फ्लोर टेस्ट से बच रही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को एक और दिन की मोहलत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को इस संबंध में सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने पूछा कि विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर कब तक फैसला लेंगे। स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका जवाब देने के लिए गुरुवार तक का वक्त मॉंगा। सुप्रीम कोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और 9 भाजपा विधायकों ने याचिका दायर कर रखी है। सोमवार को बिना फ्लोर टेस्ट कराए विधानसभा की कार्यवाही स्थगित किए जाने के बाद याचिका दायर की गई थी।
सुनवाई के दौरान कॉन्ग्रेस, भाजपा और राज्यपाल की ओर से कोर्ट में दलीलें पेश की गईं। कॉन्ग्रेस ने कहा कि बागी विधायकों का इस्तीफा भाजपा की साजिश है। इसकी जाँच होनी चाहिए। साथ ही कॉन्ग्रेस ने प्रदेश में सियासी संकट पैदा होने के पीछे भी भाजपा को जिम्मेदार बताया। कॉन्ग्रेस ने कहा कि बहुमत परीक्षण के लिए रातोंरात मुख्यमंत्री और स्पीकर को आदेश देना राज्यपाल का काम नहीं है। स्पीकर इस मामले में सबसे ऊपर हैं, राज्यपाल उन पर हावी हो रहे हैं। कॉन्ग्रेस ने विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई सीटों पर उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने की माँग की और कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो आसमान नहीं फटेगा। वहीं भाजपा ने इसका विरोध किया।
सुनवाई के दौरान कॉन्ग्रेस के वकील की ओर से दलील दी गई है कि अभी दुनिया मानवता के सबसे बड़े संकट कोरोना से जूझ रही है, ऐसे में क्या इस वक्त बहुमत परीक्षण कराना जरूरी है? कॉन्ग्रेस की ओर से अदालत में बताया गया कि राज्यपाल सिर्फ मीडिया रिपोर्ट्स पर भरोसा कर रहे हैं और मान कर बैठे हैं कि कमलनाथ सरकार के पास बहुमत नहीं है। कॉन्ग्रेस के वकील ने अदालत से मामले की सुनवाई टालने के अपील करते हुए कहा कि ऐसा हुआ तो आसमान नहीं फट जाएगा। हमारी राज्य सरकार के पास बहुमत था, लेकिन विधायकों को किडनैप किया गया।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज फैसला आने के आसार थे। मगर, कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर से सवाल किया कि आखिर आपने विधायकों के इस्तीफे पर अभी तक फैसला क्यों नहीं लिया? क्या ये विधायक अपने आप अयोग्य नहीं हो जाएँगे? अगर आप संतुष्ट नहीं हैं, तो आप विधायकों के इस्तीफे को अस्वीकार कर सकते हैं। आपने 16 मार्च को बजट सत्र को टाल दिया? अगर आप बजट को पास नहीं करेंगे, तो राज्य सरकार का कामकाज कैसे चलेगा?
पीठ ने क्या कहा?
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा- हम कैसे तय करें कि विधायकों के हलफनामे मर्जी से दिए गए या नहीं? यह संवैधानिक कोर्ट है। हम संविधान के दायरे में कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। टीवी पर कुछ देखकर तय नहीं कर सकते। 16 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट में शामिल हों या नहीं, लेकिन उन्हें बंधक नहीं रखा जा सकता। अब साफ हो चुका है कि वे कोई एक रास्ता चुनेंगे। उन्होंने जो किया उसके लिए स्वतंत्र प्रक्रिया होनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने वकीलों से सलाह माँगी कि कैसे विधानसभा में बेरोकटोक आने-जाने और किसी एक का चयन सुनिश्चित हो।
भाजपा का पक्ष
इसके बाद मुकुल रोहतगी की ओर से अदालत में कहा गया कि अगर अदालत चाहे तो वह 16 बागी विधायकों को जज के चैंबर में या रजिस्ट्रार के सामने पेश कर सकते हैं। हालाँकि, जज ने इसके लिए मना किया और कहा कि वो ऐसा आदेश जारी नहीं कर सकते। वहीं रोहतगी ने कहा आप विकल्प के तौर पर कर्नाटक हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को गुरुवार को विधायकों के पास भेजकर वीडियो रिकॉर्डिंग करा सकते हैं। कॉन्ग्रेस चाहती है कि विधायक भोपाल आएँ ताकि उन्हें प्रभावित कर खरीद-फरोख्त की जा सके। विधायक उनसे मिलना ही नहीं चाहते तो कॉन्ग्रेस क्यों इस पर जोर दे रही है।
इस मामले में शिवराज सिंह ने भी कहा कि विधायकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बता दिया है कि वह अपनी इच्छा से बेंगलुरु में हैं और वे सबूत के तौर पर कोर्ट में सीडी पेश करने के लिए तैयार हैं। इस्तीफा देना उनका संवैधानिक अधिकार है, उन्होंने वैचारिक मतभेद के चलते इस्तीफे दिए। इन्हें मंजूर करना स्पीकर का कर्तव्य है। वह फैसले को लंबे वक्त तक लटका नहीं सकते हैं। क्या स्पीकर इसे लेकर सेलेक्टिव हो सकते हैं, कि कुछ पर फैसला लेंगे, कुछ इस्तीफे पर नहीं। जब विधायक भोपाल आकर कॉन्ग्रेस से मिलना ही नहीं चाहते तो हमे इसके लिए कैसे मज़बूर किया जा सकता है। कोर्ट स्पीकर को इस्तीफे स्वीकार करने के लिए निर्देश दे। हमारा भी मानना है कि सरकार बहुमत खो चुकी है। इसलिए तुरंत फ्लोर टेस्ट होना चाहिए।
सियायी हालात
बता दें मध्यप्रदेश में इस समय कमलनाथ सरकार के गिरने का संकट मंडरा रहा है। स्पीकर द्वारा 22 कॉन्ग्रेस विधायकों में से 6 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने के बाद पार्टी के विधायकों की संख्या कम होकर 108 हो गई है। अभी 16 बाकी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार होने बाकी है। यदि उनके इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाते हैं तो पार्टी के विधायकों की संख्या 92 हो जाएगी। सदन में बीजेपी के विधायकों की संख्या 107 है।