कोरोना वायरस महामारी के बीच भारत में इन दिनों राजस्थान पश्चिम बंगाल महाराष्ट्र जैसे विभिन्न राज्यों में फँसे श्रमिकों को घर पहुँचाए जाने को लेकर राजनीति गर्माई हुई है। बता दें कि कोरोना के मद्देनजर देश में लॉकडाउन जारी है। जिसकी वजह से आवागमन के सारे साधन बंद हैं और इसीलिए प्रवासी मजदूर अन्य राज्यों में फँस गए हैं। फँसे हुए इन प्रवासी कामगारों ने कई बार, कई राज्यों में सड़कों पर उतरकर यह माँग की थी कि सरकार उनके घर वापस भेजने की सुविधा प्रदान करे। इसके बाद गंभीर स्थिति को देखते हुए, केंद्र सरकार ने ’श्रमिक’ ट्रेनें शुरू कीं। ये विशेष ट्रेनें हैं, जो कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों में वापस पहुँचा रही है।
श्रमिक ट्रेन की शुरुआत की घोषणा के साथ ही विवाद शुरू हो गया और इस विवाद को शुरू किया कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने। सोनिया गाँधी ने दावा किया कि केंद्र सरकार प्रवासियों को घर पहुँचाने के लिए पैसे ले रही है। कई मीडिया हाउस ने भी इस भी इस झूठी और गलत खबर को खूब भुनाया।
दरअसल, मजदूरों को घर भेजने के लिए खर्च होने वाले लागत का 85% केंद्र सरकार (रेलवे) द्वारा वहन किया जा रहा है और 15% राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। ये राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वो ये पैसे अपने सरकारी फंड से दे या फिर किसी NGO या किसी अन्य माध्यम से एकत्र कर करती है। केंद्र सरकार और रेलवे यात्रियों से सीधा शुल्क नहीं ले रही है और उस 15% का भुगतान राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया है।
फँसे हुए प्रवासी कामगारों से वसूले जा रहे धन की खबर (हालाँकि, यह उनका खुद का ही मनगढ़ंच झूठ था) की वजह से कॉन्ग्रेस काफी नाराज थी। किसी ने उम्मीद की होगी कि कॉन्ग्रेस शासित राज्य यह सुनिश्चित करेंगे कि 15% राज्य के खजाने से लिया गया है न कि प्रवासी कामगारों से।
हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अधिकांश राज्यों से राज्य सरकारों ने सरकारी फंड से प्रवासी मजदूरों के किराए का भुगतान किया है, जबकि महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान की सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके पैतृक राज्य पहुँचाने के लिए उनसे किराया वसूला है।
पीटीआई ने बताया कि महाराष्ट्र के राज्य मंत्री नितिन राउत ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर राज्य से जाने वाले प्रवासियों की यात्रा लागत वहन करने का आग्रह किया है। उन्होंने रविवार (मई 3, 2020) को रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि प्रवासियों के परिवहन का खर्च रेलवे वहन करे। इसके अलावा, टाइम्स नाउ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र के साथ ही केरल और राजस्थान ने भी प्रवासियों को रेलवे टिकट के लिए भुगतान करने के लिए कहा है।
पिछली घटनाओं को याद करें तो महाराष्ट्र और राजस्थान नें प्रवासी मजदूरों ने घर वापसी की माँग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था। महाराष्ट्र और राजस्थान के साथ ही कई अन्य राज्यों में भी कई विरोध प्रदर्शन हुए। जिसमें प्रवासी मजदूरों ने घरवापसी की माँग की थी।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने आज खबर प्रकाशित की
आईआईटी-हैदराबाद में प्रवासी मजदूरों के घर वापस जाने के लिए विरोध करने के कुछ दिनों बाद ही कई प्रवासी मजदूरों ने शनिवार को टेलापुर में एक प्रसिद्ध रियल एस्टेट डेवलपर के निर्माण स्थल पर विरोध प्रदर्शन किया। इनकी भी घर वापस भेजने की ही माँग थी। वे सभी बस या ट्रेन से अपने घर वापस जाना चाहते थे। इनकी संख्या तकरीबन 3,000 थी। पुलिस अधिकारियों ने इन्हें शांत करवाने के लिए कार्रवाई की। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा के प्रवासी शामिल थे।
पिछले तीन दिनों में, गुजरात सरकार ने 4,600 से अधिक प्रवासी श्रमिकों को उनके मूल राज्यों मध्य प्रदेश और राजस्थान में वापस जाने की सुविधा प्रदान की।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2.84 लाख प्रवासी श्रमिकों ने विभिन्न राज्यों से वापस अपने घर राजस्थान जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है। बंगाल के भी हजारों मजदूर देश के विभिन्न हिस्सों में फँसे हुए हैं, वो अपने घर वापस जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। श्रमिक ट्रेन के चलने से उनके अंदर उम्मीद की एक किरण जगी है।
