हरीश साल्वे, मन्नन कुमार मिश्रा, आदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होल्ला और स्वरूपानंद चतुर्वेदी जैसे 600+ अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस DY चंद्रचूड़ को पत्र लिख कर न्यायपालिका की सत्य-निष्ठा क्षति पहुँचाने के प्रयासों के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी। इन्होंने लिखा कि एक खास समूह अपने हितों के लिए न्यायपालिका पर दबाव बना रहा है, न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है और तुच्छ तर्कों व बासी राजनीतिक एजेंडों के तहत हमारी अदालतों को बदनाम कर रहे हैं।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पत्र पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “दूसरों को डराना-धमकाना और दबाना कॉन्ग्रेस की पुरानी संस्कृति रही है। 5 दशक पहले ही उन्होंने ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ की बात की थी – वो बेशर्मी से दूसरों से तो प्रतिबद्धता चाहते हैं लेकिन खुद राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतवासी उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।” पीएम मोदी का इशारा न्यायपालिका में अपनी चलाने की कोशिश में लगे रहने वाले कॉन्ग्रेस समर्थित वकीलों के गिरोह की तरफ था।
इस पत्र में वकीलों ने लिखा है कि न्यायपालिका को दबाव में रखने वाले इस गिरोह के हथकंडे विश्वास और भाईचारे के माहौल को ख़राब कर रहे हैं, जो न्यायपालिका के संचालन की रीढ़ हैं। पत्र में बताया गया है कि दबाव वाले हथकंडे राजनीतिक मामलों में ज्यादातर आजमाए जा रहे हैं, खासकर केस किसी भ्रष्टाचार आरोपित नेता से जुड़ा हो। पत्र में कहा गया है कि ये सब करने से देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को भी क्षति पहुँच रही है। इसके लिए अदालतों को उनका ‘अच्छा इतिहास’ याद दिलाते हुए आज से तुलना की जाती है और फर्जी नैरेटिव बनाए जाते हैं।
To browbeat and bully others is vintage Congress culture.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 28, 2024
5 decades ago itself they had called for a "committed judiciary" – they shamelessly want commitment from others for their selfish interests but desist from any commitment towards the nation.
No wonder 140 crore Indians… https://t.co/dgLjuYONHH
600 से अधिक वकीलों ने आरोप लगाया है कि जानबूझकर अदालती फैसलों को प्रभावित करने के लिए बयान दिए जाते हैं, राजनीतिक फायदों के लिए कोर्ट को परेशान किया जाता है। आरोप लगाया गया है कि दिन में कुछ वकील नेताओं को कोर्ट में डिफेंड करते हैं, रात में वहीं वकील मीडिया के माध्यम से जजों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इन्होंने ‘बेंच फिक्सिंग’ की अफवाह फैलाई जो जजों का अपमान है। आरोप लगाया गया है कि न्यायपालिका में जनता के विश्वास को खत्म करने के लिए हमारी अदालतों की तुलना उन देशों की अदालतों से की जाती है जहाँ कानून का राज है ही नहीं।
इन वकीलों का आरोप है कि ये खास ग्रुप की गतिविधियाँ चुनावी सीजन के दौरान अधिक सक्रिय हो जाती है। साल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही देखने को मिला था। हम सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करते हैं कि वे इस तरह के हमलों से हमारी अदालतों को बचाने के लिए सख्त और ठोस कदम उठाएँ। पत्र में वकीलों ने न्यायपालिका के समर्थन में एकजुट रुख अपनाने का आह्वान किया है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायपालिका लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ बना रहे।