कर्नाटक सरकार ने कक्षा एक से दस तक के पाठ्यपुस्तकों के संशोधन को अंतिम रूप दे दिया है, जिसमें महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इसके तहत बच्चों को ‘सनातन धर्म’ आधारित पाठ में इसे विस्तार से बताया जाएगा। इसके अलावा, सरकार ने पी. लंकेश, सावित्रीबाई फुले, गिरीश कर्नाड, पेरियार, देवनूर महादेव, थिरुनाकुडु चिन्नास्वामी, नागेश हेगड़े जैसे लेखकों की रचनाओं को भी शामिल किया है।
प्रो. मंजूनाथ जी. हेगड़े की अध्यक्षता वाली पाठ्यपुस्तक संशोधन समिति ने कर्नाटक सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। समिति ने सावित्रीबाई फुले और पेरियार जैसे कट्टरपंथी लेखकों से संबंधित विषयों पर पाठ को फिर से शुरू करने की सिफारिश की है। हालाँकि, समिति ने टीपू सुल्तान और हैदर अली से संबंधित पाठों को फिर से शुरू करने की सिफारिश नहीं की है। भाजपा सरकार ने इन्हें हटा दिया था।
इन पाठ्यपुस्तकों में जैन धर्म और बौद्ध धर्म के बारे में बताने वाले नए अध्याय शामिल किए गए हैं। वहीं, ‘धर्म’ जैसे कुछ शब्दों को ‘रिलिजन’ में बदल दिया गया है। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राजवंश वाले भागों को काट दिया गया है। दसवीं कक्षा की इतिहास में ‘सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन’ शामिल किया गया है। भक्ति आंदोलन में कनक दास, पुरंदर दास और शिशुनाला शरीफ को जोड़ा गया है।
जून में कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसाइटी ने एक पत्र के माध्यम से घोषित महत्वपूर्ण बदलावों में दसवीं कक्षा की कन्नड़ पाठ्यपुस्तक में आरएसएस संस्थापक के.बी. हेडगेवार के ‘निजवाड़ा आदर्श पुरुष यारागाबेकु’ को शिवकोट्याचार्य के ‘सुकुमार स्वामीया कथे’ से स्थान्नपन शामिल है। वहीं, दसवीं कक्षा की कन्नड़ पाठ्यपुस्तक में शतावधानी आर. गणेश की ‘श्रेष्ठ भारतीय चिंतानेगलु’ को सारा अबूबकर की ‘युद्ध’ से बदल दिया गया।
जिन लेखकों की रचनाओं या उनकी जीवनी को कर्नाटक सरकार ने पाठ्य-पुस्तकों में शामिल किया है, वे हिंदू विरोधी और घनघोर वामपंथी विचारधारा के रहे हैं। उन्होंने भारत की संस्कृति को हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश की। उनकी रचनाओं में भी इसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसमें पी. लंकेश और गिरीश कर्नाड जैसे लेखक वामपंथी विचारधारा को पोषक रहे हैं।
दूसरी तरफ, पाठ्य-पुस्तकों में पेरियार को भी शामिल किया गया है। वे बेहद कट्टर विचारधारा के रहे हैं। पेरियार का असली नाम ई वी रामास्वामी था। वे एक धार्मिक हिंदू परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन ब्राह्मणवाद के विरोधी रहे। उन्होंने न केवल ब्राह्मण ग्रंथों की होली जलाई, बल्कि रावण को अपना नायक भी माना था। वो बाल विवाह और देवदासी प्रथा के खिलाफ थे।
दरअसल, पिछले साल कॉन्ग्रेस के सत्ता में आते ही पाठ्य पुस्तकों में किए गए सभी सुधारों को समिति ने बरकरार रखा है। कर्नाटक टेक्स्ट बुक सोसायटी ने मंगलवार (5 मार्च 2024) को एक रिपोर्ट जारी की और कक्षा 1 से लेकर 10 तक के पाठ्य-पुस्तकों में किए गए बदलावों की जानकारी दी। ये बदलाव 2024-25 के लिए किए गए हैं।
भाजपा विधायक और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री अश्वथ नारायण ने कर्नाटक सरकार के इस कदम का विरोध किया है। उन्होंने कहा, “वे संविधान और कर्नाटक के लोगों की आस्था और विश्वास का सम्मान नहीं करते हैं। वे अराजकता, भ्रम और ध्रुवीकरण पैदा करना चाहते हैं। वे उस सनातन धर्म का सम्मान नहीं करते हैं। इसलिए वे ऐसे लोगों को लाने की कोशिश कर रहे हैं जो सनातन धर्म के खिलाफ हैं।”
उन्होंने कहा, “यह हमारी आस्था के खिलाफ है। ऐसा करके वे (कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार) भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रही है। वे सनातन धर्म के खिलाफ काम कर रहे हैं, जिसकी हम निंदा करते हैं। हम कॉन्ग्रेस सरकार को बेनकाब करेंगे और जागरूकता पैदा करेंगे। हम पाठ्यक्रम का पुरजोर विरोध करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि इसमें समावेशन न हो।”