Friday, November 15, 2024
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दर-दर भटकता रहा एक बाप पर बेटे की लाश तक न मिली, यातना दे-दे कर इंजीनियरिंग छात्र की हत्या: आपातकाल की वो कहानी, जिसमें कॉन्ग्रेसी CM को देना पड़ा था इस्तीफा

कॉन्वन बाँध में भी राजन के शव की तलाश की गई थी, जो नहीं मिली। सोचिए, इस प्रकरण के दौरान एक पिता पर क्या गुजरी होगी। आपातकाल के बाद जब संजय गाँधी गिरफ्तार हुए तो राजन के पिता ने उन्हें पत्र लिख कर कहा कि आप भी एक माँ हैं, मैं कामना करता हूँ कि आपको वो सब न झेलना पड़े जो राजन की माँ को झेलना पड़ा।

भारत में कभी आपातकाल लगा था। कॉन्ग्रेस पार्टी ने लगाया था। नेहरू-गाँधी परिवार की इंदिरा ने प्रधानमंत्री रहते लगाया था। सारे आलोचकों को जेल में ठूँस दिया गया था। आज कॉन्ग्रेस पार्टी 18वीं लोकसभा के शपथग्रहण के दौरान संविधान की पुस्तकें दिखाती हैं, लेकिन ये भूल जाती है कि कभी इसी संविधान को बदल दिया गया था उसके द्वारा। भाजपा पर संविधान बदलने का आरोप लगाने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी ये भी भूल जाती है कि उसने ही कभी मीडिया का गला घोंटा था, उसके ही नेता ने कइयों की जबरन नसबंदी कराई थी।

यहाँ तक कि आपातकाल से जुड़े कई दस्तावेज भी गायब कर दिए गए, जिससे किसी को भी इस गुनाह की सज़ा न मिले। 25 नवंबर, 1977 को नई दिल्ली स्थित आकाशवाणी भवन के 2 कमरों में भीषण आग लग गई, जिसमें कई रिकार्ड्स जल कर स्वाहा हो गए। वार्ताओं के टेप, फाइलें और फर्नीचर तक नहीं बचे। उस समय के अख़बार में भी छपा कि इसके पीछे राजनीतिक साजिश नज़र आती है। हरदुआगंज बिजलीघर में आग लगने से लेकर रेलवे दुर्घटना की कई घटनाएँ हुईं।

माना गया कि आपातकाल के रिकार्ड्स को मिटाने के लिए ये सब किया गया था। रेलवे दुर्घटना के ऐसे ही एक मामले में आर्यसमाजी सांसद प्रकाशवीर शास्त्री भी नहीं रहे। आपातकाल के दौरान किस तरह लोगों को यातनाएँ दी गई थीं, इसकी कहानी हमें जाननी चाहिए। एक छात्र था B राजन नाम का, जो कालीकट इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता था। वो हिंदी के रिटायर्ड प्रोफेसर एचरा वारियर का एकलौता बेटा था। अभिनय, संगीत और पढ़ाई – तीनों में वो होनहार था।

बलबीर दत्त अपनी पुस्तक ‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का ज़हर‘ में बताते हैं कि आपातकाल के दौरान एक थाने पर कुछ नक्सलियों ने हमला किया था। कॉलेज के कला सेक्रेटरी B राजन को इस दौरान पुलिस उठा कर ले गई। ये मार्च 1976 की घटना है। उसके साथी जोसेफ बाली को भी गिरफ्तार किया गया था। कॉलेज ने उसके पिता को पत्र लिखा, पत्र ने बेटे को छुड़ाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। वो केरल के तत्कालीन गृह सचिव, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री और पुलिस अधिकारियों से मिले।

बेचारे पिता ने राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखा, लेकिन उन्हें कहीं से कोई राहत भरी खबर नहीं मिली। इसी तरह 1 वर्ष बीत गया। उन्होंने अदालत में हैबियस कार्पस का केस दर्ज किया गया। बता दें कि किसी के गायब होने की सूरत में ये मामला दर्ज कराया जाता है, 2021 में आई सूर्या अभिनीत तमिल फिल्म ‘जय भीम’ इसी कानूनी प्रावधान पर आधारित है। आपातकाल खत्म होने के बाद राजन के पिता ने किसी केस का सहारा लिया और अपने बेटे को वापस लाने के लिए अदालत में अर्जी दी।

जब राजन के पिता अपने बेटे के लिए गुहार लगाने K करुणाकरण से मिले थे, तब वो केरल के गृह मंत्री थे। हालाँकि, आपातकाल बाद वो राज्य के मुख्यमंत्री बने। करुणाकरण से दोबारा उन्होंने गुहार लगाई। मुख्यमंत्री ने जब अधिकारियों से पूछा तो उन्हें जवाब मिला कि हम किसी राजन को नहीं जानते। पुलिस ने तो किसी राजन को गिरफ्तार किए जाने की घटना से भी इनकार कर दिया। केरल सरकार ने हाईकोर्ट में दिए गए हलफनामे में भी यही बात दोहरा दी।

