प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (11 सितंबर, 2021) को ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU)’ में तमिल महाकवि सुब्रमण्य भारती के नाम पर ‘चेयर’ के स्थापना की घोषणा की। महिला उत्थान व दलितों को हिन्दू धर्म में जोड़ने के लिए जाने जाने वाले सुब्रमण्य भारती महान विद्वान, दार्शनिक व स्वतंत्राता सेनानी थे। उनकी 100वीं जयंती पर पीएम मोदी ने ये घोषणा की। अब BHU में तमिल अध्ययन पर ‘सुब्रह्मण्य भारती चेयर’ की स्थापना होगी।
BHU के कला संकाय में इसे लगाया जाएगा। याद हो कि स्वतंत्रता दिवस के दिन राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुब्रमण्य भारती की एक कविता सुनाई थी। उन्हें ‘महाकवि भारतियार’ के रूप में भी जाना जाता है। 11 दिसंबर, 1882 को तमिलनाडु के एक गाँव एट्टयपुरम् में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मे महाकवि भारतियार अपनी कविताओं के जरिए राष्ट्रभक्ति की अलख जगाते थे।
वो उत्तर व दक्षिण भारत की एकता की वकालत करते थे। साथ ही महिलाओं व दलितों के उत्थान में लगे रहते थे। इस तरह, वो एक समाज सुधारक भी थे। बतौर पत्रकार भी उन्होंने अपनी लेखन कला का उपयोग किया। कई लोगों को उन्होंने देश के लिए लड़ने हेतु प्रेरित किया। वो कई दिनों तक काशी/वाराणसी में रहे थे, जहाँ उन्होंने हिन्दू अध्यात्म व राष्ट्रप्रेम की भावना अपने मन में जगाई। 1900 तक वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे।
वो कॉन्ग्रेस की जनसभाओं में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। 1907 में सूरत में ऐतिहासिक कॉन्ग्रेस सम्मलेन हुआ, जिसके वो गवाह रहे। इसके बाद पार्टी ‘गरम दल’ व ‘नरम दल’ में बँट गई थी। जोशीले सुब्रमण्य भारती ने ‘गरम दल’ को चुना। ‘स्वदेश गीतांजल’, ‘पांचाली सप्तम’ व ‘जन्मभूमि’ के रचयिता महाकवि भारतियार बच्चों के लिए विद्यालय, कल-कारखानों के लिए औजार और अख़बार छापने के लिए कागज़ की ज़रूरत पर बल देते थे।
On his 100th Punya Tithi, paying homage to the remarkable Subramania Bharati. We recall his rich scholarship, multi-faceted contributions to our nation, noble ideals on social justice and women empowerment. Here is a speech I gave on him in December 2020. https://t.co/dAFph8Sfap
— Narendra Modi (@narendramodi) September 11, 2021
साथ ही वो हिंदी, बंगाली, संस्कृत व अंग्रेजी में भी सिद्धहस्त थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने एक दलित युवक का भी उपनयन संस्कार करा कर उसे ‘ब्राह्मण’ बनाया था। वो धर्मग्रंथों की शिक्षा के हिमायती थे, लेकिन बिना किसी छेड़छाड़ व भेदभाव के। उन्हें कुल 14 भाषाएँ आती थीं, जिनमें 3 विदेशी थीं। अंग्रेजों ने जब उन पर शिकंजा कसा तो वो पुडुचेरी चले गए और वहीं से पत्रिका छापने लगे। वहाँ उस समय फ़्रांस का शासन था।
वो ‘बाल विवाह’ के सख्त खिलाफ थे। मात्र 38 वर्ष की आयु में 1921 में उनका निधन हो गया था। उनकी पत्नी चेलम्मा से उनकी दो बेटियाँ थीं। उनके निधन के समय दोनों बेटियों की उम्र मात्र 16 व 12 वर्ष थी। उनकी पत्नी ने उनके निधन के बाद उनकी कई रचनाओं को प्रकाशित किया और अपने पति की जीवनी भी लिखी। वाराणसी से उनका खास जुड़ाव था, क्योंकि उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा यहीं हुई थी।