जहाँ एक तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसानों के आंदोलन के समर्थन की बातें कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपने राज्य में इससे मिलता-जुलता एक कानून 2014 में ही पारित कर लिया था। ममता बनर्जी की सरकार ने पश्चिम बंगाल में ‘एग्रीकल्चर मार्केटिंग बिल’ विधानसभा में पास कराया था। अब वो मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही हैं।
ममता बनर्जी ने कहा है कि केंद्र की भाजपा सरकार को या तो कृषि कानूनों को वापस ले लेना चाहिए, या फिर इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने डेरेक ओ ब्रायन सहित तृणमूल कॉन्ग्रेस के अपने कुछ वफादार नेताओं को सिंघु सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के पास भेजा भी और प्रदर्शनकारी नेताओं से बातचीत की। इस दौरान योगेंद्र यादव भी देखे गए। मंगलवार (दिसंबर 8, 2020) को किसान संगठनों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान कर रखा है जिसे कई राजनीतिक दलों ने भी समर्थन दिया है।
मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों से किसानों को अपने उत्पाद कहीं भी भेजने की छूट मिलती है, साथ ही ‘कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग’ की स्थिति में प्राइवेट कंपनियों की मनमानी पर भी लगाम लगती है। इसमें क्षति की स्थिति में खरीददार पर ही सारी जिम्मेदारी डाल दी गई है और किसान इन सबसे मुक्त है। रुपए के भुगतान के लिए समयसीमा भी दी गई है। बावजूद इसके भ्रम फैला कर किसानों को बरगलाया जा रहा है।
You sure @MamataOfficial? Because your government already passed similar bill in 2014. This is from your Trinamool Party website👇🏻 https://t.co/izB8tywHme pic.twitter.com/S41F6hGoMl
— Facts (@BefittingFacts) December 7, 2020
पश्चिम बंगाल सरकार ने 2014 में जो ‘एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग (रेगुलेशन) बिल’ पास कराया था, दावा किया गया था कि इससे किसानों को अपने उत्पादों के उचित दाम मिलेंगे। ममता बनर्जी सरकार ने कहा था कि बिचौलियों की गतिविधियों को रोकने के लिए ऐसा किया गया है। साथ ही कहा था कि बिचौलियों से निपटने के कड़े कदम उठाए जा रहे हैं और उनसे निपटने में ये कानून सहायक सिद्ध होगा।
आज जब मोदी सरकार यही कर रही है तो ममता बनर्जी सहित पूरे विपक्ष को दिक्कत है। पश्चिम बंगाल के उस कानून के अनुसार, इससे किसानों की पहुँच एक नए बाजार तक होगी और वो सीधे उपयोगकर्ताओं तक अपने उत्पाद बेच सकेंगे। ग्राहकों और किसानों, इसे दोनों के लिए सरकार ने लाभदायक बताया था। साथ ही कहा गया था कि दोनों को ज्यादा भरोसेमंद सिस्टम का हिस्सा बनाना राजकोष के लिए भी अच्छा होगा।
ठीक इसी तरह, NCP के संस्थापक-अध्यक्ष शरद पवार आज ‘किसानों’ के आंदोलन को समर्थन देते हुए कृषि कानूनों पर मोदी सरकार को घेर रहे हैं। शरद पवार यूपीए सरकार में लगातार 10 वर्षों तक केंद्रीय कृषि मंत्री थे और तब वो इन्हीं कृषि सुधारों की पैरवी कर रहे थे, जिनके विरोध में आज वो खड़े हैं। उन्होंने APMC सुधारों को लेकर मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा था। उन्होंने तब इन सबके लिए प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी पर जोर दिया था, जबकि आज ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि प्राइवेट सेक्टर किसानों की जमीनें ले लेंगे और उन्हें रुपए नहीं देंगे।