हालाँकि, उच्च न्यायालय इस मामले में पड़ा और उसने जाँच का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि CM का कथन विश्वास के लायक नहीं है। गवाहों ने भी बताया कि राजन को 1 मार्च, 1976 को गिरफ्तार किया गया था। फिर उसे किसी टूरिस्ट बँगला पर ले जाया गया था, जहाँ उसे जम कर यातनाएँ दी गईं। अदालत को भी कहना पड़ा कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में ही देखा गया है या उपन्यासों में पढ़ा गया है। राजन को टॉर्चर करने वालों में 6 पुलिस वाले शामिल थे।

इतना दबाव पड़ा कि आखिरकार मुख्यमंत्री को ही इस्तीफा देना पड़ा। आज तक नहीं पता चल पाया है कि राजन का क्या हुआ। इस घटना पर मलयालम में फ़िल्में भी बन चुकी हैं। गवाहों ने बताया कि पुलिस ने उनके हाथ-पाँव बाँध कर उन्हें प्रताड़ित किया था, उनसे ऐसे 2 नक्सलियों का पता माँगा जा रहा था, जिनसे इनका कोई लेना-देना नहीं था। कॉन्वन टूरिस्ट बँगले में दोनों को साथ रखा गया था, फिर अलग कर दिया गया। जोसेफ को कह दिया गया कि राजन की मृत्यु हो गई है।

कॉन्वन बाँध में भी राजन के शव की तलाश की गई थी, जो नहीं मिली। सोचिए, इस प्रकरण के दौरान एक पिता पर क्या गुजरी होगी। आपातकाल के बाद जब संजय गाँधी गिरफ्तार हुए तो राजन के पिता ने उन्हें पत्र लिख कर कहा कि आप भी एक माँ हैं, मैं कामना करता हूँ कि आपको वो सब न झेलना पड़े जो राजन की माँ को झेलना पड़ा। राजन के पिता ने उन्हें याद दिलाया कि कैसे उन्होंने राजन की माँ की तरफ से उनकी व्यथा उन्हें बताई थी, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी।

15 मई, 1977 को CM के इस्तीफे की खबर तब ‘इंडिया टुडे’ में छपी थी और उसमें भी इस प्रकरण का विवरण था। राजन को मेरिट स्कॉलरशिप मिला हुआ था, वो फाइनल ईयर का छात्र था। पूरे राज्य के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, कई राजनीतिक दलों व संस्थाओं के प्रयासों के बाद राजन को रिहा किया गया। वडक्कन नाम के पादरी ने 3 दिन का अनशन किया। राजन का परिवार त्रिचूर के मला का रहने वाला था। करुणाकरण 1967 से वहीं से विधायक बन रहे थे।

10 मार्च, 1976 को जब वो गृह मंत्री थे तब उनसे मिलने आए राजन के पिता से उन्होंने कहा था कि उनका बेटा एक गंभीर मामले में फँसा हुआ है, लेकिन वो उसकी मदद के लिए सब कुछ करेंगे। जब मामला हाईकोर्ट में पहुँचा तो करुणाकरण ने इस मुलाकात से ही इनकार कर दिया और पलट गए। राजन की गिरफ्तारी के बाद उसकी बहनों रीमा और चाँदनी को पिता ने इस घटना के बारे में नहीं बताया, क्योंकि डर था कि दोनों की यूनिवर्सिटी परीक्षाओं में प्रदर्शन पर इससे असर पड़ेगा।

मुख्यमंत्री अच्युत मेनन से मुलाकात करने से लेकर सभी सांसदों को पत्र लिखने तक, प्रोफेसर वारियर ने क्या नहीं किया। राजन को गिरफ्तार कर के पुलिस सादी वर्दी में उसे लेकर गई थी। उसे बेहोशी की हालत में ले जाए जाते हुए भी एक गवाह ने देखा। हाईकोर्ट को पूरा विश्वास था कि उसे कस्टडी में रखा गया है, ऐसे में उसने समयसीमा दी कि उसे पेश किया जाए। राज्य सरकार ने अक्षमता जता दी। राजन के पिता ने ‘Memories of a Father‘ नामक पुस्तक में अपनी इस लड़ाई का विवरण दिया है।

केरल हाईकोर्ट ने CM करुणाकरण के अलावा डिप्टी IGP जयराम पड्डीकल और एसपी K लक्ष्मण पर भी गलत साक्ष्य देने का मामला चलाने का आदेश दिया। कहाँ राजन यूथ फेस्टिवल में हिस्सा लेने कॉलेज पहुँचा था, कहाँ उसे पुलिस पकड़ कर ले गई। कोझिकोड के चथमंगलम स्थित ये कॉलेज आज NIT है लेकिन यहाँ आज भी राजन केस की चर्चा होती है। खैर, इस घटना को लेकर कॉन्ग्रेस को छात्र विरोधी नहीं बताया जा सकता, न संविधान विरोधी, आपातकाल का दोष भी शायद उसे नहीं दिया जा सकता।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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