जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बुधवार (30 अक्टूबर) मध्यरात्रि को ख़त्म हो गया। इसके साथ ही दो नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख आस्तित्व में आ गए। अनुच्छेद-370 के तहत मिले विशेष दर्जे को संसद द्वारा निरस्त किए जाने के बाद आज से यह निर्णय प्रभावी हो गया है। गृह मंत्रालय ने बुधवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी थी।
रिटायर्ड IAS राधाकृष्ण माथुर ने गुरुवार को लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के तौर पर शपथ ली। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ़ से IAS उमंग नरुला को लद्दाख के उपराज्यपाल के सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया है। इसके अलावा, IPS अधिकारी एसएस खंडारे को लद्दाख पुलिस का प्रमुख बनाया गया है। लद्दाख के अलावा जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल गिरिश चंद्र मुर्मू होंगे।
Leh: Radha Krishna Mathur takes oath as the first Lieutenant Governor of Union Territory of Ladakh. pic.twitter.com/lYpybg1YD0
— ANI (@ANI) October 31, 2019
ग़ौरतलब है कि 6 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को पारित कर दिया था। इसके तहत तय हुआ था कि दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्यों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के रूप में 31 अक्टूबर 2019 से अस्तित्व में आएगा। ऐसा पहली बार है जब किसी राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया गया है। इस सिससिले में श्रीनगर और लेह में दो अलग-अलग शपथग्रहण समारोह का आयोजन किया गया। पहला समरोह लेह में हुआ जहाँ आरे माथुर ने लद्दाख के उपराज्यपाल के तौर पर शपथ ली। दूसरा शपथग्रहण समारोह श्रीनगर में आयोजित होगा, जहाँ मुर्मू उपराज्यपाल का पद भार सँभालेंगे।
इसके साथ ही भारत में राज्यों की संख्या अब 28 हो गई है और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या सात से बढ़कर नौ हो गई है। अब जम्मू-कश्मीर के संविधान और रणबीर दंड संहिता का अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा। केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की क़ानून व्यवस्था और पुलिस पर केंद्र का सीधा नियंत्रण होगा, जबकि भूमि वहाँ की निर्वाचित सरकार के अधीन होगी।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों ही अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बने हैं। केवल अंतर इतना है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बना है और लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश है। लद्दाख की ओर से पिछले कई वर्षों से इस माँग को रखा जा रहा था।
शुरुआत में दोनों राज्यों का एक ही हाईकोर्ट होगा लेकिन दोनों राज्यों के एडवोकेट जनरल अलग होंगे। सरकारी कर्मचारियों के सामने दोनों केंद्र शासित राज्यों में से किसी एक को चुनने का विकल्प होगा।