लेकिन, हजारों और लाखों श्रमिकों के अपने गृह राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा श्रमजीवी ट्रेनों को चलाने के लिए इंतजार करने के साथ, केंद्रीय रेलवे से सामने आने वाली संख्या में विरोधाभास प्रतीत होता है।
आज सुबह 9 बजे तक केंद्र सरकार और रेलवे द्वारा 69 ट्रेनों का संचालन किया गया है। हालाँकि, पाया गया कि राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से जाने वाली ट्रेनों की संख्या इन राज्यों में आने वाली ट्रेनों की संख्या से कहीं अधिक है (जो दूसरे राज्यों से अपने प्रवासी मजदूरों को ले गए)। पश्चिम बंगाल के लिए, केवल दो ट्रेनों का संचालन किया गया है, जो राजस्थान जैसे अन्य राज्यों से अपने प्रवासी मजदूरों को वापस अपने राज्य में ले गए हैं।
इससे स्पष्ट निष्कर्ष यह निकला है कि महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्य दूसरे राज्यों में फँसे अपने प्रवासी मजदूरों को स्वीकार करने की तुलना में अपने राज्य में फँसे अन्य राज्य के प्रवासी कामगारों को उनके गृह राज्य भेज रहा है।
रेलवे मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और महाराष्ट्र विभिन्न राज्यों से अपने प्रवासियों को वापस ले जाने वाली ट्रेनों की अनुमति नहीं दे रहे हैं।
आइए हम विश्लेषण करें कि क्या हो रहा है विभिन्न राज्यों में…
राजस्थान और प्रवासी श्रमिक
26 अप्रैल को, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राजस्थान में फँसे अन्य राज्यों के प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों में वापस जाने की अनुमति दी जाएगी। हालाँकि राजस्थान के प्रवासी मजदूरों के अन्य राज्यों से वापस आने की बात करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें ‘चरणबद्ध तरीके’ से वापस आने की अनुमति दी जाएगी। उसी हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया था कि “उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा ने पहले ही अन्य राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूरों को वापस लाने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है, क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए 14 अप्रैल तक लागू किए गए लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया गया था।”
इस तरह से, जब उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार अपने प्रवासियों को वापस लेने के लिए तैयार हैं, राजस्थान इस बात पर जोर दे रहा है कि वे अपने राज्य के मजदूरों को “चरणबद्ध” तरीके से स्वीकार करेंगे। दिलचस्प बाय यह है कि अभी सिर्फ 3 ट्रेनें ही राजस्थान के मजदूरों को उनके राज्य पहुँचाने के लिए चल रही है। दूसरी ओर, प्रवासी मजदूरों को अन्य घरेलू राज्यों में ले जाने वाली 10 ट्रेनें पहले ही जा चुकी हैं और 4 लाइन में हैं।
दरअसल 2.84 लाख प्रवासी श्रमिक अपने दूसरे राज्यों से अपने गृह राज्य राजस्थान वापस जाने का इंतजार कर रहे हैं, मगर राजस्थान सरकार पूरी तरह से अन्य राज्यों के मजदूरों को राजस्थान से वापस भेजने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, और अन्य राज्यों के अपने मजदूरों को स्वीकार नहीं कर रही है। जबकि राजस्थान सरकार यह समझ रही है कि राज्य छोड़ने वाले प्रवासी कामगारों की लागत वह वहन करेगी, उसने अपने ही मजदूरों को वापस लेने के बारे में कुछ नहीं कहा है, जो विभिन्न राज्यों में फँसे हुए हैं।
इससे संभावित रूप से अन्य राज्यों में संकट पैदा हो सकता है जो अपने स्वयं के प्रवासियों को स्वीकार कर रहे हैं और राजस्थान जैसे राज्यों के प्रवासियों को भी भेज रहे हैं जो अपने ही राज्य के लोगों को राज्य में वापस लाने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं।
महाराष्ट्र और प्रवासी श्रमिक
महाराष्ट्र में भी संख्या कुछ ज्यादा अलग नहीं है। अन्य राज्यों से महाराष्ट्र के श्रमिकों की केवल एक ट्रेन गई है, जबकि महाराष्ट्र से विभिन्न राज्यों की श्रमिकों की 8 ट्रेनें गई हैं।
