Thursday, November 14, 2024
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राजद ने नकारा, नीतीश ने दुत्कारा: कुशवाहा के चावल, यादवों के दूध से जो बनाते थे ‘खीर’ और करते थे खून बहाने की बात

ये वही नेता हैं, जिन्होंने मनमुताबिक चनाव परिणाम न होने पर सड़कों पर खून बहा देने की धमकी दी थी। साथ ही इस संभावित हिंसा का ठीकरा एक ही साँस में बिहार की नीतीश और केंद्र की मोदी सरकार के सर फोड़ दिया था।

बिहार में अब सभी राजनीतिक दलों ने रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा को ‘अछूत’ बना दिया है। महागठबंधन में सीटें न मिलने के बाद अब वो राजग की ओर देख रहे हैं लेकिन कभी नीतीश कुमार को अलविदा कहने वाले उपेंद्र कुशवाहा के लिए बिहार के मुख्यमंत्री ने सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। तेजस्वी और नीतीश, किसी से भी भाव न मिलने के कारण उनकी हालत उस ‘धोबी के कुत्ते’ की तरह हो गई है, जो न घर का रहता है और न ही घाट का।

अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने इशारा कर दिया कि वो महागठबंधन से अलग होंगे। वहीं राजग से भाव न मिलने के बाद वो कह रहे हैं कि अगर राजद में नेतृत्व परिवर्तन होता है तो वो पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो सकते हैं। लेकिन, असल बात ये है कि बिहार में 40 सीटों की माँग कर रहे रालोसपा संस्थापक उपेंद्र कुशवाहा को राजद 12 से ज्यादा सीटें देने के मूड में था ही नहीं।

हालाँकि, भाजपा तो उपेंद्र कुशवाहा को राजग में शामिल करने को लेकर थोड़ी-बहुत नरमी दिखा भी रही थी लेकिन नीतीश कुमार से जब रालोसपा के उनके साथ आने के विषय में सवाल किया गया तो उन्होंने कह दिया कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। हाँ, जीतन राम माँझी को लेकर ज़रूर बिहार के मुखिया गर्मजोशी दिखा रहे हैं। न सिर्फ उनकी सुरक्षा बढ़ाई गई है, बल्कि उन्हें राजग में हाथोंहाथ लिया जा रहा है।

तेजस्वी यादव के लिए उपेंद्र कुशवाहा ने कड़े शब्दों का प्रयोग किया था, जिसके बाद राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने यहाँ तक कह डाला कि राजग में जिन लोगों को दुत्कारा गया, उन्हें राजद ने सम्मान दिया, आज वही लोग तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे। उन्होंने कहा कि जिस पार्टी के पास ना संगठन है, ना पर्याप्त प्रत्याशी है, वो भी अगर अलग जाना चाहती है तो उनका स्वागत है।

मृत्युंजय तिवारी ने कह दिया कि ये लोकतंत्र है, कोई कहीं भी आ-जा सकता है। उपेंद्र कुशवाहा ने रालोसपा के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा था कि बिहार में नेतृत्व ऐसा होना चाहिए, जो नीतीश कुमार के सामने खड़े होने की काबिलियत रखता हो। लालू यादव के जेल में होने और तेजप्रताप यादव के नेतृत्व में रूचि न दिखाने के अलावा तेजस्वी यादव का पूर्ण समर्थन करने के बाद राजद में नेतृत्व-परिवर्तन होने से तो रहा।

हालाँकि, बिहार में एक तीसरे मोर्चे के गठन की भी कवायद चल रही है, जिसका नेतृत्व जन अधिकार पार्टी के संस्थापक-अध्यक्ष पप्पू यादव करने वाले हैं। रालोसपा के वहाँ जाने के भी चांस दिख रहे हैं। कभी बिहार का मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले उपेंद्र कुशवहा की राजनीतिक स्थिति पहले ठीक थी क्योंकि मोदी मंत्रिमंडल में भी उन्हें जगह दी गई थी। लेकिन, बार-बार भाजपा को कोसने के कारण वहाँ उन्हें दरवाजा दिखा दिया गया।

पिछले चुनावों में उनकी पार्टी की परफॉरमेंस और उनके बार-बार पाला बदलने की राजनीति को देखते हुए अब कोई भी उन पर विश्वास नहीं कर रहा है। उपेंद्र कुशवाहा को पहली बार फुटेज भी नीतीश कुमार की मदद से ही मिला था, जिन्होंने उन्हें पहली बार विधायक बनने के बावजूद 2004 में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया था। कोइरी जाति के लिए सामाजिक न्याय की माँग करते-करते उन्हें 2007 में जदयू से निकाल बाहर किया गया।

नवम्बर 2009 में फिर से जदयू में उनकी वापसी हुई। उन्हें राज्यसभा सांसद भी बनाया गया। लेकिन, उन्होंने नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करते हुए फिर जदयू को अलविदा कह दिया। फिर 2013 में उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया और लालू यादव के गठबंधन में शामिल हो गए। 2014 लोकसभा चुनाव में वो राजग में आ गए और उनकी पार्टी को दी गई लोकसभा सीटों पर जीत मिली।

जब नीतीश वापस राजग में आए तो उपेंद्र कुशवाहा ने फिर पाला बदला और लालू के साथ हो लिए। उनके विधायकों और सांसदों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। उनके लिए चुनावों में एक सीट भी जीतनी आफत हो गई लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा नहीं गई। उन्होंने कुशवाहा के चावल और यादवों के दूध को लेकर बिहार में ‘खीर’ थ्योरी की बात की, जिसमें दोनों जातियों की एकता की बात की गई, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।

मई 2019 में लोकसभा चनावों के परिणाम के दौरान तब बिहार महागठबंधन में रहे उपेंद्र कुशवाहा ने मतदान परिणाम मनमुताबिक न होने पर सड़कों पर खून बहा देने की धमकी दी थी। साथ ही इस संभावित हिंसा का ठीकरा एक ही साँस में बिहार की नीतीश और केंद्र की मोदी सरकार के सर फोड़ दिया था। उन्होंने अपने समर्थकों से हथियार उठाने के लिए तैयार रहने को भी कहा था। साथ ही भाजपा पर ‘रिजल्ट लूटने’ का आरोप लगाया था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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