पूर्वांचल की राजनीति में एक व्यक्ति ऐसा हुआ है, जिसने हर दलों की सरकार में अपना प्रभाव कायम किया और लंबे समय तक इलाके में प्रभावशाली बने रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने परिवार के कई सदस्यों को भी विधायक और सांसद से लेकर ऊँचे-ऊँचे पदों तक पहुँचाया। वो नाम है हरिशंकर तिवारी, जिन्होंने क्राइम से लेकर राजनीति तक की पिच पर बैटिंग की और गोरखपुर में गोरखनाथ मठ के अलावा सत्ता का कोई और केंद्र था तो वो था ‘हाता’, उनका घर।
राजनीति में लंबे समय तक रहा हरिशंकर तिवारी का दबदबा, परिवार के अन्य लोग भी बड़े-बड़े पदों पर
हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से 1985 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद उन्होंने 1989, 91 और 93 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। पाँचवी बार वो ‘ऑल इंडिया इंदिरा कॉन्ग्रेस (तिवारी)’ के टिकट पर जीते। 2002 में उन्होंने इसी क्षेत्र से ‘अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कॉन्ग्रेस’ के टिकट पर लगातार छठी बार जीत का स्वाद चखा। 2017 में उन्होंने होने बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा का टिकट दिला कर इस सीट से विधायक बनवाया।
वहीं उनके एक अन्य बेटे भीष्म शंकर तिवारी संत कबीर नगर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए थे। 2009-14 लोकसभा के काल में वो सांसद रहे थे। हरिशंकर तिवारी की छवि एक गैंगस्टर की रही है। उनका पैतृक गाँव चिल्लूपार के ही टांडा में है। हरिशंकर तिवारी के नाम एक रिकॉर्ड दर्ज है कि वो जेल में से चुनाव जीतने वाले पहले गैंगस्टर हैं। उन्हें कभी उत्तर प्रदेश का सबसे प्रभावशाली ‘ब्राह्मण चेहरा’ माना जाता था। 1997 में उन्होंने अन्य नेताओं के साथ मिल कर ‘अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कॉन्ग्रेस’ का गठन किया था।
मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हों या फिर कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता हों या फिर राजनाथ सिंह, चाहे वो मायावती ही क्यों न हों – उन्होंने इन सभी की सरकारों में मंत्री पद सँभाला। उनके भतीजे गणेश शंकर पांडेय उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति के पद तक पहुँचे। अब चलते हैं थोड़ा पीछे, जब पूर्वांचल को गैंगवॉर का इलाका माना जाता था। 1980 के दशक में ही हरिशंकर तिवारी ने राजनीति का अपराधीकरण शुरू कर दिया था। हालाँकि, 2007 और 2012 के चुनावों में उन्हें अपने गढ़ में ही हार झेलनी पड़ी थी।
पूर्वांचल में अपराध की शुरुआत और माफियाओं के बीच गैंगवॉर
पूर्वांचल में ये वो दौर था, जब छात्रों को अपराध से जोड़ने का काम शुरू हुआ। जो जितना तेज़-तर्रार और अव्वल होता था, उसे माफिया गिरोह में लाने की उतनी ही ज्यादा कोशिश होती थी। हरिशंकर तिवारी का कहना है कि उन्हें राजनीति में इसीलिए आना पड़ा, क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने उस पर झूठे केस चला कर उन्हें जेल भिजवा दिया था। वो पहले से ही कॉन्ग्रेस के सदस्य थे और इंदिरा गाँधी के साथ काम करने का अनुभव भी उनके पास था।
80 के दशक में उनके ऊपर 26 मामले दर्ज थे। इसमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, छिनौती, रंगदारी, वसूली और सरकारी कार्य में बाधा डालने सहित कई मामले शामिल थे। लेकिन, आज तक किसी भी मामले में उन्हें न्यायालय ने दोषी नहीं करारा। 80 का दशक वो था, जब पूर्वांचल में विकास के नाम पर कई योजनाओं के टेंडर जारी हुए और उनके लिए अपराधियों में भिड़ंत हुई। हरिशंकर तिवारी धीरे-धीरे पूरे पूर्वांचल के ठेके अपने पास लेने लगे।
