जहाँ एक तरफ किसान संगठनों ने आंदोलन के नाम पर दिल्ली को बंधक बना रखा है और कह रहे हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए बिना स्थिति में बदलाव नहीं होगा, वहीं दूसरी तरफ ‘न्यूज़ 18’ द्वारा कराए गए एक सर्वे में सामने आया है कि देश में अधिकतर लोग इन कृषि कानूनों से खुश हैं।
‘किसान आंदोलन’ चालू हुए 25 दिन हो गए हैं। कॉन्ग्रेस, AAP और अकाली दल लगातार आग में घी डालने के काम में लगे हुए हैं। मोदी सरकार ने कई दौर की बातचीत की, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। ‘न्यूज़ 18’ के सर्वे में सामने आया है कि 73.05% लोग इन कृषि सुधारों के समर्थन में हैं। इन लोगों का मानना है कि इन कानूनों से किसानों को फायदा होने वाला है। 48.71% लोगों ने इस आंदोलन को ‘राजनीति से प्रेरित’ करार दिया है।
इस तरह दो तिहाई से अधिक लोग केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के समर्थन में हैं और करीब आधे लोग किसान आंदोलन को राजनीति से प्रेरित मानते हैं। ‘न्यूज़ 18’ का दावा है कि इस सर्वे में कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के हर कोने से लोगों की राय लेने का प्रयास किया गया है। कुल 2412 लोगों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया और उनसे कुल 12 सवाल पूछे गए। तो लोगों का क्या सोचना है? आइए, जानते हैं।
लोगों का मानना है कि इन कृषि सुधार कानूनों से आने वाले दिन में किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव आएगा और साथ ही वो इस कानून को देश व किसानों के हित में मानते हुए ये चाहते हैं कि ये आंदोलन जल्द से जल्द ख़त्म हो। 56.59% लोग चाहते हैं कि ये आंदोलन ख़त्म होना चाहिए। हालाँकि, 32.59% लोग ऐसे भी हैं जो सोचते हैं कि ये आंदोलन राजनीति से प्रेरित नहीं है और 18.7% लोगों ने इस मामले में कोई राय नहीं दी।
मीडिया संस्थान ने बताया है कि उसने इस सर्वे में कुल 22 राज्यों के लोगों की राय ली है। जिन राज्यों में खेती ज्यादा होती है, वहाँ के लोग इन कृषि कानूनों के समर्थन में और ज्यादा गोलबंद हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इन कृषि कानूनों को सब ज्यादा समर्थन मिला है। हालाँकि, पंजाब में इन कृषि कानूनों को लेकर समर्थन थोड़ा कम था, क्योंकि वहाँ कृषकों को स्वतंत्रता देने वाले कानून को राजनीतिक मसला बना दिया गया है।
52.69% लोग चाहते हैं कि इन कृषि सुधार कानूनों को ख़त्म करने के लिए जोर-जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए और किसान संगठनों को सरकार से समझौता करना चाहिए। 60.90% लोगों का मत है कि इन कानूनों के लागू होने से किसानों को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलेगा। 73.05% लोग कृषि सुधारों और कृषि में आधुनिकीकरण के पक्षधर हैं। 69.65% ने माना कि अब किसान APMC से बाहर उत्पाद बेच सकेंगे।
अफवाह फैलाई जा रही है कि इससे राज्यों के APMC (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्किट कमिटी) की शक्ति कम हो जाएगी, या फिर वो निष्प्रभावी हो जाएँगे। जबकि, ऐसा नहीं है। इस बिल का उद्देश्य राज्यों की APMC को निष्प्रभावी करना है ही नहीं। ये किसानों को मौजूदा APMC का अतिरिक्त विपणन चैनल प्रदान करेगा। APMC अपने प्रचलन की दक्षता में और सुधार करें, इसके लिए ये क़ानून उन्हें प्रोत्साहित करेगा।
उधर, भारतीय किसान यूनियन (BKU एकता-उग्राहन) की विदेशी फंडिंग शक के घेरे में है। BKU (एकता-उग्राहन) ने दावा किया है कि उसे एक केंद्रीय एजेंसी ने उस रजिस्ट्रेशन का विवरण साझा करने को कहा है, जिसके तहत उसे विदेशी फंडिंग पाने की अनुमति मिली हुई है। उसे पिछले 2 महीनों में 8 लाख रुपए की फंडिंग मिली है। कहा जा रहा है कि BKU (एकता-उग्राहन) ने FCRA के नियमों का पालन नहीं किया है, ऐसे में उसे आई विदेशी फंडिंग वापस दानदाताओं के एकाउंट्स में लौट सकती है।