Saturday, May 4, 2024
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शिव-पार्वती के होंठ वाला कवि, रोमिला थापर की बहू: MP की सरकारी समितियों में अब तक कॉन्ग्रेस के लोग, वामपंथी

"भाजपा और कॉन्ग्रेस में यही फर्क है कि कॉन्ग्रेस ने बेहिचक बड़े-बड़े कलाकारों को निकाल कर अपने लोगों को बिठाया, लेकिन भाजपा हिचक रही है कि श्याम बेनेगल व गुलजार जैसी हस्तियों को कैसे हटाएँ।"

क्या आपको पता है कि दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ में मध्य प्रदेश की सभी सरकारी समितियों को भंग कर दिया था और उनमें अधिकतर ऐसे लोगों को बिठा दिया था, जो कॉन्ग्रेस के विश्वस्त थे। हैरत की बात ये है कि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने सवा साल हो गए हैं, लेकिन अब तक ‘भारत भवन’ समेत कई संस्थानों में यही लोग मलाई खा रहे हैं। भाजपा सरकार ने इन समितियों का पुनर्गठन तक नहीं किया।

‘दैनिक जागरण’ में एक लेख के माध्यम से वरिष्ठ पत्रकार व लेखक अनंत विजय ने इस सम्बन्ध में ध्यान दिलाया है। उन्होंने बताया है कि कैसे जिन सरकारी समितियों में राज्य सरकार द्वारा नियुक्तियाँ की जाती थीं, उन सबका कार्यकाल पूरा होने का इंतजार किए बिना उन्हें भंग कर दिया गया था। इनमें कॉन्ग्रेस व वामपंथी दलों में आस्था रखने वाले लोगों को बिठाया गया। माखनलाल चतुर्वेदी विशविद्यालय में भी तत्कालीन कुलपति से इस्तीफा दिलवा अपना कुलपति बिठाया गया था।

साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अनर्गल टिप्पणी करने वाले तीन प्रोफेसरों की नियुक्ति कॉन्ग्रेस के विश्वस्त नए कुलपति ने की थी। ऐसे अधिकतर लोग अब भी अपने पदों पर जमे हुए हैं। ताज़ा विवाद भोपाल स्थित ‘भारत भवन’ के प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ल से जुड़ा है। उन्होंने अपनी एक कविता में शिव-पार्वती के होठों की बात की है। उनकी इस कविता की पंक्तियों पर जरा एक नजर डालिए:

आधे होंठ से पार्वती
आधे होंठ से शिव
पूरी करते हैं मुस्कान
नाभि में भी अंधेरे की
आधी गहराई शिव की है
आधी पार्वती की”

इस कविता को लेकर विवाद भी हुए थे। कॉन्ग्रेस सरकार ने ‘भारत भवन’ के ट्रस्टियों में संजना कपूर, गुलजार और श्याम बेनेगल को डाला। बता दें कि संजना कपूर दिवंगत अभिनेता शशि कपूर की बेटी हैं। उनकी शादी वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर के भतीजे से हुई है। कॉन्ग्रेस सरकार ने जब ‘भारत भवन’ के ट्रस्टियों को हटाया था तो उसमें पद्मा जैसी बड़ी कलाकार और सच्चिदानंद जोशी जैसे बड़े लेखक शामिल थे।

अनंत विजय लिखते हैं कि भाजपा और कॉन्ग्रेस में यही फर्क है कि कॉन्ग्रेस ने बेहिचक बड़े-बड़े कलाकारों को निकाल कर अपने लोगों को बिठाया, लेकिन भाजपा हिचक रही है कि श्याम बेनेगल व गुलजार जैसी हस्तियों को कैसे हटाएँ। वो जानकारी देते हैं कि 1982 में स्थापना के बाद से ही अशोक वाजपेटी भारत भवन के सर्वेसर्वा थे। भोपाल गैस ट्रेजेडी के बाद उनका बयान ‘यही जीवन है, मरने वालों के साथ कोई मर नहीं जाता’ पर खूब विवाद हुआ था।

उन्होंने ध्यान दिलाया है कि कला संस्थानों में कई मामलों में नियम न बने होने की आड़ में अपनी ‘मित्र मण्डली’ को फायदे पहुँचाए जाते हैं। इसका अर्थ है, वो अपने समूह के कलाकारों की नियुक्तियाँ करते हैं और उन्हें कार्यक्रमों में आमंत्रित करते हैं। सालों तक ‘भारत भवन’ में अशोक वाजपेयी के ही मण्डली के लोग जमे हुए हैं। अब देखना ये है कि मध्य प्रदेश में कला-संस्कृति को बचाने के लिए शिवराज सिंह चौहान की सरकार क्या कदम उठाती है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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