लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी एकदम एकांतप्रिय होते नजर आ रहे हैं। एक ओर राहुल गाँधी जहाँ चुनाव से पहले लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर जनसभाओं में चौकीदार चोर है जैसे नारे लगाते नहीं थक रहे थे, वहीं नतीजों के बाद उन्होंने अचानक से इतनी चुप्पी कैसे साध ली है यह सबके लिए हैरान कर देने वाला प्रश्न हो चुका है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंगलवार मई 28, 2019 को भी राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस के बड़े नेताओं से मिलने से साफ़ मना कर दिया। ऐसे में उनके जीजा जी रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी वाड्रा ही सभी मेहमानों से मिल रही हैं।
हालाँकि, कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने की जिद पर अड़े हुए राहुल गाँधी ने किसी बेहतर विकल्प की तलाश तक अध्यक्ष पद पर बने रहने का निर्णय भी लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राहुल गाँधी ने अपनी पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने के लिए एक महीने का समय दिया है। जून के प्रथम सप्ताह में कॉन्ग्रेस पार्टी की बैठक होनी है, हो सकता है कि राहुल गाँधी उसमें बताएँ कि वो पार्टी में किस पद पर बने रहना चाहते हैं।
नेहरू-गाँधी परिवार की करीबी मानी जाने वाली कॉन्ग्रेस नेता शीला दीक्षित का कहना है कि यह दुखद है कि उन्हें यह दिन देखना पड़ रहा है। साथ ही उन्होंने आशा जताई है कि वरिष्ठ नेता मिलकर राहुल गाँधी को मनाने में कामयाब रहेंगे। लालू प्रसाद यादव से लेकर एमके स्टालिन तक, सभी लोग राहुल गाँधी को फोन द्वारा यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्हें इस्तीफ़ा देने का विचार त्याग देना चाहिए। लालू यादव ने राहुल गाँधी को समझाते हुए यह भी कहा कि उन सभी का सपना भाजपा को डूबते हुए देखना है।
राहुल गाँधी के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने मंगलवार को तुगलक लेन स्थित उनके आवास पर मिलने गए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट और AICC के जनरल सेक्रेटरी केसी वेणुगोपाल से भी मिलने से साफ इनकार कर दिया। ऐसे में उनकी बहन प्रियंका गाँधी ने ही सभी वरिष्ठ नेताओं से बातचीत की।
देखना यह है कि राहुल गाँधी का यह मौन व्रत आखिर कब तक जारी रहता है। यह भी हो सकता है कि राहुल गाँधी चुनाव के बाद बस अपनी थकान उतारना चाह रहे हों। फ़िलहाल उन्हें अकेले छोड़ देना चाहिए, वैसे भी अगले चुनाव में अभी लगभग 5 साल और बाकी है।