उदाहरण के लिए, हाल ही में 30 अप्रैल को महाराष्ट्र के मजदूर मध्य प्रदेश में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे कि उनको घर वापस भेजा जाए। हैदराबाद में भी, महाराष्ट्र के प्रवासी मजदूरों ने घर वापस जाने की माँग को लेकर धरना दिया था।
महाराष्ट्र सरकार का संचालन और प्रबंधन अब तक सबसे खराब रहा है। उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार से प्रवासियों से शुल्क नहीं लेने की अपील की थी, जबकि खबरें सामने आईं कि वे खुद प्रवासी मजदूरों से मेडिकल टेस्ट के लिए पैसे ले रहे हैं और उसके बाद ही उसे घर जाने की अनुमति दे रहे हैं।
महाराष्ट्र खुद ही अपने राज्य के मजदूरों को वापस लाने में काफी पीछे है। इसके बावजूद NCP नेता नवाब मलिक आगे बढ़कर आरोप लगाते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार जानबूझकर महाराष्ट्र में रह रहे प्रवासियों की वापसी के लिए कठोर शर्तें लगा रही है ताकि उन्हें स्वीकार करने से बच सकें। बता दें कि 16 ट्रेनें प्रवासियों को यूपी वापस लाने के लिए निर्धारित हैं।
पश्चिम बंगाल और प्रवासी श्रमिक
पश्चिम बंगाल सरकार ने खुद कहा है कि वे अपने राज्य के प्रवासी मजदूरों को वापस लेने में धीमी गति से चल रही हैं।
राज्य का मानना है कि इतने सारे लोगों का बिना कोरोना वायरस टेस्ट के राज्य में लाना खतरनाक है। इससे संक्रमण फैल सकता है। इसके लिए एक योजना बनाने की जरूरत है, ताकि संक्रमण न फैले। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने कहा कि अन्य राज्यों से आने वाले किसी को भी कंटेनमेंट जोन में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सिन्हा ने कहा, इसलिए, यदि कोई बंगाल के लिए एक ट्रेन ले रहा है, तो वह एक कंटेनमेंट जोन से आता है, तो उसे घर नहीं भेजा जा सकता है। कुछ अन्य व्यवस्था करने की आवश्यकता है और इसके लिए समय की आवश्यकता है।”
सिन्ही ने आगे कहा, “लाखों फँसे हुए प्रवासियों मजदूरों को एक बार में ही अनुमति देना उचित नहीं होगा। उन्हें चरणों में वापस लाने की आवश्यकता है। इसके लिए विस्तृत योजना बनाई जानी है। वरना अब तक किए गए हर प्रयास बेकार चले जाएँगे।”
राज्य सरकार के इस रुख के बाद यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केवल दो ट्रेनों ने बंगाल के मजदूरों को दूसरे राज्यों से वापस अपने राज्य में पहुँचाया है।
मध्य प्रदेश और प्रवासी श्रमिक
हालाँकि, मध्य प्रदेश में वापस आने वाली प्रवासी मजदूरों की गाड़ियाँ केवल एक हैं, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सभी प्रवासी श्रमिक जो मध्य प्रदेश के हैं, उन्हें वापस लाया जाएगा। दरअसल, दूरी अधिक नहीं होने के कारण, राज्य सरकार ने प्रवासियों के लिए कई बसों की व्यवस्था की, जो अन्य राज्यों, विशेषकर महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात से मध्य प्रदेश के मजदूरों को वापस ला रही है।
शनिवार को, शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि राज्य सरकार बसों में विभिन्न राज्यों में फँसे अपने मजदूरों को वापस लाने की व्यवस्था कर रही है।
उन्होंने कहा, “हम उन्हें पैदल नहीं चलने देंगे। हमने उन्हें गर्मी में सड़कों और रेल की पटरियों पर घर वापस जाते देखा है। वो काफी चिंतित हैं। इसलिए, हम उनकी यात्रा की पूरी व्यवस्था करेंगे, उन्हें बसों में उनके गाँव वापस भेजेंगे।”
बसों में सवार होने से पहले, मजदूरों की बीमारियों की जाँच की जाएगी। उन्होंने कहा, “मैं सभी ग्रामीणों से अनुरोध करता हूंँ कि वापस लौटने वालों के साथ वो मानवीय व्यवहार करें।”
शिवराज सिंह ने कहा, “मुझे अलग-अलग राज्यों के व्यक्तियों से कई फोन कॉल प्राप्त हुए हैं जो वापस आना चाहते हैं। हमने उनके लिए ई-पास की व्यवस्था की है ताकि वे अपने परिवहन का उपयोग करके लौट सकें।” इस प्रकार मध्य प्रदेश सरकार अपने निवासियों को स्वीकार करने की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट रही है।
जबकि राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे कॉन्ग्रेस शासित राज्यों और विपक्ष शासित राज्यों में विभिन्न राज्यों में फँसे अपने ही मजदूरों के लिए अनभिज्ञ जान पड़ते हैं। वे अपने राज्य में बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, झारखंड आदिर राज्यों के फँसे मजदूरों को वापस भेजने के लिए ज्यादा उत्सुक दिख रहे हैं।