रेलवे, कोयला सप्लाई और खनन से लेकर शराब तक के ठेकों पर उनका ही राज चला करता था। उन्होंने लोगों के बीच अपनी ‘रॉबिनहुड’ वाली छवि बना ली। वो बार-बार जीत कर विधानसभा पहुँचते रहे और मंत्री बनते रहे, उधर आरोप लगते रहे। उनकी उम्र फ़िलहाल 85 वर्ष है और 2012 की हार के बाद उन्होंने चुनाव लड़ना बंद कर दिया। गोरखपुर के जटाशंकर मोहल्ले में उनका एक किलानुमा घर है। पूर्वांचल में कभी इसी ‘हाता’ में दरबार लगा कर अधिकतर फैसले लिए जाते थे।
वो ऐसा समय हुआ करता था, जब हरिशंकर तिवारी का नाम किसी पार्टी के साथ जुड़ते ही पूर्वांचल में उसकी किस्मत बदल जाती थी। गाजीपुर से लेकर वाराणसी तो बाद में माफियाओं का केंद्र बना, लेकिन हरिशंकर तिवारी ने गोरखपुर से ही इसकी शुरुआत की। गोरखपुर को उस समय जातीय हिंसा की आग में झोंक दिया गया था। लोग आज भी उन्हें कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अपराधीकरण के लिए जिम्मेदार मानते हैं। इसी वजह से श्रीप्रकाश शुक्ला नाम के कुख्यात शूटर का भी जन्म हुआ।
कहा जाता है कि चालाक हरिशंकर तिवारी ने हमेशा फ्रंटफुट पर खेलने की बजाए पर्दे के पीछे से बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देने में दक्षता हासिल की। राजपूत बनाम ब्राह्मण का एक नया संघर्ष शुरू हो गया। लेकिन, अपने शातिर दिमाग के कारण वो हर पार्टी के चाहते बने रहे। उन्होंने एक माफिया से लेकर यूपी की राजनीति के ‘पंडित जी’ तक का सफर तय किया। गैंगवॉर से पहले तब लोगों में ऐलान कर दिया जाता था कि कोई घर से न निकले। बाहर गोलियाँ चलती थीं और लाशें गिरती थीं।
उन्होंने 1985 में जेल से पहले चुनाव ही निर्दलीय जीता था, वो भी भारी अंतर से। जब जगदम्बिका पाल एक दिन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तब भी हरिशंकर तिवारी उनकी कैबिनेट में थे। राजपूत नेता वीरेंद्र प्रताप शाही के साथ उनका गैंगवॉर कुख्यात है। वर्चस्व की लड़ाई के लिए इन दोनों के बीच खूनी खेल चलता रहता था। वीरेंद्र शाही को मठ से भी समर्थन मिला था। बता दें कि इन दोनों पर लगाम कसने के लिए ही पहली बार गैंगस्टर एक्ट लागू हुआ था।
योगी सरकार के आने के बाद ‘हाता’ में भी पड़े छापे
अब स्थिति ये है कि इनका कुछ खास राजनीतिक प्रभाव बचा नहीं है, लेकिन ब्राह्मण चेहरा के नाम पर गुलदस्ते की तरफ पार्टियाँ इन्हें अपनी तरफ करना चाहती हैं। दिसंबर 2021 में उनके परिवार ने सपा का दामन थाम लिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के साथ ही जब माफियाओं पर कार्रवाई शुरू हुई, तो हरिशंकर तिवारी भी नहीं बचे। उनके घर पर पाँच थानों की पुलिस ने छापेमारी की। ‘तिवारी हाता’ में तलाशी ली गई। ये मामला खोराबार के जगदीशपुर में मार्च 2017 में रिलायंस पेट्रोल पंप के कर्मचारियों से 98 लाख रुपए की लूट से जुड़ा है।
इस मामले में जिस छोटू चौबे को गिरफ्तार किया गया था, उसने किसी सोनू पाठक का नाम लिया। इस व्यक्ति की लोकेशन हरिशंकर तिवारी के घर पर मिली थी। इस आधार पर उनके घर आधे घंटे की छापेमारी हुई थी। वहाँ से 6 लोगों को हिरासत में भी लिया गया था। तिवारी परिवार ने इसे मुद्दा भी बनाया था और हरिशंकर तिवारी सड़क पर उतर गए थे। भारी भीड़ के कारण कई थानों की पुलिस लगानी पड़ी थी। उनके बेटे विजय के ठिकानों पर CBI की छापेमारी हो चुकी है।
CBI ने लखनऊ, गोरखपुर और नोएडा के उनके ठिकानों पर रेड मारी थी। ये मामला बैंक लोन घोटाले से जुड़ा था। ये घोटाला 1500 करोड़ रुपए का है। ‘गंगोत्री इंटरप्राइजेज’ नामक की कंपनी का विधायक विनय शंकर तिवारी से सम्बन्ध बताया गया था। आरोप है कि इस कंपनी ने लोन हड़प किसी दूसरे जगह लगा दिया। मोदी लहर में भी उन्होंने 2017 में जीत दर्ज कर ली थी। उनके विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी मुकाबला कड़ा होने वाला है और सबकी नजर इस परिवार पर है।