Monday, November 18, 2024
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1978 में एक किताब आई थी, बांग्लादेश की आजादी के 7 साल बाद… फोटो ‘अनजाने’ मोदी की थी… क्यों?

पढ़ने-लिखने की सलाह देने और TV से दूर रहने की रट लगाने वाले रवीश के पास यह किताब क्यों नहीं? PM मोदी का मजाक उड़ाने से पहले शशि 'डिक्शनरी' थरूर को भी यह किताब क्यों पढ़नी चाहिए?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के बांग्लादेश दौरे पर हैं। शुक्रवार (मार्च 26, 2021) को उन्होंने बांग्लादेश के नेशनल डे के कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान पीएम मोदी ने कुछ ऐसा कहा, जिसके बाद उनके आलोचक उस तथ्य को झूठ मानकर उन्हें ट्रोल करने लगे। लेकिन शायद उन्हें उस सत्याग्रह के बारे में जानकारी ही नहीं थी, जिसका पीएम मोदी जिक्र कर रहे थे। आईए जानते हैं क्या है पूरा मामला?

क्या कहा पीएम मोदी ने? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व और 1971 की बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में भारतीय सेना के योगदान की सराहना की। प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हमीद और प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ देश की स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगाँठ पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान पीएम ने बताया कि उन्होंने भी बांग्लादेश की आजादी के लिए सत्याग्रह किया था

उन्होंने कहा, “बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष में शामिल होना मेरे जीवन के भी पहले आंदोलनों में से एक था। मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी, जब मैंने और मेरे कई साथियों ने बांग्लादेश के लोगों की आजादी के लिए सत्याग्रह किया था। बांग्लादेश की आजादी के समर्थन में तब मैंने गिरफ्तारी भी दी थी और जेल जाने का अवसर भी आया था। यानी बांग्लादेश की आजादी के लिए जितनी तड़प इधर थी, उतनी ही तड़प उधर भी थी।”

भारतीय सेना के पराक्रम को किया याद

नेशनल परेड स्क्वायर पर बांग्लादेश की आजादी की स्वर्ण जयंती पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने उसकी आजादी की लड़ाई में भारतीय सेना की भूमिका को याद किया और कहा कि बांग्लादेश में अपनी आजादी के लिए लड़ने वालों और भारतीय जवानों का रक्त साथ-साथ बहा था और रक्त ऐसे संबंधों का निर्माण करेगा, जो किसी भी दबाव से टूटेगा नहीं।

ट्रोल करने में जुटे आलोचक

वहीं, पीएम मोदी के इस तथ्य के बाद उनके आलोचक उन्हें ट्रोल करने की कोशिश में जुट गए। एनडीटीवी के ‘पत्रकार’ रवीश कुमार ने इस पर व्यंग्य लिख कर पीएम मोदी पर निशाना साधने की कोशिश की तो वहीं प्रधानमंत्री की टिप्पणी का हवाला देते हुए कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय ज्ञान: हमारे प्रधानमंत्री बांग्लादेश को भारतीय ‘फर्जी खबर’ का स्वाद चखा रहे हैं। हर कोई जानता है कि बांग्लादेश को किसने आजाद कराया।’’ कॉन्ग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी निशाना साधते हुए इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘संपूर्ण राजनीतिक विज्ञान’ करार दिया।

आँख मूँद कर आलोचना करने वालों को नहीं पता था कि पीएम मोदी जिस सत्याग्रह के बारे में बात कर रहे हैं, पीएम के समर्थक उसकी पूरी जानकारी सोशल मीडिया पर रख कर दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। 

12 दिन चला था सत्याग्रह, 10000+ कार्यकर्ता हुए थे गिरफ्तार

जनसंघ ने अगस्त 1971 में बांग्लादेश सत्याग्रह शुरू किया था। यह 12 दिन तक चला था। इस दौरान जन संघ के हजारों कार्यकर्ता गिरफ्तार भी हुए थे। सत्याग्रह के आखिरी दिन 1200 महिलाओं और बच्चों समेत करीब 10 हजार कार्यकर्ता जेल गेए थे। यहाँ तक कि जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने सत्याग्रह को संबोधित भी किया था।

आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी बांग्लादेश द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को दिए गए प्रशस्ति पत्र को शेयर करते हुए ट्वीट किया, “क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश को पहचान दिलाने के लिए जन संघ द्वारा आयोजित सत्याग्रह का हिस्सा थे? हाँ, वह इसका हिस्सा थे। बांग्लादेश द्वारा वाजपेयी को दिया गया प्रशस्ति पत्र रैली के बारे में बताता है। पीएम मोदी ने 1978 में लिखी एक किताब में बांग्लादेश सत्याग्रह के दौरान तिहाड़ जाने के बारे में भी लिखा था।”

प्रशस्ति पत्र

इस प्रशस्ति पत्र में कहा गया है, “बांग्लादेश के लोग हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के कारण का समर्थन करने और बांग्लादेश और भारत के बीच दोस्ती को मजबूत करने के लिए किए गए महत्वपूर्ण योगदान को याद रखेंगे।”

आलोक मिश्रा नाम के ट्विटर यूजर ने 1978 में लिखी गई एक किताब का बैक कवर शेयर किया है, जिसमें बांग्लादेश के निर्माण के लिए चले आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका का जिक्र है।

उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, “पीएम नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के निर्माण के लिए सत्याग्रह में भाग लेने और इसके लिए जेल जाने का ढाका में ज़िक्र क्या किया। उनके आलोचकों के पेट में दर्द हो गया। संदेह का माहौल खड़ा किया जाने लगा। इन आलोचकों को 1978 में प्रकाशित इस किताब के बैक कवर को देखकर मायूस होना पड़ेगा।”

उन्होंने आगे लिखा, “इस किताब के बैक कवर पर तब आरएसएस के युवा प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी का जो परिचय है, उसमें साफ तौर पर बांग्लादेश के निर्माण के लिए चले आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका का जिक्र है। जिन्हें गुजराती नहीं आती, उनके लिए चौथे पैराग्राफ का गुजराती अनुवाद आगे दे रहा हूँ।”

आलोक मिश्रा ने गुजराती अनुवाद देते हुए लिखा, “आपातकाल के बीस महीने, सरकारी तंत्र की नाकामयाबी को साबित करते हुए भूगर्भ में रहकर काम किया और संघर्ष प्रवृति को चलाए रखा। इससे पहले बांग्लादेश के सत्याग्रह के समय तिहाड़ जेल होकर आए।” इसे पढ़ने के बाद शर्म आए, तो बिना तथ्य जाने विवाद पैदा करना छोड़ देना चाहिए मोदी के आलोचकों को।”

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ढाका में बांग्लादेश के राजनीतिक और सामुदायिक नेताओं से मुलाकात की, जिनमें अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि तथा बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के मुक्ति योद्धा शामिल रहे। विदेश मंत्रालय के अनुसार मोदी ने सत्तारूढ़ ग्रैंड अलायंस के नेताओं से मुलाकात की, जिस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय रिश्तों से जुड़े विविध विषयों पर चर्चा की।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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