महा विकास अघाड़ी (शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी) ने महाराष्ट्र में सरकार भले बना ली हो, लेकिन गठबंधन साझेदारों के बीच का मतभेद खत्म होता नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि अपने साथ शपथ लेने वाले मंत्रियों को मनपसंद कार्यालय दे चुके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज तक उनके विभाग का बॅंटवारा नहीं कर पाए हैं। उद्धव ने छह मंत्रियों के साथ 28 नवंबर को बड़े तामझाम के साथ शपथ ली। तीनों दलों की तरफ से दो-दो लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली थी।
तीनों दलों के बीच जारी मतभेद को लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है, “विधानसभा का शीत सत्र केवल छह दिनों के लिए बुलाया गया है। अब तक न तो मंत्रियों को विभाग बॉंटे गए हैं और न कैबिनेट का विस्तार किया गया है। यह सत्र केवल परंपरा के निर्वाह के लिए बुलाया गया है, क्योंकि किसी को पता नहीं है कि इस हालत के लिए जवाबदेह कौन है।”
Maharashtra Former CM Devendra Fadnavis: Winter session of the Assembly has been called for only 6 days. Neither portfolio allocation nor expansion of ministry has taken place since govt formation. It (session) is being held as formality as no body knows who is answerable. pic.twitter.com/1oQIxlEzA7
— ANI (@ANI) December 10, 2019
इस बीच, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के दिग्गज नेता मनोहर जोशी ने भविष्य में भाजपा के साथ आने के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा, “मेरी राय में यह ज्यादा अच्छा होता कि शिवसेना और भाजपा साथ रहते। लेकिन दोनों पार्टियॉं फिलहाल ऐसा नहीं चाहती।” उनका बयान ऐसे वक्त में आया है जब नागरिकता संशोधन विधेयक पर स्टैंड को लेकर पार्टी की छीछालेदर हो रही है।
Former Chief Minister of Maharashtra & Shiv Sena leader, Manohar Joshi: In my opinion, it will be better if BJP & Shiv Sena stay together. But both the parties don’t want it at present. pic.twitter.com/fNtNRLIQF0
— ANI (@ANI) December 10, 2019
लोकसभा में सोमवार को जब इस बिल पर वोटिंग हुई तो शिवसेना के 18 सांसदों ने पक्ष में वोट किया। उसका यह कदम बिल का विरोध कर रही और महाराष्ट्र की सत्ता में साझेदार कॉन्ग्रेस को रास नहीं आया। कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गॉंधी ने इस बिल का समर्थन करने वालों को जब देशद्रोही करार देने की कोशिश की तो शिवसेना के सुर बदल गए। उद्धव ने कहा कि उनकी पार्टी राज्यसभा में इस बिल का तब तक समर्थन नहीं करेगी जब तक कुछ चीजें स्पष्ट नहीं हो जाती। इससे पहले पार्टी सांसद अरविंद सावंत ने कहा था कि राज्यसभा में भी पार्टी हिंदुत्व को लेकर अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटेगी।
नागरिकता संशोधन विधेयक पर शिवसेना के ‘पेंडुलम स्टैंड को लेकर उसकी खासी आलोचना हो रही है। एआईएमआईएम के नेता और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने चुटकी लेते हुए कहा है कि यह भांगड़ा पॉलिटिक्स है। ओवैसी ने कहा, “कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में महा विकास अघाड़ी सरकार ‘सेकुलर’ है। ऐसे में उस बिल का समर्थन जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, अवसरवाद की राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं है।”
Asaduddin Owaisi on Shiv Sena supported #CitizenshipAmendmentBill2019 in Lok Sabha: This is ‘Bhangra politics’. They write ‘secular’, in common minimum programme, this bill is against secularism and Article 14. It is politics of opportunism. pic.twitter.com/3H2V95etB0
— ANI (@ANI) December 10, 2019
असल में, शिवसेना की दिक्कत यह है कि उसकी कमाई ही हिंदुत्व की राजनीति की है। महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए उस पर हिंदुत्व के एजेंडे से समझौते के आरोप लग रहे हैं। स्थानीय स्तर पर सरकार गठन के बाद सैकड़ों नेता इसी वजह से पार्टी छोड़कर गए है। ऐसे में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर वह नहीं चाहती कि उस पर लगे आरोपों को बल मिले।
सीएम बनने के बाद से उद्धव कई बार हिंदुत्व पर जोर भी दे चुके हैं। लेकिन, उनकी परेशानी यह है कि शिवसेना जब भी ऐसा करते दिखने की कोशिश करती है राज्य की सत्ता के साझेदार उसकी लगाम खींचने लगते हैं। उप मुख्यमंत्री, महकमों को लेकर पहले से ही मतभेद चल रहे हैं। ऐसे में उद्धव बखूबी जानते हैं कि हिंदुत्व के एजेंडे पर जोर देने से उनकी सरकार की अकाल मौत हो सकती है। वैसे इसकी संभावना सरकार गठन के वक्त से ही जताई जा रही है।
इसके अलावा कर्नाटक में कॉन्ग्रेस से बगावत कर भाजपा का साथ देने वाले विधायकों को उपचुनाव में जनता ने जिस तरह सिर आँखों पर बिठाया है, उससे भी शिवसेना सशंकित होगी। यह आशंका उसके मन में गहरे तक बैठी होगी कि भाजपा का साथ छोड़ने पर उसका भी ऐसा ही हश्र हो सकता है। यही कारण है कि मनोहर जोशी ने निजी राय बता कर भविष्य में दोनों दलों के साथ आने के संकेत दिए हैं।
शिवसेना में जोशी की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में 1993 में जब पहली बार शिवसेना सत्ता में आई थी तो उद्धव के पिता बाल ठाकरे ने उन्हें ही मुख्यमंत्री के रूप में चुना था। लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके जोशी को बाल ठाकरे माना (मनोहर) कहा करते थे।