Sunday, November 17, 2024
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कोरोना वैक्सीनेशन में NDA शासित स्टेट ने लगाया जोर, जहाँ-जहाँ विपक्ष की सरकार वहाँ-वहाँ डोज पड़े कम

वृहद टीकाकरण अभियान के पहले दिन आए आँकड़ों ने विपक्ष की आशाओं पर फिलहाल तो तुषारापात कर दिया है।

केंद्र सरकार के वृहद टीकाकरण योजना का पहला दिन (21 जून 2021), मोदी सरकार की विफलता की कामना करने वालों के लिए चौंकाने वाला साबित हुआ। आधिकारिक आँकड़ें देखें तो एक दिन में देश में 86 लाख से अधिक लोगों को कोरोना का टीका लगा। यह आँकड़ा उनके लिए संतोषजनक होगा जो कभी यह कहते थे कि हमें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे एक दिन में 50 लाख लोगों को टीका लगाया जा सके। आँकड़ा केंद्र सरकार के लिए संतोषजनक होने के साथ-साथ गर्व का विषय भी होना चाहिए, क्योंकि यह साधारण आँकड़ा नहीं है। टीकाकरण में इस आँकड़े का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि विश्व में जनसंख्या के लिहाज से देखें तो सौ अधिक देश होंगे जिनकी आबादी 80 लाख या उससे कम होगी।

इस विषय पर पहले कई बार बात हो चुकी है कि कैसे पहले विपक्ष शासित राज्यों की ओर से यह माँग उठाई गई कि टीके की खरीद, टीकाकरण के नियम और संक्रमण रोकने सम्बंधित नीति-निर्धारण के लिए उन्हें निर्णय लेने की पर्याप्त स्वायत्तता मिलनी चाहिए। जब केंद्र सरकार ने बातचीत के बाद राज्यों को अधिकार दे दिए, उसके कुछ ही दिनों के बाद यह कहा गया कि केंद्र सरकार ने सब कुछ राज्यों के हवाले करके अपनी जिम्मेदारियों से हाथ धो लिया। इसे लेकर विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखे। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार टीकाकरण के विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई। केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक वृहद टीकाकरण अभियान की रूपरेखा ही नहीं, बल्कि पूरी योजना पेश करनी पड़ी। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की भी बहुत चर्चा हुई। विपक्ष ने उन टिप्पणियों को सरकार के खिलाफ दिए जाने वाले फैसले के रूप में भी प्रस्तुत किया। 

जब प्रधानमंत्री मोदी ने एक वृहद टीकाकरण अभियान की घोषणा करते हुए यह कहा कि अट्ठारह वर्ष और उससे ऊपर देश के हर नागरिक को मुफ्त टीकाकरण का लाभ मिलेगा तब लगा कि केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री की आलोचना के लिए विपक्ष के हाथ में अब बहुत कुछ नहीं बचेगा। इसके बावजूद राहुल गाँधी, ममता बनर्जी और रॉबर्ट वाड्रा की ओर से कुछ वक्तव्य आए, जो क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो बॉलर की उन अपील जैसे थे जिनके बारे में कमेंटेटर कहते हैं कि ये विश्वास में कम और उत्साह में अधिक थी। अब विपक्ष की सारी आशा इस बात पर टिकी थी कि केंद्र सरकार अपनी कोशिश में नाकाम रहे।

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वृहद टीकाकरण अभियान के पहले दिन आए आँकड़ों ने विपक्ष की आशाओं पर फिलहाल तो तुषारापात कर दिया है। 

मैं यहाँ विपक्ष की ऐसी सोच की बात क्यों कर रहा हूँ? इसके पीछे कारण है पहले दिन के आँकड़ों में समाए आँकड़े। यदि हम पहले दिन के आँकड़ों को देखें तो पाएँगे कि एनडीए शासित राज्यों में टीकाकरण का अभियान विपक्ष शासित राज्यों से अधिक मजबूत दिखाई दिया। एनडीए शासित केवल पाँच राज्य, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात और बिहार का योगदान 86 लाख में से 46.3 लाख का रहा जो पचास प्रतिशत से भी अधिक है। यदि इनके साथ असम और हरियाणा के आँकड़े भी मिला दें तो पाएँगे कि एनडीए शासित सात राज्यों का योगदान करीब 55 लाख रहा जो 63 प्रतिशत से भी अधिक है। अब यदि इन आँकड़ों की तुलना हम विपक्ष शासित बड़े राज्य जैसे महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, केरल और आंध्र प्रदेश से करें तो पाएँगे कि इन पाँच राज्यों में टीके का योग करीब 12.58 लाख आता है जो पहले दिन लगाए गए कुल टीकों का करीब 14.40 प्रतिशत है। ऐसा तब हो रहा है जब महाराष्ट्र और केरल कुल संक्रमण और एक्टिव केस के मामले में आज भी तीन प्रमुख राज्यों में से हैं। 

ऐसे में विपक्ष शासित राज्यों के आँकड़ों से क्या निष्कर्ष निकाले जाएँ? क्या यह माना जा सकता है कि विपक्ष कोरोना के विरुद्ध देश की लड़ाई में केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलकर काम करने के लिए तैयार है? प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा हर राज्य के लिए एक दिन ही हुई थी। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि कुछ राज्यों को केंद्र सरकार की टीकाकरण की नई नीति का पता बाकी राज्यों की अपेक्षा से देर से चला। इसके लिए विपक्ष कुछ भी तर्क दे सकता है पर उसके कर्मों से यह दिखाई दे रहा है कि कोरोना से लड़ाई की उसकी कोशिशों में कमियाँ हैं जिनके बारे में उसे विचार करने की आवश्यकता है। प्रश्न यही है कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में विपक्ष की जो भूमिका है, जिसके तहत उसे एक वैकल्पिक व्यवस्था प्रस्तुत करनी पड़ती है, उस कसौटी पर वर्तमान विपक्ष कभी खरा उतरेगा या उसका विश्वास इसी दर्शन पर टिका रहेगा कि सरकार के विरुद्ध दुष्प्रचार ही वैकल्पिक व्यवस्था है। 

टीकाकरण की शुरुआत अच्छी रही है। पहले दिन के आँकड़ें देखकर यह विश्वास हुआ है कि केंद्र सरकार के पास एक नीति है जो समझ के आधार पर खड़ी की गई है। शुरुआत को और मजबूत बनाकर उसे आगे ले जाते हुए टीकाकारण अभियान को अगले स्तर पर कैसे ले जाया जाएगा, वह देखने वाली बात होगी। चूँकि विपक्ष का विश्वास अभी तक दुष्प्रचार में दिखाई दे रहा है, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह अपने लीक पर चलता है या आगे जाकर अपनी तरफ से कोई नई नीति प्रस्तुत करता है? यह देखना है कि विपक्ष कोरोना से लड़ता है या लड़ने का अभिनय करता है, जो अभी तक वह करता रहा है। यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि आगे चल कर केंद्र सरकार और उसकी टीकाकरण नीति के विरुद्ध विपक्षी दुष्प्रचार का स्वरुप क्या रहेगा? दुष्प्रचार इकोसिस्टम के हिस्सा रहे पत्रकारों के कुतर्कों पर आधारित रहेगा या कुछ तर्क वगैरह भी प्रस्तुत किए जाएँगे।

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