भारतीय संविधान के मूल ढाँचे की संरचना का सिद्धांत देने वाले केशवानंद भारती को श्रद्धांजलि देते हुए केंद्रीय कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने समाचार पत्र ‘दी इंडियन एक्सप्रेस’ पर एक लेख के जरिए बताया है कि कॉन्ग्रेस ने कई वर्षों तक किस प्रकार से एक इकोसिस्टम के जरिए न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को निशाने पर रखा।
केंद्रीय मंत्री ने इस लेख में बताया है कि किस प्रकार से ‘केशवानंद बनाम केरल राज्य’ मामले के बाद इस फैसले से जुड़े लोगों को कॉन्ग्रेस के दमनकारी शासन परिणाम देखने को मिले। यह सभी फैसले न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर स्पष्ट हमला थे।
केशवानंद भारती के फैसले की पीठ का नेतृत्व करने वाले मुख्य न्यायाधीश एसएम सीकरी को अगले ही दिन बिना उत्तराधिकारी की घोषणा के ही सेवानिवृत्त कर दिया गया। इसका नतीजा कुछ इस तरह से रहा –
- तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने अपने गेम प्लान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों – जस्टिस जेएम शेलत, केएस हेगड़े और एएन ग्रोवर को हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने ‘मूल संरचना सिद्धांत’ का समर्थन किया था।
- संविधान के मूल संरचना के सिद्धांत का विरोध करने वाले कनिष्ठ न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एएन रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
- एएन रे द्वारा फौरन एक बड़ी बेंच का गठन कर ‘मूल संरचना सिद्धांत’ के निर्णय को पूर्ववत करने का एक असफल प्रयास किया।
केंद्रीय मंत्री ने अपने इस लेख में कहा है कि एक बात, जिसे याद रखे जाने की जरूरत है, वो यह कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों के इस निष्कासन को सत्तारूढ़ कॉन्ग्रेस और वाम दलों ने पूरी तरह से सही ठहराया था।
इसके बाद, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आपातकाल के उस भयावह दौर का भी जिक्र किया है, जब इंदिरा गाँधी द्वारा निरंकुश तरीके से अपने निर्वाचन को रद्द करने के खिलाफ संविधान से तमाम तरह के छेड़खानी की गई।
रविशंकर प्रसाद इस लेख में लिखते हैं,
“मुझे भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन में एक युवा कार्यकर्ता होने का सौभाग्य मिला। इस बीच, इंदिरा गाँधी के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लोकसभा के लिए उनका चुनाव रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने बड़ी हिम्मत दिखाई, हालाँकि कार्यवाही के नतीजों को प्रभावित करने के प्रयासों के बारे में मीडिया में व्यापक अटकलें थीं। इसके बाद, कुख्यात आपातकाल लगाया गया और जेपी सहित सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इंदिरा गाँधी के चुनाव को वैध बनाने के लिए कानून को पूर्वव्यापी रूप से संशोधित किया गया था और सर्वोच्च न्यायालय ने इस संशोधन को सही ठहराया।”
उल्लेखनीय है कि इंदिरा गाँधी द्वारा तब इस फैसले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा पर विभिन्न तरीके अपनाए गए। यहाँ तक कि न्यायमूर्ति सिन्हा को अपने गायब होने तक की भी झूठी खबर फैलानी पड़ी थी।
रविशंकर प्रसाद ने लिखा है कि किस तरह से आपतकाल के दौरान बड़े स्तर पर अत्याचार और गिरफ्तारियाँ की गईं। कई उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की गई क्योंकि उन्होंने कैद किए गए लोगों की स्वतंत्रता के पक्ष में निर्णय लिया था।
इस लेख के अनुसार, “प्रसिद्ध ‘एडीएम जबलपुर केस’ में, जो भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर धब्बा है, एक मजबूत आवाज थी – न्यायमूर्ति एचआर खन्ना! जिन्होंने फैसला सुनाया कि आपातकाल के दौरान भी, भारतीयों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर मनमाने ढंग से अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। उन्होंने परिणामों को जानने के बावजूद साहस दिखाया और तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने उन्हें हटाते हुए वरिष्ठतम न्यायाधीश होने के बावजूद कुछ महीनों के लिए भी भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने के अधिकार से वंचित कर दिया। उनकी जगह जस्टिस एमएच बेग को CJI नियुक्त किया गया था।”
रविशंकर प्रसाद ने लिखा है कि किस प्रकार वर्तमान सरकार ने न्यायपालिका के फैसलों और उसके सम्मान को सर्वोपरि रखा है। केंद्रीय मंत्री ने लिखते हैं, “हम सभी न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो हमारी संवैधानिक राजनीति के लिए अभिन्न है। हमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की असाधारण विरासत में स्वतंत्रता, सशक्तीकरण, इक्विटी और भ्रष्टाचार की रोकथाम की स्थापना पर गर्व है।”
साथ ही, कॉन्ग्रेस की द्वेषपूर्ण नीतियों पर हमला करते हुए रविशंकर प्रसाद लिखते हैं कि जो लोग भारत के लोगों द्वारा एक लोकप्रिय जनादेश के माध्यम से बार-बार पराजित हुए हैं, वे सर्वोच्च न्यायालय और अन्य अदालतों के गलियारों से कपटपूर्ण तरीकों से राजनीति और शासन को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, यह अस्वीकार्य है।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का पूरा लेख आप ‘इंडियन एक्सप्रेस’ पर पढ़ सकते हैं।