भारत में छुआछूत की समस्या को लेकर अक्सर बहस होती रहती है और यह आज़ादी के काफ़ी पहले से चली आ रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा है कि भारत में छुआछूत की समस्या इस्लाम के आने के बाद शुरू हुई। उन्होंने ‘दलित’ शब्द पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने एक साज़िश के तहत समाज को बाँटने के लिए इस शब्द का अविष्कार किया। गोपाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आरएसएस एक ऐसा समाज चाहता है, जहाँ कोई जात-पात नहीं हो अर्थात जातिविहीन समाज हो।
उन्होंने छुआछूत को लेकर एक कहानी भी सुनाई। बकौल कृष्ण गोपाल, सिंध के अंतिम हिन्दू राजा दाहिर की पत्नियाँ जब जौहर करने जा रही थीं, तब उन्होंने ‘म्लेच्छ’ शब्द का प्रयोग किया था। रानियों का मानना था कि अगर उन्होंने जल्द से जल्द जौहर कर अपने प्राण नहीं त्यागे तो ‘म्लेच्छ’ लोग (इस्लामिक आक्रांता) आकर उन्हें छू देंगे। आरएसएस नेता ने बताया कि ये भारत में छुआछूत की पहली घटना थी और इससे पता चलता है कि यह सब क्षेत्र में इस्लाम के उद्भव के साथ शुरू हुआ।
उन्होंने भारतीय ग्रंथों से उदाहरण देते हुए कहा कि प्राचीन काल में ऊँची और नीची जातियाँ तो थीं लेकिन छुआछूत नहीं था। उन्होंने कहा कि गौ का माँस खाने वालों को अछूत माना जाता था। उन्होंने कहा कि अम्बेडकर भी ऐसा ही मानते थे। गोपाल ने कई ऐसे उदाहरण गिनाए, जिनके कारण कभी ‘फॉरवर्ड’ जाति के लोग रहे आज ‘बैकवर्ड’ हो गए हैं। उन्होंने कहा:
“आज मौर्य जाति के लोग ‘बैकवर्ड’ कहलाते हैं लेकिन कभी वे ‘फॉरवर्ड’ थे। बंगाल में पाल लोग राजा हुआ करते थे लेकिन आज वे भी ‘बैकवर्ड’ कहलाते हैं। इसी प्रकार भगवान बुद्ध की जाति शाक्य भी आज ओबीसी श्रेणी में आती है। हमारे समाज में ‘दलित’ शब्द था ही नहीं। ये ब्रिटिश आक्रांताओं की ‘फूट डालो और राज करो’ की साज़िश का एक हिस्सा था। यहाँ तक कि हमारी संविधान सभा ने भी ‘दलित’ शब्द का प्रयोग करने से मना कर दिया। भारत में इस्लामिक शासनकाल एक ‘अन्धकार युग’ था लेकिन हमारी आध्यात्मिक जड़ों के कारण हम किसी तरह बचे रहे।”
In ancient India, people who consumed cow meat were labelled as untouchable: Krishna Gopal, RSS leader.https://t.co/82B856V6R4
— TIMES NOW (@TimesNow) August 27, 2019
संघ पदाधिकारी गोपाल कृष्ण ने इतिहास से उदाहरण देते हुए कहा कि चन्द्रगुप्त मौर्य पहले शूद्र थे लेकिन बाद में चल कर अखंड भारत के सम्राट बने। उन्होंने महर्षि वाल्मीकि का उदाहरण देते हुए कहा कि वे भी शूद्र थे लेकिन बाद में एक महान ऋषि हुए। गोपाल कृष्ण ने नास्तिकों की बढ़ती संख्या पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हिन्दू जीवन पद्धति और वेदांत में ही उन्हें उनके सवालों का उत्तर मिल सकता है।