर दिन 3000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कहा था। लेकिन कर्नाटक सरकार ने इसका विरोध किया है। सीएम सिद्धारमैया ने कहा था कि कर्नाटक के पास पर्याप्त पानी नहीं है। इसलिए वह दूसरे राज्यों को पानी नहीं दे सकते हैं।
यही नहीं, बोर्ड के इस निर्देश के खिलाफ कर्नाटक सरकार ने समीक्षा याचिका दायर करने के लिए 29 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों और पूर्व एडवोकेट जरनल के साथ मीटिंग की थी। इस मीटिंग से पहले उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड के निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाने के लिए सुझाव मिलते हैं तो वह समीक्षा याचिका दायर करेंगे।
बता दें कि इससे पहले 13 सितंबर को भी कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड ने कर्नाटक से तमिलनाडु को हर दिन 5000 क्यूसेक पानी देने का निर्देश दिया था। लेकिन तब भी कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा, जल बोर्ड के इस फैसले के खिलाफ कन्नड़ और किसान संगठनों ने 29 सितंबर को कर्नाटक बंद बुलाया गया था। भाजपा, JDS व कन्नड़ फिल्म से जुड़े लोगों ने इस बंद का समर्थन किया था। वहीं तमिलनाडु सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार से गुहार लगा चुकी है।
क्या है कावेरी जल विवाद?
कावेरी जल विवाद 140 साल से भी अधिक पुराना है। इसकी शुरुआत साल 1881 में तब हुई जब मैसूर राज्य ने कावेरी नदी पर बाँध बनाने का फैसला किया। इस फैसले के बारे में सुनते ही मद्रास प्रेसिडेंसी ने आपत्ति जाहिर की। तब अंग्रेजों ने इसमें दोनों पक्षों में समझौता करा दिया। इसके बाद साल 1924 में मामला फिर उठा। इस बार मैसूर और मद्रास के साथ ही केरल और पुदुचेरी ने भी कावेरी के पानी में अपना हिस्सा बताया। मामला कोर्ट में पहुँचा और अंग्रेजों ने फिर से सुलह करा दी।
देश की आजादी के बाद भी कावेरी के पानी का मुद्दा समय-समय पर उठता रहा। स्थितियाँ बिगड़ती देख केंद्र सरकार ने 2 जून, 1990 को ट्रिब्यूनल का गठन किया। साल 1991 में ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि कर्नाटक कावेरी के पानी का एक हिस्सा तमिलनाडु को देगा। साथ ही हर महीने पानी देने को लेकर भी फैसला हुआ। लेकिन बात अंतिम नतीजे तक नहीं पहुँच पाई। ट्रिब्यूनल के इस फैसले के खिलाफ कर्नाटक में हिंसक झड़प भी हुई थी।
इसके बाद साल 2007 में मामला फिर अदालत में पहुँच गया। कोर्ट की दखल के बाद ट्रिब्यूनल ने साल 2007 में कावेरी नदी के पानी का बँटवारा कर दिया। इसके हिसाब से कावेरी का पानी सभी दावेदारों को देने का फैसला हुआ। ट्रिब्यूनल ने यह माना था कि कावेरी में 740 TMC पानी है। इसमें से तमिलनाडु को 419, कर्नाटक को 270, केरल को 30 और पुदुचेरी को 7 TMC पानी दिया जाना था। यही नहीं, विवाद सुलझाने के लिए कावेरी प्रबंधन बोर्ड और कावेरी जल नियमन समिति भी बनाई गई थी। लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु के अड़ियल रवैये के चलते मामला सुलझ नहीं पाया।
साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए कर्नाटक से कहा कि वह तमिलनाडु को और पानी दे। लेकिन, इस फैसले के बाद कर्नाटक में हिंसक झड़प शुरू हो गईं। मामला किसी तरह शांत कराया गया। इसके बाद साल 2016 में कर्नाटक सरकार ने सर्वसम्मति से कावेरी का पानी तमिलनाडु को न देने को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया। तमिलनाडु ने इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।
इसके बाद कोर्ट ने कर्नाटक से फिर से तमिलनाडु को पानी देने के लिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद फिर से हिंसक घटनाएँ हुईं। बसों और सार्वजनिक संपत्तियों में आग लगा दी गई। साल 2018 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने का आदेश दिया। इस फैसले के हिसाब से तमिलनाडु को 404.25 TMC फीट पानी मिलना तय हुआ था। वहीं कर्नाटक को 284.75 TMC पानी मिलना था। लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक उसे पर्याप्त पानी नहीं दे रहा है।