एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार को सिंचाई घोटाले में क्लीनचिट मिल गई है। यह घोटाला अजित के महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री रहते हुआ था। 27 नवंबर को एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने बॉम्बे हाई कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर अजित पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए। हलफनामा दाखिल होने से एक दिन पहले ही भाजपा के देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। अजित पवार के उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर वापस एनसीपी में लौट जाने पर फडणवीस ने अपना पद छोड़ा था।
हलफनामा दाखिल करने के अगले दिन 28 नवंबर को राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अघाड़ी की सरकार बनी। इस सरकार में शिवसेना के अलावा एनसीपी और कॉन्ग्रेस भी शामिल है।
Maharashtra’s anti-corruption bureau (ACB) clears NCP’s Ajit Pawar of allegations in irrigation scam.The affidavit, submitted on 27 Nov at Bombay HC,states ‘Chairman of VIDC (Ajit Pawar) can’t be held responsible for acts of executing agencies,as there’s no legal duty on his part pic.twitter.com/C31dKmyABQ
— ANI (@ANI) December 6, 2019
हलफनामे में कहा गया है कि जॉंच में वीआईडीसी के चेयरमैन (जल संसाधन मंत्री) की संलिप्तता के प्रमाण नहीं मिले।
हलफनामे में कहा गया है कि विदर्भ सिंचाई विकास निगम (VIDC) के अध्यक्ष अजीत पवार को क्रियान्वयन एजेंसियों के कृत्यों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
गौरतलब है कि साल 1999 से 2009 तक जल संसाधन मंत्री रहे अजित पवार के ख़िलाफ़ ये हलफनामा कई आरोपों से जुड़ा हुआ है। जिसमें विदर्भ में शुरू हुई 32 सिंचाई परियोजनाओं का मामला भी शामिल है, जिनकी लागत 3 महीनों के भीतर 17, 700 करोड़ रुपए तक बढ़ गई थी।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व एसीबी अध्यक्ष और मुंबई पुलिस कमिश्नर संजय बर्वे ने अजित पवार के ख़िलाफ़ हलफनामा दाखिल किया था। जिसमें उनपर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने गोसीखुर्द और जिगाँव में अवैध रूप से टेंडर को एक्स्टेंड करने के लिए हस्ताक्षर किए और महाराष्ट्र गवर्नमेंट रूल्स ऑफ बिजनेस एंड इंस्ट्रक्शन के नियम 10 के तहत वे अपने विभाग के सभी कार्यों के लिए जबावदेह हैं।
हालाँकि, नए हलफनामे में संजय बर्वे के आब्जर्वेशन को खारिज करते हुए कहा गया है कि वीआईडीसी द्वारा तय प्रक्रिया का पालन हुआ था और जिस नोट शीट में पवार ने हस्ताक्षर किए थे उसमें कोई भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं थी। महाराष्ट्र गवर्नमेंट रूल्स ऑफ बिजनेस ऐंड इंस्ट्रक्शन के नियम 14 का हवाला देते हुए कहा गया कि संबंधित विभाग के सचिव को टेंडर से संबंधित आवश्क मामलों की पड़ताल के बाद ही उसकी जानकारी संबंधित मंत्री और मुख्य सचिव को देनी थी। लेकिन अधिकारी ने ऐसा नहीं किया।
नए हलफनामे में कहा गया कि जल संसाधन विभाग के सचिव और विदर्भ सिंचाई विभाग महामंडल के कार्यकारी संचालक का दर्जा, कर्तव्य तथा जवाबदेही समान है। इसलिए सिंचाई परियोजनाओं के टेंडर व खर्च मंजूरी में अवैधता की पड़ताल करने का दायित्व इन दोनों अधिकारियों का था। उनको संबंधित अवैधता की जानकारी पवार को देनी चाहिए थी। चूँकि उन्होंने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया, इसलिए घोटाले में पवार की जवाबदेही नहीं तय की जा सकती।
यहाँ बता दें कि साल 2014 के राज्य चुनावों में ये आरोप एक राजनैतिक मुद्दा था। जिससे जुड़े मामले को देवेंद्र फडणवीस ने चुनाव जीतने के बाद ही खोल दिया था। विदर्भ और कोंकण जिले में फैले 44 परियोजनाओं में घोटाले से संबंधित 23 प्राथमिकी और 5 चारशीट दायर हुई थी। इसके बाद कोंकण के बालगंगा परियोजना में पवार की भूमिका हमेशा से जाँच के दायरे में रही। लेकिन इनमें किसी भी मामले पर उन पर आरोप नहीं लगाए गए और न ही उनका नाम किसी एफआईआर में लिया गया।
इस मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि पवार को क्लीनचिट हैरानी की बात है। ऐसा कैसे हो सकता है कि एसीबी के एक अधिकारी द्वारा दाखिल हलफनामे से दूसरा अलग हो। उन्होंने विरोध जताते हुए उम्मीद जताई कि कोर्ट इसे खारिज कर देगा।